लता मंगेशकर(Lata Mangeshkar) सोलह साल पहले भय्यू महाराज से मिलने के लिए इंदौर आई थीं। ज्यादा लोगों से नहीं मिलीं। जिस सिख मोहल्ले वाले घर में रहती थीं, वो अब बिक गया। यहां मेहता क्लॉथ स्टोर है।
लता मंगेशकर मीडिया से मिलने को तैयार नहीं थीं, लेकिन भय्यू महाराज के कहने पर मिली। सुखलिया आश्रम में मीडिया से लता ने बात जरूर की, लेकिन सवालों के जवाब नहीं दिए।

इंदौर में बन रहे दीनानाथ मंगेशकर सभागृह बनाने को लेकर उनसे सहयोग नहीं किए जाने का मामला उठा था, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया था। 21 अगस्त 2005 रविवार को होटल सयाजी के कमरा नंबर 611 में लता से इंदौर के अभिषेक गावड़े ने बताया कि सुरेश गावड़ा का भतीजा हूं। अभिषेक से इंदौर के सराफा, राजवाड़ा, पिपलियापाला के बारे में बात की। अभय छजलानी से अच्छे संबंध थे। लता मंगेशकर मुंबई में फ्लाय ओवरब्रिज बनाने को लेकर भी विवादों में रहीं। इंदौर से उनका और भी गहरा नाता रहा है।

must read: Lata Mangeshkar को दिया गया था धीमा जहर, जानें दर्दनाक किस्सा
नेहरू स्टेडियम में 1984 में अभय छजलानी और सुरेश गावड़े ने लता नाइट करवाई थी। नाइट का विरोध उस समय के विधायक सुरेश सेठ ने किया था। उन्होंने सड़कों पर आंदोलन भी किए थे। उस समय के मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह ने छजलानी के कहने पर लता मंगेशकर अवार्ड मध्यप्रदेश में शुरू किया था। लगभग चार साल तक अवार्ड नहीं दे पाए, तब मध्यप्रदेश सरकार के अफसर मनोज श्रीवास्तव ने अवार्ड समारोह शुरू करवा कर पुराने साल के अवार्ड भी दिलवा दिए थे। छावनी में रहने वाले बिन्नीवाल परिवार से भी उनका गहरा नाता रहा है।
लता मंगेशकर के साथ ट्रमपैड बजाते थे उज्जैन के किशोर सोड़ा
must read: अलविदा लता ताई: एक आवाज़ के सहारे हम गाते रहेंगे मेरा जीवन भी सवारों, बहारों
1984 में किशोर कुमार ने उज्जैन के युवक किशोर सोड़ा को लता मंगेशकर से मिलवाया था। उसके बाद वो लगातार दस-बारह साल तक उनके साथ ट्रमपैड बजाते थे। हर कार्यक्रम में साथ में रहते थे। सोड़ा बताते हैं कि वे अपने साथ काम करने वाले कलाकारों की बड़ी इज्जत करती थीं। सोड़ा को ठाकुर साहब कहकर बुलाती थीं। सोड़ा की तारीफ करते हुए कहती थीं कि आप तो आज बड़े मूड में हो, अच्छा बजा रहे हो। पूरी टीम का वो पूरे समय ख्याल रखती थीं। कार्यक्रम में यदि कोई कमी रहती थी, तो बाद में मीटिंग लेकर कलाकारों को समझाती थीं। सोड़ा बताते हैं कि जब वो विदेश कार्यक्रम देने जाती थीं, तो लोग उनकी एक झलक पाने के लिए आतुर रहते थे।
@ राजेश राठौर