इतिहास को आदि किसान के नजरिए से भी देखिए : देव कुमार पंवार की कलम से

RitikRajput
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फेसबुक पर सभी बुद्धिजीवियों, सरकारी परजीवियों, narrative धारी लोगों को जमीन दिखाकर आदि किसान ने साबित किया की पूरी व्यवस्था, उससे बने कानून संविधान और उसके तर्क में आए तर्क सबका जमीनी हकीकत से कोई लेना देना नहीं है और 80 से 85 परसेंट जनता की गाढ़ी कमाई ओर रिसोर्सेस को लूटने का ही यंत्र मंत्र है यह सब।

आदि किसान का ग्रुप काफी बड़ा और वर्ल्ड वाइड फैला होने के बाद, और अतीत में इन चीजों पर कोई ठोस डिस्कशन ही न होने की वजह से सभी आदि किसान लेखक को और रिसर्चर लोगों को बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा। यहां तक की कई बार समाज से आइसोलेट होने की नौबत आती रही।
परंतु इतिहास में लिखी कहानियों ने जब उनका विश्लेषण किया तो चीख चीखकर खुद ही गवाही दे दी कि यह सब झूठ है और अगर है भी तो यह यहां का भूगोल नहीं जिसके behalf पर यहां की हिस्ट्री कानून और समाजशास्त्र लिखे गए हैं।।

दुनिया में हर जीव में अनंत संभावनाएं हैं जो उसे उसकी गांव गली से लेकर शहर और विदेशों से जोड़ता है

हर सम उसकी समय और परिस्थिति के अनुसार सोच भी बदलती रहती है। कार्ल मार्क्स ने कहा था की ऐसी भौतिक वस्तुएं जिनका ना तो आप उत्पादन करते और ना ही उनका उत्पादन करने की तकनीक जानते बाजार ऐसी चीजों को आपको देने के लिए प्रेरित करता है क्योंकि बाजार एडवर्टाइजमेंट और भावनाओं के साथ इस तरीके से आपके साथ खेलता है कि आप गैर जरूरी सामान अपने घरों में लेकर आते हैं ऐसे में समाज का विकास बड़े ही बेतरतीब तरीके से होगा।

साथ ही hierarchy के स्टैंडर्ड भी लागू होंगे, क्योंकि इसमें तकनीक किसी खास ग्रुप ग्रुप के हाथ में रहेगी जो नहीं चाहेगा कि यह तकनीक जन कल्याण के लिए आम लोगों की पहुंच में हो
यदि बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना है तो सरकार अपने चुनिंदा लोगों को ही लाइसेंस देगी और उनका कम इन्वेस्ट में काम करने का तरीका बताएगी साथ ही क्षति होने पर पैसे को राइट ऑफ करना आदि तरीकों का भी ज्ञान देगी।

आधुनिक समाज के इतर यदि उसे थोड़ा सा पुरातन काल को समझने की कोशिश करें तो आप एक बात पाएंगे सारे इतिहास, समाजशास्त्र, psychology, medical,georaphy ,एंथ्रोपोलॉजी,bootony ,केमिस्ट्री ,physics , या अन्य जितना भी लेखन हुआ है वह अंग्रेजों के द्वारा हुआ है।

यदि विकास क्रम की बात भी करें तो उन्होंने अपना विकास क्रम दर्शाया है। जबकि इंडियन इतिहासकार, बायोलॉजिस्ट , समाजशास्त्री, साइकोलॉजिस्ट, doctor geographer ,anthropologists ,bootonists ,chemist सब ने उन्हें को कॉपी करके सिलेबस बनाए हैं

उदाहरण के लिए,

अब यदि अंग्रेज हॉर्स क्लाइमेट कंडीशन में हजारों साल रहा है और गुफा या कांदराओ को घर की तरह इस्तेमाल किया है तो इंडियन इतिहासकार भी बिल्कुल वैसे ही लिखेंगे चाहे जिन इलाकों की बात कर रहे हो वहां पर गुफा या कंदरा ना पाई जाती हो।

