कमलनाथ, नाटक-नौटंकी नहीं, यह अच्छी पहल

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दिनेश निगम ‘त्यागी’

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान(CM Shivraj Singh Chauhan) अलग कार्यशैली के कारण इन दिनों लोगों का खास ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं। पहली पहल है सुबह साढ़े 6 बजे से तैयार होकर प्रदेश के लोगों की चिंता में अफसरों से चर्चा और जरूरी हुआ तो उनकी क्लास लेना। दूसरा, आंगनवाड़ी बच्चों के लिए खिलौने इकट्ठा करने हाथ ठेला लेकर भोपाल की सड़कों पर निकलने की उनकी घोषणा। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने तंज कसा है कि ऐसा कर मुख्यमंत्री नाटक-नौटंकी कर रहे हैं। कमलनाथ जी, यह मुख्यमंत्री की अच्छी शुरूआत है। इसलिए जरूरी नहीं है कि हर काम का विरोध ही किया जाए।

कोई मुख्यमंत्री सुबह से तैयार होकर ज्वलंत मुद्दों पर अफसरों से चर्चा करे और जरूरी निर्देश दे तो इसमें गलत क्या है। इससे जनता में नेता के प्रति भरोसा बढ़ता है। दूसरा, यह स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी है। अफसरों की सुबह जल्दी उठने की आदत पड़ेगी, उनका स्वास्थ ठीक रहेगा और समय से वे काम में जुट सकेंगे। शिवराज के हाथ ठेला लेकर निकलने का मतलब यह कतई नहीं कि वे हर रोज ऐसा करेंगे लेकिन ऐसा कर वे लोगों को बच्चों के संरक्षण और उनकी मदद करने का संदेश देंगे। ऐसे प्रयासों को नाटक-नौटंकी की संज्ञा देना उचित नहीं।

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ऐसी ह्रदय विदारक घटनाएं कितनी खतरनाक!

कुछ समय से समाज के अंदर वैमनस्यता का जो जहर बोया जा रहा है, धर्मांध जिस तरह सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने पर आमादा हैं, इसके चलते नीमच के मनासा जैसी ह्रदय विदारक घटनाओं का सामना करने के लिए हमें तैयार रहना होगा। यहां भाजपा से जुड़े एक नेता पर आरोप है कि उसने एक विकलांग बुजुर्ग को मुसलमान समझ कर इतना मारा कि उसकी मौत हो गई। मृतक मुसलमान नहीं बल्कि जैन था। यह हालात खरगोन में हुए दंगों एवं नीमच में हनुमान जी की मूर्ति मजार के पास स्थापित करने के कारण निर्मित हुए हैं।

सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने में देश के विभिन्न हिस्सों में मंदिर-मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद भी आग में घी का काम कर रहे हैं। इतिहास गवाह है कि ऐसी घटनाओं का शिकार राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले नेता कभी नहीं होते, बेकसूर और आम लोग ही मारे जाते हैं। आज एक जैन को मुसलमान समझ कर मार दिया गया, हालात काबू में न किए गए तो आगे भी ऐसा होता रहने वाला है। पहले भी जब दंगे होते थे तो तिलक, दाढ़ी और टोपी देखकर लोगों को मार दिया जाता था। तो क्या देश फिर उसी वीभत्स दौर की ओर जा रहा है। नीमच की घटना तो यही संकेत देती है। क्या देश और समाज के हित में इस वमनस्यता को तत्काल रोकने की जरूरत नहीं है?

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‘स्वामी भक्ति’ पर भाजपा की चुप्पी पर आश्चर्य

भाजपा नेतृत्व यह कहते नहीं थकता कि पार्टी के अंदर ‘व्यक्ति पूजा’ अथवा ‘स्वामी भक्ति’ के लिए कोई जगह नहीं, यहां पार्टी सर्वोपरि है। बावजूद इसके केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया के एक कथन ने ‘स्वामी भक्ति’ की सारी सीमाएं लांघ दीं। बावजूद इसके समूची भाजपा चुप और सिसोदिया के कथन पर कांग्रेस हमलावर है। दरअसल, लोकसभा के पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के तौर पर केपी यादव ने सिंधिया को उनकी परंपरागत सीट गुना-शिवपुरी से हरा दिया था। यह टीस सिंधिया एवं उनके समर्थकों के अंदर आज तक विद्यमान है। यह किसी न किसी रूप में बाहर आ जाती है।

