इंदौर : भारतीय विश्वविद्यालय संघ (एआईयू) 17 व 18 जनवरी 2023 को ‘समग्र और बहुआयामी परिवर्तनकारी उच्च शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम’ विषय पर मध्यांचल के कुलपतियों के सम्मेलन का आयोजन कर रहा है। इसकी मेजबानी सिम्बायोसिस यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंसेज, इंदौर द्वारा की जा रही है।
17 जनवरी 2023 को प्रातः 10 बजे प्रोफेसर भूषण पटवर्धन, अध्यक्ष, कार्यकारी परिषद, राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नेक), बेंगलुरू के मुख्य आतिथ्य में इसका उद्घाटन होगा। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के अध्यक्ष प्रोफेसर टी जी सीताराम उदघाटन सत्र में सम्मानित अतिथि होंगे। सम्मेलन में मध्य क्षेत्र के विभिन्न प्रदेशों के लगभग 60 कुलपति व्यक्तिगत और लगभग 100 कुलपति वर्चुअल माध्यम से भाग लेगें।
सिम्बायोसिस यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंसेज, इंदौर के वाइस चांसलर डॉ. पृथ्वी यादव और एआईयू के जनरल सेक्रेटरी डॉ. (श्रीमती) पंकज मित्तल ने बताया कि सम्मेलन की अध्यक्षता प्रोफेसर जी डी शर्मा, उपाध्यक्ष, भारतीय विश्वविद्यालय संघ एवं कुलपति, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (यूएसटीएम), शिलांग करेंगे। भारतीय विश्वविद्यालय संघ की महासचिव डॉ. (श्रीमती) पंकज मित्तल विधिवत आमंत्रण देगी। स्वागत डॉ. स्वाति मजूमदार, कुलाधिपति, सिम्बायोसिस यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंसेज, इंदौर द्वारा किया जाएगा। सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में डॉ. एस रमा देवी पाणि द्वारा संपादित यूनिवर्सिटी न्यूज के विशेषांक का विमोचन भी मुख्य अतिथि द्वारा किया जाएगा।
भारतीय विश्वविद्यालयों के कुलपति, भारत सरकार के मंत्रालयों के अधिकारी, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, आदि जैसे शीर्ष निकायों के अधिकारी और कई शिक्षाविद् इस सम्मेलन में वक्ता और सत्र- अध्यक्ष होंगे। यह सम्मेलन मिश्रित प्रणाली के माध्यम से है। मध्य क्षेत्र यानी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उडीसा, तेलंगाना, महाराष्ट्र के हिस्से और उत्तर प्रदेश के हिस्से के लगभग 60 कुलपति व्यक्तिगत रूप से और लगभग 100 कुलपति आभासी यानी वर्चुअल माध्यम से इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं। यूनिवर्सिटी न्यूज, एआईयू की संपादक डॉ. एस. रमादेवी पाणि, स्कूल ऑफ बैंकिंग फाइनेंशियल सर्विसेज एंड इश्योरेंस मैनेजमेंट, सिम्बायोसिस यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंसेज, इंदौर के डायरेक्टर डॉ. मेघदूत कार्णिक और एआईयू के श्री विजेंद्र कुमार इस सम्मेलन के नोडल अधिकारी है।
डॉ. पृथ्वी यादव ने जानकारी दी कि इस सम्मेलन का मूल विषय “समग्र और बहुआयामी परिवर्तनकारी उच्च शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम” है| यह विषय आत्मनिर्भर भारत के लिए परिवर्तनकारी उच्च शिक्षा विषय का एक उप-विषय है। सम्मेलन में मुख्य रूप से उच्च शिक्षा में कुशल शिक्षा प्रणाली पाठ्यक्रमों को विकसित करने के लिए उच्च शिक्षा संस्थानों द्वारा अपनाई जाने वाली रणनीतियों पर चर्चाएं होगी। इसके अलावा, अंचल के विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षण संस्थानों की प्रगति का जायजा लिया जाएगा। एक-दूसरे से ज्ञान साझा करना, सफलता की कहानियां और अच्छी प्रथाएं, चिंता के विशेष क्षेत्रों और मुख्य चुनौतियों की पहचान करना, आपसी सहयोग की गुंजाइश तलाशना, उच्च शिक्षण संस्थानों, सरकार और अन्य हितधारकों के लिए कार्रवाई बिंदुओं के संदर्भ में आने के तरीके सुझाना आदि पर भी चर्चाएं होगी।
उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए सभी तीनों आयामों यानी शिक्षण, अनुसंधान और सामुदायिक विकास के लिए कार्य बिन्दु होंगे। दो दिवसीय कार्यक्रम में विषय पर चर्चा करने के लिए निम्नांकित 3 तकनीकी सत्र शामिल होंगे। पहले तकनीकी सत्र बहु- विषयक शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के माध्यम से भारतीय ज्ञान प्रणाली को एकीकृत करना विषय पर होगा। दूसरा तकनीकी सत्र शिक्षा-उद्योग समाज को आपस में जोड़ना और तीसरा तकनीकी सत्र परिणाम आधारित अधिगम का होगा।
पाठ्यक्रम वास्त्व में निर्देशात्मक प्रथाओं, सीखने के अनुभवों और विद्यार्थियों के प्रदर्शन के आकलन का संयोजन है, जो किसी विशेष पाठ्यक्रम के लक्ष्य, सीखने के परिणाम को सामने लाने और उनका मूल्यांकन करने के लिए रूपांकित गया है। पाठ्यक्रम किसी भी कोर्स या कार्यक्रम की सफलता में एक प्रमुख चालक है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि छात्रों का प्रवेश और कई प्रवेश छोड़ने वाले छात्रों का प्रतिधारण पाठ्यक्रम के माध्यम से उत्पन्न प्रांसगिकता, उपयोगिता और रूचि निर्भर करता है। पहले विश्वविद्यालय परंपरागत माध्यम से पाठ्यक्रम करने वाले छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम तैयार करते थे। लेकिन अब कई कारणों से जरूरतें लगातार बदल रही है। शिक्षण और शिक्षा पर प्रौद्योगिकियों का प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण है। संपृक्त शिक्षा के अक्सर लोकप्रिय हो रहे है जिसके लिए पाठ्यक्रम मे नए आयामों की आवश्यकता है। स्नातक रोजगार सुनिशिचत करना और उद्यमी स्नातक तैयार करना किसी भी उच्च शिक्षा कार्यक्रम में गुणवत्ता और सफलता के सार्वभौमिक मानकों में से एक है।
भारतीय ज्ञान प्रणाली ने अपनी समृद्धि, प्रासंगिकता और आधुनिक शिक्षा प्रणाली के विकास में योगदान के लिए दुनिया भर में अपार लोकप्रियता हासिल की है। आधुनिक वैश्विक शिक्षा और विज्ञान विशेष रूप से वनों के क्षेत्र, कृषि जैव विविधता, अंतरदेशीय जल, तटीय और समुद्री पारिस्थिथिक तंत्र, रंगभूमि और पर्यावरण, पर्यटन, गणित, भाषा विज्ञान, खांगोल विज्ञान, धातु विज्ञान, सिविल सिविल अभियांत्रिकी , चिकित्सा आदि भारतीय ज्ञान प्रणाली से महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते हैं। भारतीय ज्ञान प्रणाली के प्रति दशकों की लापरवाही और पश्चिमी मानदंडों को ज्ञान के विकास का एकमात्र मानदंड मानने की प्रवृति ने ग्रह पर ही जीवन की स्थिरता के लिए खतरा पैदा कर दिया है। यह उचित समय है कि भारतीय ज्ञान प्रणाली आरंभ करने के लिए भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाने वाले सभी विषयों का एक अभिन्न अंग बन जाए। इसे समय के साथ अन्य देशों द्वारा अपनाया जाएगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में उच्य शिक्षा स्तर पर समग्र और बहु-विषयक शिक्षा को बढ़ावा देने की भी परिकल्पना की गई है, जिसका उद्देश्य बौद्धिक, सौदर्य सामाजिक, शारीरिक, भावनात्मक, पारस्परिक, मानवतावादी और नैतिक क्षमताओं सहित मानव की विविध क्षमताओं को एक एकीकृत तरीके से विकसित करना है।
इन सभी के कारण पाठ्यक्रम विकासकर्ताओं पर छात्रों के व्यापक जरूरतों को पूरा करने और 21वीं सदी की जरूरतों को पूरा करने के लिए विविध आयामों को सुनिश्चित करने का दबाव है। इस बहुआयामी मुद्दे को संबोधित करने का सबसे अच्छा समाधान परिवर्तनकारी उच्च शिक्षा के लिए एक पाठ्यचर्चा की अवधारणा को प्रेरित करना है।
