‘वायरल हीपेटाइटिस ए’ के संक्रमण और उसकी रोकथाम को समझना बेहद जरुरी – डॉ. गौरव गुप्‍ता, डायरेक्‍टर

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इंदौर। दुनिया ने हाल ही में एक बड़ी महामारी देखी है और हो सकता है कि सबसे बुरा दौर खत्‍म हुआ, लेकिन पिछले दो वर्षों का प्रभाव अब भी सभी देशों और वहां के नागरिकों पर देखा जा रहा है। हालांकि, दुनिया के खुलने के साथ लोग एक बार फिर लोग घरों से बाहर निकलने लगे हैं। यह अर्थव्‍यवस्‍थाओं के लिये अच्‍छी खबर है, लेकिन कई कारणों से हमारा बैक्‍टीरिया और वायरस के साथ संपर्क बढ़ रहा है। इसका मुख्‍य कारण है हमारा मास्‍क के बिना बाहर जाना और हाथों की स्‍वच्‍छता पर ध्‍यान न देना। पिछले कुछ महीनों में खसरा, डेंगू और वायरल हीपेटाइटिस ए (एचएवी) जैसे संक्रमणों और बीमारियों में काफी वृद्धि हुई है।

बच्‍चों में एचएवी का संक्रमण आमतौर पर शांत या सबक्लिनिकल होता है। सिम्‍प्‍टोमेटिक हीपेटाइटिस छह साल से कम उम्र के लगभग 30% संक्रमित बच्‍चों को होता है, लेकिन ज्‍यादातर यह अपनेआप में सीमित बीमारी है, जिसके लक्षण केवल 2 हफ्तों तक रह सकते हैं। इसके विपरीत, एचएवी संक्रमण वाले ज्‍यादा उम्र के बच्‍चे या वयस्‍क आमतौर पर कई हफ्तों तक लक्षण दिखाते हैं, लगभग 70% को पीलिया और करीब 80% को हीपेटोमेगाली (इसमें लिवर बड़ा हो जाता है) होती है। एचएवी संक्रमण में आमतौर पर तेज और अपनेआप में सीमित बीमारी होती है और बहुत कम मरीजों को एक्‍यूट हीपेटिक फेलियर होता है। एचएवी के 0.1% से कम मरीजों को एक्‍यूट लिवर फेलियर (एएलएफ) होता है, जो कि जान के लिये खतरनाक है। एएलएफ होने पर लिवर ट्रांसप्‍लांट से ही जान बचाई जा सकती है।

नेशनल वायरल हीपेटाइटिस प्रोग्राम (एनवीएचपी) के रिकॉर्ड्स के मुताबिक इंदौर में इस साल हर दसवां हीपेटाइटिस संक्रमण 2 से 16 साल के बच्‍चों को हुआ। पिछले छह महीनों में इंदौर का डॉ. गुप्‍ताज क्लिनिक 1.3 से 9 साल के बच्‍चों में सब एक्‍यूट लिवर फेलियर के कम से कम चार मामले देख चुका है, जिन्‍होंने एक्‍यूट वायरल हीपेटाइटिस ए का रूप लिया। एचएवी का ऐसा होना असामान्‍य है, क्‍योंकि एचएवी या तो अपनेआप ठीक हो जाता है या तेजी से बढ़कर एक्‍यूट लिवर फेलियर का रूप लेता है। एचएवी संक्रमण का पता चलने पर इन बच्‍चों को उनके ओपीडी में लाया गया, उन्‍हें 10 हफ्तों से ज्‍यादा वक्‍त से पीलिया था और उनमें शुरूआती जाँच के 3 महीनों बाद लिवर फेलियर के लक्षण विकसित होने लगे। इन बच्‍चों को जान बचाने वाली लिवर ट्रांसप्‍लांट सर्जरी की जरूरत होगी, ताकि वे अच्‍छी गुणवत्‍ता का जीवन जी सकें।