यदि अंग्रेज लंबे समय तक हंटर गैदरर रहा है तो यहां इतिहासकार और वैज्ञानिक यहां के लोगों को प्रिमिटिव स्टेज से लेकर मध्यकाल तक हंटर गैदरर ही बताएंगे।

अंग्रेज लंबे समय तक हंटर गैदरर रहा है जो अपनी डेली जरूरत तो जैसे भोजन या चर्बी के तेल से प्रकाश करना ।

फिर कुत्ते जैसे एनिमल से दोस्ती होने पर हंटर गैदरिंग में सहायता मिलने लगी उसके बाद थोड़ा-थोड़ा भेड़ बकरी आदि को पालन शुरू किया ताकि उनसे दूध लिया जा सके ऐसे समय पर यह अंग्रेज लोग घुमक्कड़ कबीलों की तरह रहते थे 6 से 8 महिने बर्फ पड़ती थी तो एक्सीडेंटली कृषि की खोज हो गई किसी ने बीज डाले और बसंत के महीने मे फसल तैयार हो गई।

इससे उनके जीवन में बसावट और स्थायित्व आया लेकिन क्लाइमेट harsh होने की वजह से सर्दियों के लिए आवश्यक लड़कियां भोजन ,प्रिजर्व करने के लिए मसाले तथा अन्य साग सब्जियां और कीमती धातु के बर्तन ज्वेलरी लाने के लिए दर-दर भटकना पड़ता था ब्राजील और स्पेन का एक एग्जांपल है की लोग स्पेनिश लोगों की मजाक लेते थे की इन इमारती लकड़ियों के लिए तुम लोग कितना खतरा उठाते हो और कहीं-कहीं महीने घरों से बाहर रहते हो क्या तुम्हें तुम्हारे बीवी बच्चे याद नहीं आते।

परंतु इन नकलची इतिहासकारों के इतर यदि इंडिया मैं देखे जिसमे पाकिस्तान का एरिया भी आता है ।
तो यहां उन्नत खेती के फलने फूलने के पर्याप्त अवसर थे ।

साथ ही जिस तरीके से यह इतिहासकार बताते हैं कि शुरू में सब मांस खाते होंगे ऐसा प्रतीत नहीं होता यहां पर फल फूल सब्जियां सभी तो थी साथ ही इंसान ने जब देखा होगा बकरी के बच्चे को दूध पीते हुए तो उसे दूध का सेवन भी किया होगा जमीन यहां की इतनी पोली है कि यदि कुछ बीज फेक दिए तो थोड़े से दिनों में ही अंकुरित हो जाएंगे कहते हैं वाटर लेवल भी बहुत नीचे नहीं था।।

परंतु ठंडे प्रदेशों में देखे तो 6 से 8 महीने तक पेड़ पौधे बर्फ से ढके रहते हैं और उन पर एक भी फल या फ्रूट नहीं लगता ना ही लग सकता ।

आगे आते हैं निर्माण कार्यों पर अंग्रेज कितने भी बड़े शिक्षित हो जाए लेकिन टॉयलेट पेपर अवश्य रखते हैं और इस्तेमाल करते हैं क्योंकि वहां का टेंपरेचर- से भी बहुत नीचे जाता है ऐसे में पानी जमने में ज्यादा देर नहीं लगती आज जब गर्म और ठंडा दोनों पानी उनकी टंकियां में उपलब्ध है फिर भी वह टॉयलेट पेपर ही use करते हैं।
क्योंकि अपनी मूल सभ्यता की आदतें नहीं भूली जाती

अंग्रेज पाल वाली नव या जहाज बनवाने पर जोर देते थे और समुद्र में दिशा में भटक जाए तथा अपनी सही स्थिति का आकलन करने के लिए ऊपर तारों की गतिविधियां नोट करते थे ध्रुव तारा इनमें से एक था जो उत्तर दिशा की जानकारी देता था साथ ही वीनस जो पूर्व से निकलता था जिससे पूर्व दिशा की जानकारी रहती थी
बाद में जब चुंबक से संपर्क हुआ तब कंपास की खोज भी कर डाली जिससे नौकायन ओर ज्यादा सुरक्षित हो गया

