हादसों को रोकने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों ने चार साल पहले योजना बनाई थी, लेकिन भूमि अधिग्रहण में काफी समय लग गया। कुछ हिस्सा वन क्षेत्र में था, जिसकी अनुमति भी देर से मिली। इसके बाद, दो साल पहले निर्माण कार्य की शुरुआत हुई।
पिछले दस सालों में यह घाट 300 मौतों का कारण बन चुका था। ढलान अधिक होने के कारण यहां अक्सर भारी वाहनों के ब्रेक फेल हो जाते थे, जिससे अनियंत्रित वाहन अन्य वाहनों से टकरा जाते थे।
बाइपास बनने में चार साल लगे
हादसों को रोकने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों ने चार साल पहले योजना बनाई थी, लेकिन भूमि अधिग्रहण में काफी देरी हुई। कुछ हिस्सा वन भूमि का था, जिसकी अनुमति भी देर से मिली। अंततः दो साल पहले निर्माण कार्य शुरू किया गया।
सड़क निर्माण के लिए 12 लाख घन मीटर मिट्टी और चट्टानों के मलबे को हटाया गया। इसके बाद, ढलान को सुधारने के लिए 11 लाख घन मीटर मिट्टी और मुरम का भराव किया गया। इसके बाद, 8 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण किया गया, जो तीन लेन वाली और 10.30 मीटर चौड़ी है।
बाइपास में खर्च हुए 106 करोड़
बाइपास के निर्माण पर 106 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। अब इंदौर से मुंबई की दिशा में जाने वाले वाहन बाइपास का इस्तेमाल करेंगे, जबकि मुंबई से इंदौर की तरफ आने वाले वाहन पुराने मार्ग से गुजरेंगे। पुराने मार्ग पर हुए हादसों में 1500 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं। अक्सर ब्रेक फेल होने के कारण वाहन आपस में टकरा जाते थे, जिससे घर्षण के कारण आग भी लग जाती थी।