महू के मालवी लोकगायक भेरूसिंह चौहान को कबीर की वाणी को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 27 जुलाई 1961 को जन्मे भेरूसिंह ने मालवा को अपनी कला से नई पहचान दिलाई। बाबा साहब अंबेडकर की जन्मभूमि से ताल्लुक रखने वाले भेरूसिंह ने कहा कि कबीर ने अपने पदों में ईश्वर, आनंद, फकीरी और रईसी की अद्भुत व्याख्या की है, जो आज भी पूरी तरह प्रासंगिक है। उन्होंने आगे कहा, “मैं कबीर की वाणी इसलिए सुनाता हूं ताकि लोग आज के समय में ईश्वर की प्राप्ति का सही मार्ग जान सकें। हम आजकल भौतिकता की ओर भाग रहे हैं, लेकिन सच्ची खुशी तो ईश्वर की भक्ति में ही है।”
9 साल की उम्र में भेरूसिंह ने शुरू किया भजन गायन
भेरूसिंह चौहान ने अपनी 9 साल की उम्र से ही पारंपरिक मालवी लोक शैली में भजन गायन शुरू कर दिया था। वे मालवा क्षेत्र की भक्ति संगीत मंडलियों के साथ गांव-गांव जाकर लोक गायन करते थे। इस दौरान, वे संत कबीर, गोरक्षनाथ, संत दादु, संत मीराबाई, पलटुदा सहित अन्य संतों की वाणियों को जन-जन तक पहुंचाते थे। वे संतों के भजनों को मालवी भाषा में प्रस्तुत करते थे, जिसे लोग अत्यंत श्रद्धा और आदर के साथ सुनते थे। इन कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में ग्रामीण इकट्ठा होते थे और ये संगीतमाला रात भर चलती थी।
विरासत में मिली गायन की कला
भेरूसिंह चौहान ने अपने पिताजी माधुसिंह चौहान के साथ मिलकर लोक गायन किया, और यह कला उन्हें पारंपरिक विरासत के रूप में मिली। वे पिछले 45 वर्षों से लगातार विभिन्न कार्यक्रमों में अपनी गायन कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। भेरूसिंह ने बताया कि उन्होंने देश और विदेश में कबीर वाणी की प्रस्तुतियां दी हैं, और उन्हें यह सौभाग्य प्राप्त हुआ कि वे भक्ति के रस को लोगों तक पहुंचा सके। उनका मानना है कि संगीत और गायन न केवल आत्मिक संतुष्टि प्रदान करते हैं, बल्कि यह व्यक्ति को ईश्वर से भी जोड़ते हैं। भेरूसिंह ने दुनियाभर के प्रसिद्ध कलाकारों के साथ भी प्रस्तुतियां दी हैं, और उनका यह भी मानना है कि कोई भी कलाकार छोटा या बड़ा नहीं होता, हर एक की अपनी विशेषता और शैली का महत्व होता है।