सड़क रेल कोयल का इस्तेमाल और आप के इंजन आदि यातायात के साधन को विकसित करना उनकी मजबूरी थी जो की एक तो देने के लिए उनके पास मूलभूत सामान जैसे अनाज डाले राजमा चावल छोले गेहूं आदि की सीमित उपलब्धि थी दूसरा अपने अलग-अलग क्षेत्र में भी समान पहुंचना होता था साथ ही बाहर से भी लाना होता था इन सब चीजों के लिए वहां के एलीट क्लास फ्री mason ने भी उनकी सहायता की व्यवस्थित धर्म और चर्च तथा राजा इन्होंने अपनी सुविधा के लिए डेवलप किया क्योंकि दूर यात्राओं पर जाने वाला जिसमें युद्ध जैसी घटनाएं भी हो सकती है फैमिली की सुरक्षा का दायित्व duke या उसकी सेना पर होता था ।

सभी को धर्म से इस तरह जोड़ा गया की सब ईश्वर की इच्छा से होता है और समय-समय पर ईश्वर मार्ग दर्शन के लिए अवतार भी लेते हैं जो पूरी मानव जाति की भलाई के लिए होता है।।

लेकिन बाहर जाने वाले नाविक सैनिक पादरी इसे इतना इत्तेफाक नहीं रखते थे जितना लोकल लोग ईश्वर या पादरी से रखते थे ।

जब यह पादरी नाविक सैनिक बाहर के देशों में गए तब इन्होंने देखा की सभी लोग आध्यात्मिकता को मानते हैं लेकिन अपने अपने तरीके से कोई अपने पूर्वजों कि किसी निशानी को पूजता है, कोई अपने कबीले के देव को, कोई प्रकृति को कोई ग्राम देवता को, कोई जीवनदायनी किसी नदी या पहाड़ को या किसी औषधि को
इसके बाद इनके पादरी” your god or our god” की परी चर्चा पर आ गए।

बहुत सी प्रजातियां का दुनिया से समूल नाश कर दिया गया हथियारों के बल पर बहुतों को गुलाम बनकर मिल्स और फैक्टरीज में काम करवाया गया। इस सब के पीछे सिल्क रुट ट्रेड का मुनाफे का व्यापार था ।।

सबसे पहले इजिप्शियन लोग कजाकिस्तान ,मंगोलिया होते हुए दक्षिण चीन पहूंचे फिर वहा से थाइलैंड ,कंबोडिया ,वियतनाम ओर पपुआ न्यू गिनी जहा से उन्होंने मसालों से मृत व्यक्ति की मम्मी बनानी सीखी फ्राओ रामसेस जो मिश्र का राजा था वही नाम चकरी डायनेस्टी ने अपने राजा के लिए लिया और उसे फ्रा राम कहा ।

आज भी थाइलैंड में चकरी वंश की वही डायनेस्टी राज रही है ।राजा राम दशम के नाम से ।

इसके बाद रोमन ग्रीक और अंग्रेज डच आते गए वहा मात्र सत्तात्मक समाज पहले से ही था इसलिए वहा का लोकल एडमिनिस्ट्रेशन हाथ मैं लेने और बिजनेस पर्पस से वैवाहिक संबंध बनाने में कोई दिक्कत नही हुई ।
काफी सारी मिशनरीज और गुरुकुल खोले गए ।

कुछ राज्य जैसे कंबोडिया की सारी लैंड आती ही मंदिरो के अंडर थी तथा देवदासी प्रथा नॉर्मल थी ।
स्तन ना ढकना वहा का रिवाज था ।

अंग्रेज डच और फ्रांसीसी लोगों ने वहां रोड्स और कैनाल का जाल बिछाया तथा समुद्र के अंतिम छोर पर पूरा कब्जा जमाए रखा ।

