भारतीय योग दर्शन : एकाग्रता में वृद्धि के लिए करें पश्चिमोत्तान आसन, दृढ़ होगा तन प्रसन्न रहेगा मन

Shivani Rathore
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भारतीय योग दर्शन में पश्चिमोत्तान आसन (Paschimottan asana) एक अत्यंत महत्वपूर्ण आसन माना गया है। पश्चिम और उत्तान शब्दों की संधि से बने शब्द पश्चिमोत्तान का अर्थ है पृष्ठ भाग में खिंचाव। इसके अनुसार पश्चिमोत्तान आसन को करने से शरीर के पृष्ठ भाग यानी पिछले हिस्से पर विशेष प्रभाव पड़ता है और स्नायु तंत्र मजबूत होता है
इस आसन को करने से मेरुदंड में विशेष सहजता आती है।

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कब्जियत, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए हैं रामबाण

पश्चिमोत्तान आसन को करने से पेट से संबंधित परेशानियों में विशेष लाभ होता है। पुरानी से पुरानी कब्जियत भी दूर होती है साथ ही पाचनतंत्र मजबूत होता है और पेट की चर्बी धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। इसके साथ ही मधुमेह यानी डायबिटीज में भी पश्चिमोत्तान आसन विशेष कारगर माना गया है इसके नियमित अभ्यास से शुगर लेवल तेजी से निचे आता है । हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों को भी विशेष सावधानी के साथ इस आसन को करने से सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं।

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पश्चिमोत्तान आसन को करने की विधि

इस आसन को खाली पेट किया जाना चाहिए। सुबह के अलावा संध्या को भी इस आसन का अभ्यास कर सकते हैं। इसको करने के लिए खुली साफ जगह पर दरी अथवा चादर बिछा लें। उसके बाद दोनों पैरों को चिपका कर सीधे लेट जाएं। अब दोनों हाथों को समानांतर रखते हुए पीछे ले जाएं। अब गर्दन , सिर और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए आगे की ओर आते हुए ऊपर उठें। अपने हाथों से अपने पैरों को छूने का प्रयास करें, अभ्यास के बाद इस आसन में पैरों के अंगूठों को हाथों से पकड़ा जाता है । शुरुआत में जहां तक सुविधाजनक हो वहां तक ही आगे जाएं। इस दौरान गहरी साँस लें और धीरे धीरे छोड़ें। कुछ देर इसी स्थिति में बने रह कर , वापस पूर्व की स्थिति में आ जाएं।

सावधानियां

इस आसन को यूँ तो बच्चे , बुजुर्ग महिलाएं सभी कर सकते हैं, परन्तु स्लिप डिस्क और पुराने पीठ दर्द के मरीजों को इस आसन को करने से बचना चाहिए। इसके साथ ही अस्थमा के मरीजों को भी इस आसन को नहीं करना चाहिए अथवा किसी विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।