कानूनों का अंधानुकरण से बरबाद होता इंडियन समाज

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डेली मेल लंदन का एक प्रतिष्ठित अख़बार है , जिसने कुछ दिन पहले टेलर स्विफ्ट के लिये छापा था कि जो औरत 34 की उम्र तक कँवारी है और पिछले कुछ सालों में ही जिसने दस से ज़्यादा सेक्स पार्टनर्स बदल लिए हैं , वह हमारे बच्चों के लिए एक रोल मॉडल कैसे हो सकती है ! यह सवाल हिन्दोस्तान के उन थेथर लोगों के मुँह पर तमाचा था जिन्होंने पश्चिम को लस्ट में लिपटे होने का हवाला देकर हिन्दोस्तान में भी उदारवादी सोच के नाम पर लंपटता को सामान्यीकृत किया!

पश्चिम का हवाला देकर कहा गया था कि विकसित देशों के विकसित होने के पीछे कारण है कि वहाँ सिगरेट खुले में नहीं पी सकते लेकिन सेक्स खुले में कर सकते हैं ! वहाँ सोशल नॉर्म्स को तवज्जो नहीं दी जाती और व्यक्ति वहाँ कुछ भी करने के लिए आज़ाद है , इसीलिए वे देश विकसित हैं या फर्स्ट वर्ल्ड हैं ! जबकि फर्स्ट वर्ल्ड होने के पैमाने क्या हैं यह हम पीछे चर्चा कर चुके ! अब कोई डेली मेल की वह कटिंग दिखाकर उन लोगों और सत्ता से सवाल करे कि क्या हिन्दोस्तान में किसी अख़बार में यही बात कंगना राणावत के लिए छापने की कुव्वत है और अगर छाप भी दिया जाए तो क्या सत्ता उसे टॉलरेट करेगी ?

सरकार के लिए लंपटवाद पर चोट टॉलरेट करना तो दूर की बात है , यहाँ तो सत्ता के नुमाइंदे कंगना राणावत को पता नहीं अपने किन किन धार्मिक किरदारों के बराबर तोल रहे हैं ! अब यह भी हो सकता है कि इनके उन धार्मिक किरदारों का आचरण कंगना से मेल खाता हो लेकिन यह किरदार हिन्दोस्तान की सामाजिकता के विरुद्ध है ! उधर एक क्षेत्रीय दल ने भी समलैंगिकता नाम के मेंटल डिसऑर्डर से पीड़ित किसी आदमी को अपनी पार्टी में कोई बड़ा पद सौंप दिया !

आपने इनको अपने प्रतिनिधियों के तौर पर चुना है और आपको इंडिया के सबसे बड़ी डेमोक्रेसी होने पर घमंड भी है तो फिर अपने इन प्रतिनिधियों से पूछिए कि इन्हें सामाजिकता से इतनी नफ़रत क्यों है , क्यों ये लोग सामाजिक तौर पर घिनौने समझे जाने वाले कामों में लिप्त आदमियों को समाज के सिर पर बैठाते हैं ! इनसे पूछिए कि फर्स्ट वर्ल्ड के किसी भी मुल्क में क़ानून और सरकार, सोशल नॉर्म्स और समाज से इतनी नफ़रत नहीं करते जितनी हिन्दोस्तान में क़ानून और सरकार सामाजिकता और ग्रामीण रिवायतों से करते हैं ! क्या हिन्दोस्तान में सरकारें किसी ख़ास एजेंडा के तहत काम करतीं हैं , जिसका आख़िर मक़सद समाज और सामाजिकता को नेस्तनाबूद करना है ? लोकतांत्रिक देश में विपक्ष होने के नाते यह सवाल करने का सबसे पहला हक़ तो कांग्रेस का है , क्या उनमें यह सवाल दागने की कुव्वत है या फिर उनकी भी इसपर सरकार के साथ मूक सहमति है ?