बौद्ध धर्म का प्रचार करने में अंग्रेजों ने भी सहायता की ताकि लोग हिंसा के होकर उनके मार्ग में लूटपाट न करने लगे और छोटे-छोटे गणराज्य को खत्म करके सेंट्रलाइज्ड जम्मू द्वीप,शक द्वीप, भारत वर्ष जावा द्वीप, सुमात्रा द्वीप मलयज द्वीप, सस्य समलम द्वीप , आदि में विभक्त किया

दिल्ली शहर इंडोनेशिया, अयोध्या नगरी थाइलैंड वर्ल्ड हेरिटेज ,हस्तिनापुर ,,कुरुक्षेत्र ,पानीपत शहर , मदुरा या मथुरा शहर ,कैसंबी ,इंद्रावती आदि जितने भी शहर 1947 के बाद इंडिया में बने हैं सब थाईलैंड इंडोनेशिया बर्मा कंबोडिया वियतनाम में पहले से ही मौजूद है।

इनके पहले के धर्म और देवों को राजा के देवी सिद्धांत के अंदर लाया गया और बहुत सारे अलग-अलग देवताओं को एक रूप दिया गया जैसे लिंग पूजन समाज को शिव दिया गया

धर्म के क्षेत्र में वैरायटी रखने के लिए और कनफ्लिक्ट से बचने के लिए किसी भी सर्व शक्तिमान ईश्वर की कल्पना को साकार रूप देकर । राजा या सरकार को उसका प्रतिनिधि लिख डाला गया या साबित कर दिया गया जिससे कि वहां की भूमि के सारे रिसोर्सेस का मालिक राजा ही हो गया।

और 1893 की तरह सबको अपनी तरीके से मॉडिफाई करके शिकागो में धर्म संसद रखी गई जिसका main एजेंडा यही था कि दुनिया में धर्मो और राज्यों की नूरा कुश्ती चलती रहे ताकि दुनिया का ध्यान उनके रिसोर्सेज की लूट से हटा रहे हैं, शहरों में स्थापित अंग्रेज और उनके गुलाम स्वराज की नूरा कुश्ती करते रहते थे जैसे ani बेसेंट जो कि खुद एक अंग्रेज संभ्रांत ओर फ्रीमेजनरी थी।

थियोसोफिकल सोसायटी का निर्माण अमेरिकी निवासी कर्नल ओलकूट ओर मेडम ब्लावत्सकी ने किया ।
इनका कार्य सभी धर्म को समझना और हर व्यक्ति या समाज को किसी न किसी धर्म के खर्चे में फिट करना था।

सन 1879 मैं सोसाइटी का कार्यालय मुंबई लाया गया फिर 1895 में वाराणसी लाया गया वाराणसी शहर के घाटों को अंग्रेजों ने बनवाया था ताकि माल की आवाज जाहि नाव के जरिए हो सके।
थियोसोफिकल सोसायटी ने कई धर्म और सेट इन्वेंट भी किये ।

जैसे उत्तर पश्चिमी भारत में आर्य समाज जहां मांस का सेवन बहुत कम होता था उन्हें मांस न खाने की सलाह देना या गौ रक्षा की सलाह देना अजीबो गरीब था । उत्तर पश्चिमी भारत में या मध्य भारत में किसी भी जाति की महिला कभी सती नहीं हुई तो सती प्रथा पर रोक लगाने का कानून भी उत्तर पश्चिमी भारत के लिए फर्जी था और उनके उपदेश भी बाकी जिनको भीड़ का हिस्सा बना था या अंग्रेजी सरकार ने गुरुकुलों की व्यवस्था की उनको धर्म का प्रचार करने के लिए और अपनी चौकीदारी के लिए तथा डीएवी कॉलेज में पढ़ाई करवाई गई वह एक तरीके से संस्कृत और अंग्रेजी का ही मिक्सर था परंतु इसमें चाल बाजी यह रखी गई । कि गांव के लड़कों को गुरुकुल के लिए प्रमोट किया गया और शहरी परिवेश वालों को इंग्लिश शिक्षा के लिए dav कॉलेज में ।