ज्‍यादातर मामलों में एचएवी (जल्‍दी पता चलने पर) अपने आप में सीमित होता है, जिसके लिये किसी खास उपचार या अस्‍पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती है। एचएवी से ठीक होने का सबसे अच्‍छा तरीका है आराम करना, हाइड्रेशन और न्‍यूट्रीशन अच्‍छा रखना, जिससे शरीर को वायरस से उभरने में मदद मिलेगी। इसे ध्‍यान में रखते हुए, एचएवी की रोकथाम बहुत महत्‍वपूर्ण है। चूंकि एचएवी का संवहन मुख्‍य रूप से गुदा-मुख मार्ग से होता है, इसलिये घरों और शौचालयों को हमेशा साफ रखना चाहिये। यह वायरस संक्रमित लोगों के मल में होता है और दो हफ्तों तक मल में इसका सबसे ज्‍यादा उत्‍सर्जन होता है, पीलिया शुरू होने से पहले और बीमारी के शुरूआती चरण में। यह वायरस भोजन और पानी को दूषित कर सकता है या दूषित चीजों के जरिये फैल सकता है। हालांकि शारीरिक संपर्क के कारण एक व्‍यक्ति से दूसरे व्‍यक्ति में इसका फैलना सबसे आम है और द्वितीयक मामले अक्‍सर घर या स्‍कूल में संक्रमितों के कारण होते हैं।

भारत में एचएवी का संक्रमण व्‍यापक रूप से फैला हुआ है, हालांकि यह आमतौर पर जल्‍दी, यानि बचपन में होता है। इस आयु में संक्रमण अक्‍सर बिना लक्षणों वाला रहता है और पुन:संक्रमण से जीवनभर की इम्‍युनिटी मिल जाती है। यह जानना भी जरूरी है कि एचएवी संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण निम्‍नलिखित में से एक या ज्‍यादा उपायों के द्वारा संवहन की श्रृंखला को तोड़ने पर निर्भर करती है। आरोग्‍य और स्‍वच्‍छता के उपायों को बेहतर बनाना। खास प्री-एक्‍सपोजर प्रोफाइलेक्सिस के लिये एचएवी का टीका सबसे प्रभावी विधि है। यह टीके डेल्‍टोइड मसल में लगाये जाते हैं और 6 से 18 महीनों के बीच दो डोज दिये जाते हैं।

यह टीके किसी व्‍यक्ति को एचएवी के संक्रमण से सुरक्षित रखने में भी बहुत प्रभावी हैं, क्‍योंकि यह सुरक्षात्‍मक एंटीबॉडी के लेवल्‍स को 95% से ज्‍यादा कर देते हैं। लेकिन टीके का पहला डोज लेने के बावजूद हीपेटाइटिस ए बच्‍चों और वयस्‍कों में पीलिया का एक आम कारण होता है, जिसके आम लक्षणों में बुखार, थकान, उबकाई, उल्‍टी, भूख न लगना और पीलिया शामिल हैं। निष्‍कर्ष यह है कि आरोग्‍य के अच्‍छे अभ्‍यास और टीके की व्‍यापक पहुँच तथा जागरूकता हमें इस आम संक्रामक वायरल हीपेटाइटिस से नाटकीय रूप से बचा सकती है।

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फोर्टिस हॉस्पिटल, मुलुंड, मुंबई में लिवर ट्रांसप्‍लांट के डायरेक्‍टर और एचपीबी सर्जन डॉ. गौरव गुप्‍ता का इंदौर में हर महीने के दूसरे शुक्रवार में ओपीडी होता है। अपॉइंटमेंट लेकर उन्‍हें सुबह 11 से शाम के 4 बजे के बीच लाइफ केयर हॉस्पिटल में मिला जा सकता है, जिसका पता है: प्‍लॉट नंबर 2, स्‍कीम नंबर 78, पार्ट 2, विजय नगर, इंदौर, मध्‍यप्रदेश- 452010। अपॉइंटमेंट 8451005512/ 9769933452 पर बुक किये जा सक‍ते हैं।