इसी का नतीजा है कि एक कार्यक्रम में सिंधिया की मौजूदगी में सिसोदिया ने कह दिया कि ‘2019 की भूल-कमल का फूल’। इसका तात्पर्य था कि यहां के लोगों ने 2019 के चुनाव में भाजपा को जिता कर बड़ी भूल की है। ऐसा तब कहा जा रहा है जब सिंधिया और सिसोदिया दोनों भाजपा में हैं और केंद्र, राज्य की भाजपा सरकार में मंत्री भी। इसे लेकर कांग्रेस चुटकी ले रही है और भाजपा में सभी को सांप सूंघा हुआ है। कहीं से कोई टिप्पणी नहीं। अनुशासन का दम भरने वाली पार्टी में इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?

स्वाभाव के विपरीत प्रहलाद की यह कसरत

केंद्रीय राज्य मंत्री प्रहलाद पटेल को जानने वालों को मालूम है कि वे जिसे पसंद नहीं करते, उससे कोई संबंध नहीं रखते। पर पिछले कुछ समय से वे स्वाभाव के विपरीत टूटी लड़ियां जोड़ने की कोशिश में हैं। ताजा मामला प्रदेश के पीडब्ल्यूडी मंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता गोपाल भार्गव द्वारा आयोजित 19 वें कन्या विवाह समारोह का है। प्रहलाद इसमें हिस्सा लेने पहुंचे। लंबे समय से दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है। तनातनी इस कदर थी कि एक बार भार्गव से नाराजगी के चलते केंद्र में मंत्री रहते प्रहलाद गढ़ाकोटा थाने में जाकर धरना देने तक पर आमादा थे।

अब ह्रदय परिवर्तन देखिए, प्रहलाद गढ़कोटा पहुंचे और भार्गव की तारीफ में कसीदे भी पढ़ डाले। उन्होंने घोषणा की कि जिस दिन भार्गव का 21000 कन्याओं के विवाह का संकल्प पूरा होगा, उस दिन उनका नागरिक अभिनंदन करेंगे। इसकी वजह भार्गव की भलमंसाहत भी है। उन्होंने प्रहलाद को कभी नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं की। इससे पहले प्रहलाद दमोह में भाजपा के वरिष्ठ नेता जयंत मलैया के साथ समझौते की कोशिश कर चुके हैं। उनसे भी प्रहलाद का छत्तीस का आंकड़ा था। उमा भारती के साथ भी अब उनके मतभेद नहीं हैं। प्रहलाद में इस बदलाव के मायने तलाशे जा रहे हैं।

क्या नेता भी ‘हत्याकांड’ के आरोपियों जैसे!

प्रदेश में राजनीति का एक और रूप देखने को मिलने लगा है। जब भी कोई बड़ा अपराध होता है, आरोपी के फोटो नेताओं के साथ दिखाने की होड़ लग जाती है। प्रदर्शित किया जाता है कि नेता उस अपराधी से कम दोषी नहीं। गुना जिले के ताजा पुलिस हत्याकांड को ही ले लीजिए। शिकारियों के साथ मुठभेड़ में तीन पुलिसकर्मी मौत के आगोश में चले गए थे। एक शिकारी भी मारा गया था। इस कांड के तत्काल बाद आरोपी शिकारियों के कांग्रेस और भाजपा नेताओं के साथ फोटो जारी होने लगे। एक पक्ष ने भाजपा सरकार के मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया के साथ आरोपियों के फोटो जारी किए और दूसरे पक्ष ने दिग्विजय सिंह के विधायक बेटे जयवर्धन सिंह के साथ।

इतना ही नहीं आरोपियों को संरक्षण देने के आरोप में राघौगढ़ किले तक को जमींदोज करने का बयान जारी हो गया। भाजपा और कांग्रेस के नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए सारी मयार्दाएं लांघते नजर आए, जबकि अपराधियों के इनकाउंटर और कार्रवाई को लेकर दोनों पक्षों में कोई मतभेद नहीं थे। सवाल यह है कि नेता इस गंदी राजनीति से कभी उबर पाएंगे भी या नहीं? खास बात यह है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ, अधिकांश आपराधिक घटनाओं पर ऐसा होने लगा है।