आर्य समाज के संदर्भ में मूल जी ठेकर्से या दयानंद सरस्वती ने एक बात और कहीं की प्राचीन काल में नॉर्थवेस्ट इंडिया और मध्य भारत में लोग संस्कृत बोलते थे फिर एकदम से भूल गए जबकि यह तर्कसंगत बात बिल्कुल भी नहीं है संस्कृत आज भी किसी भी गांव में नहीं बोली जाती जबकि गांव में प्रयुक्त होने वाला समान जैसे पिड्ढा, खाट,गिदगम ,फावड़ा,kassi, बिटोडा,भूसवाला , बुग्गी,झोटा ,घडोंचा ।

जैसे शब्द संस्कृत में नही मिलते ओर ना ही आसपास के शब्द मिलते ।

यही theosophical society ने ब्रह्म समाज और प्रार्थना समाज बनाया ,इनका उद्देश्य योग ध्यान से ईश्वर की खोज व्यक्तिगत आजादी के प्रिंसिपल।

राष्ट्र की एकता अखंडता की बात करना।

वैष्णव समाज के धर्म और कीर्तन करना समाज की बुराइयां जैसे सती प्रथा विधवा विवाह न होना यह बंगाल और बाली की समस्या है जो इंडोनेशिया में है तो राजा राममोहन राय के सुधारो को यदि बंगाल या बंगाली समाज सुधार आंदोलन कहा जाए तो गलत नहीं होगा सामाजिक भेदभाव जैसे वर्ण व्यवस्था दक्षिण पूर्व के देशों की है या फिर बंगाल की क्योंकि अन्य जगहों पर तो विशेष ट्रेनिंग के बिना ब्राह्मण क्षत्रिय शूद्र वैश्य जैसे शब्द उच्चरित करना भी लोगों को नहीं आता वह बामण छतरी शुदार ,vaisya कहेगा।

इसके अतिरिक्त इजिप्शियन रोमन ग्रीक और अंग्रेज इनके बड़े-बड़े काफिले जाते थे जहां इन्हें टेस्ट करने के लिए जगह चाहिए होती थी उनको चलने के लिए सपाट और सीधा रास्ता चाहिए होता था ।
इसलिए द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना का निर्माण किया गया इंडिया में जीटी रोड, रसिया से यूरोप को जोड़ने के लिए ट्रांस साइबेरियन रेल लाइन।

तथा समुद्री मार्ग बनाए गए।

सुंदर भवन में freemason ने मास्टर की खुद को चार दिवारी के भीतर सुरक्षित रखने के लिए और माल की लोडिंग अनलोडिंग के लिए बनाए गए जैसे दिल्ली और आगरा का लाल किला इसके अतिरिक्त अंग्रेज जो अपने साथ गुलाम लेकर आए थे उनको पहले क्लर्की मैं ट्रेंड किया फिर प्रशासन का कुछ अनुभव दिया फिर नगर निगम चुनाव अपनी देखरेख में 1935 से 37 तक करवा।

1935 में ही संविधान बनकर उनके हाथों में दे दिया था

1946 से 1949 की संविधान सभा एक तमाशा मात्रा थी जिसमें दो तिहाई संविधान 1935 के भारत अधिनियम से लिया गया था जिसको अंग्रेज बनाकर गए थे सिर्फ कुछ फालतू के चैप्टर जोड़े गए आज भी आर्टिकल 147 हमारे संविधान में है जो बताता है कि हम आज भी अंग्रेजों के गुलाम है बल्कि यह कहिए कि 1947 को हम आजाद नहीं गुलाम होना चाहिए।

1935 के अंग्रेजी संविधान में ही समाज में फूट डालने के बीज बोल दिए थे संविधान ने ग्राम गणराज्य को तो एक तरफ रख ही दिया साथ ही समाज को भी एक तरफ रख दिया और व्यक्तिवाद को उसका आधार बनाया लेकिन जब भी कोई कानून बनाए जाता है तो उसे संतुलित किया जाता है यदि आप व्यक्तिवाद के आधार पर संविधान लिखोगे तो आपको हर हाथ हथियार देना ही पड़ेगा नहीं तो सरकार हथियार सहित सरकारी गिरोह आपको नौच डालेगा ।