समग्र और बहु- विषयक परिवर्तनकारी उच्च शिक्षा के लिए पाठ्यचर्चा कई दृष्टिकोणों को आपस में जोड़ती है और विविधता ब्लूप्रिंट के माध्यम से सीखने की प्रक्रिया में छात्रों की जरूरतों और ज्ञान का एकीकृत करती है और छात्रों में समग्र सीखने के लिए एक विचारशील और न्यायसंगत स्थान बनाने के लिए प्रशिक्षकों के लिए विविधता की आवश्यकता होती है। परिवर्तनकारी उच्च शिक्षा को उच्च शिक्षा के रूप में माना जा सकता है जो शिक्षार्थियों को चिंतनशील और महत्वपूर्ण विचारक और प्रतिबद्ध तकनीक प्रेमी व्यक्तियों को सशक्त बनाता है जो स्थानीय और वैश्विक समुदायों के लिए सार्थक योगदान देने में सक्षम है।
सम्मेलन में होने वाली चर्चाएं मुख्य रूप से परिवर्तनकारी पाठ्यचर्या के ढांचे, बनावट और घटकों, पाठ्यचर्या रचना करने में प्रमुख मुद्दों का समाधान, परिवर्तनकारी पाठ्यक्रम की रचना, कार्यान्चित और निगरानी करने के लिए पेशेवर कौशल, पाठ्यक्रम बनावट में प्रासंगिक नवीन और सर्वोत्तम प्रथाओं, मामले का अध्ययन और पाठों को साझा करने, समग्र और बहुआयामी उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए परिवर्तनकारी पाठ्यक्रम की क्षमता को खोलने और उपयोग करने के लिए शैक्षिक नेतृत्व, शिक्षकों, नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों को सक्षम करने के तरीके पर केंद्रित होंगी।
भारतीय विश्वविद्यालय संघ (एआईयू) के बारे में
डॉ. (श्रीमती) पंकज मित्तल ने एआईयू के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि भारतीय विश्वविद्यालय संघ (एआईयू) वर्ष 1925 में स्थापित देश के प्रमुख शीर्ष उच्च शिक्षा संस्थानों में से एक है। यह उच्च शिक्षा, खेल और संस्कृति के क्षेत्र में भारत सरकार को शोध आधारित नीति सलाह देने वाली संस्था है। अपनी स्थापना के बाद से, यह भारतीय उच्च शिक्षा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एआईयू के पास दुनिया भर के विश्वविद्यालयों द्वारा दी जाने वाली डिग्री/योग्यता को भारत में दी जाने वाली डिग्री / योग्यता की समकक्षता जारी करने की शक्ति निहित है। एआईयू को स्कूली शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से माध्यमिक/ उच्च माध्यमिक परीक्षा के लिए भारतीय बोर्डों के लिए समकक्षता प्रदान करने के लिए भी अनिवार्य किया गया है। एआईयू एक नीति निर्माण (थिंक टैंक) निकाय है, जिसके पास शैक्षिक गतिविधियां जैसे- उच्च शिक्षा में अनुसंधान अध्ययन आयोजित करने, उच्च शिक्षा पर सूचना ब्यूरो के रूप में कार्य करने, कई अन्य लोगों के बीच भारतीय उच्च शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय निकायों और विश्वविद्यालयों के साथ संपर्क स्थापित करना आदि निर्वाहन की जिम्मेदारियां है। एआईयू राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतर- विश्वविद्यालय खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करता है। राष्ट्रीय खेल संवर्धन संगठन (एनएसपीओ) के रूप में यह सदस्य विश्वविद्यालयों के बीच खेलों को बढ़ावा देता है और खेलों में मानकों को बनाए रखता है। एक शीर्ष सलाहकार संस्था होने के नाते, यह देश में सभी प्रमुख निण्रय लेने वाली समितियों और आयोगों का एक अभिन्न अंग है।
भारतीय विश्वविद्यालयों के एक प्रतिनिधि निकाय के रूप में, यह भारतीय विश्वविद्यालयों के बीच सहयोग और समन्वय की सुविधा प्रदान करता है और सामान्य हित के मामलों में विश्वविद्यालयों और सरकारों (केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों) और अन्य देशों में उच्च शिक्षा के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय निकायों के बीच संपर्क करता है। जबकि सभी भारतीय विश्वविद्यालय इसके योगदान से लाभान्वित होते हैं। वर्तमान में इसके पास अन्य देशों के 14 विदेशी विश्वविद्यालयों सहित लगभग 912 विश्वविद्यालयों की सदस्यता है जिनमें भूटान, संयुक्त अरब अमीरात, कजाकिस्तान, मॉरीशस, मलेशिया, नेपाल इसके सहयोगी सदस्य हैं