भारतीय समाजशास्त्री भी बड़े नकल नवी निकले कि उन्होंने गांव में सामाजिक शोषण की बातें उछाली और उसका उदाहरण जो सबसे बड़ा लिया जाता है वह है कि मानव मल उठाया जाता था कुछ जातियों पर जबकि गांव में यह समस्या बिल्कुल भी नहीं रही गांव में आज तक टॉयलेट बना रहे हैं और मानव मल किसान के लिए खाद का काम करता है उसको उसे निकालने में कोई परहेज नहीं ना कल था ना ही आज है तो यह फर्जी शोषण की कहानी सुन कर इन समाज शास्त्रियों ने सोशल फैब्रिक बिल्कुल बिगाड़ रखा है इस टॉपिक पर इंग्लिश या वर्ण वादी लोगों का समर्थन करना हास्यास पद लगता है क्योंकि टॉयलेट शहरों में ही बनवाई जाती थी और शुरू में इसी टाइप की टॉयलेट आई थी कि उसे सर पर धोना पड़ता था लेकिन इस बेस पर अनुसूचित जाति को 15% इलेक्टरल सीट्स मिली हुई है ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत ब्लॉक पंचायत एमपी एमएलए तक जिसका की कोई ठोस ग्राउंड नहीं है और बोगस स्टोरी पर लिखी गई है उल्टा लोग इनसे घृणा और डरने लगे हैं की पता नहीं कहां एट्रोसिटी एक्ट लगवा दे।

तो इनका इलेक्टरल रिजर्व सीट सिस्टम खत्म होना चाहिए और अगर देना भी है तो जातिगत जनगणना करवरकर सभी को दिया जाए संख्या के हिसाब से होम रूल लीग आप सोच कर हैरान हो गए की सभी धर्म की ठेकेदारी थियोसोफिकल सोसायटी पर थी और वह उसको अलग अलग इलाकों में अलग-अलग तरीके से बढ़ा रही थी यह सब बिना किसी प्रयोजन के तो हो नहीं रहा था l इसी होम रूल लीग को भी लीड करने वाली अंग्रेज freemason एनी बेसेंट ही थी 1915 में एनी बेसेंट भारत में अन्य उपनिवेशों में स्वशासन की स्थापना हेतु अभियान प्रारंभ किया न्यू इंडिया और कॉमलवेल द नामक पत्र का संपादन शुरू कर दिया ।

बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट के टकराव से बचने के लिए बाल गंगाधर तिलक ने अपनी नई होमरूल लीग बनाई जिसकी स्थापना 1916 में की इसकी शाखाएं महाराष्ट्र कर्नाटक मध्य प्रांत बर में खोली गई स्वराज की मांग भाषण प्रति की स्थापना तथा शिक्षा का प्रसार मुख्य लक्ष्य घोषित किया गया ।

एनी बेसेंट की होम रूल लीग ने 1916 में मद्रास में ऑल इंडिया होम रूल लीग की स्थापना की मद्रास के अतिरिक्त पूरे भारत में इसकी शाखाएं खोली गई। इसके सदस्यों की संख्या तिलक के सदस्यों की संख्या से अधिक थी अनेक प्रमुख राष्ट्रवादी नेताओं ने उनकी सदस्यता ग्रहण की जिसमें मोतीलाल नेहरू, Jawaharlal Nehru, Bhola Bhai Desai, चितरंजन दास, के एम मुंशी, बी चक्रवर्ती, सैफुद्दीन बिचालु मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, तेज बहादुर सप्रू, एवं भगत सिंह के गुरु लाला लाजपत राय, गोपाल कृष्ण गोखले, और उनकी सर्वेंट सोसायटी बहुत से सदस्यों ने एनी बेसेंट के इस फर्जी स्वराज संघर्ष में अपना नाम लिखवाया
एंग्लो इंडियन, बहुसंख्यक मुसलमान तथा दक्षिण भारत कि गैर ब्राह्मण जातियां इस आंदोलन से दूर रही क्योंकि उनका विश्वास था कि होम रूल का तात्पर्य उच्च वर्ण के शासन से है ।