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निष्ठावान कार्यकर्ताओं को क्यों भूला दिया, वे दरी ही बिछाते रह गए और आयाराम – गयाराम के मोह में अपनों को झूला दिया

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By Srashti BisenPublished On: June 8, 2024

वक्त की महिमा अपरंपार है। बैसाखी पर सरकार है। जिनको भयभीत कर देने की ताकत थी अब उनसे भय है। अनेक खूबियों वाले खास लोकतंत्र की जय है। चार सौ पार का नारा देने वालों की चिंता का नहीं ये तो चिंतन का समय है। ऐसी कौन कौन सी वजह रही जिनसे हुआ उनके सुनिश्चित वोट बैंक में क्षय है। सिद्ध हुआ कि प्रजातंत्र में प्रजा महान जिसके बल पर तंत्र है। समय समय पर आत्मावलोकन ही चुनावी राजनीति का मूलमंत्र है।

अनियंत्रित महंगाई और बेरोजगारी के साथ साथ तानाशाही भी एक कारण है। क्यों नहीं कर पाए वर्षों से समर्पित निष्ठावान कार्यकर्ताओं की समस्या का निवारण है । अनुशासन का डंडा तो चला दिया लेकिन दूसरे दलों को तोड़ने की मंशा में अपने पुश्तैनी कार्यकर्ताओं को भुला दिया। दरी बिछाने वाले दरी ही बिछाते रह गए और गैर विचारधारा के स्वार्थी आयाराम – गयाराम के मोह में अपनों को झूला दिया। वर्षों से सत्ता सुख से विमुख दल प्रेमियों की चाहत पदों का लाभ लेने की होती है। उनको वंचित कर देने पर ही कालांतर में पार्टी सीटें खोती है।

निष्ठावान कार्यकर्ताओं को क्यों भूला दिया, वे दरी ही बिछाते रह गए और आयाराम - गयाराम के मोह में अपनों को झूला दिया

आरक्षित वर्ग से मोह और सवर्णो की उपेक्षा दलगत राजनीति के लिए घातक है। निचला तबका चकोर है तो ऊंचा तबका चातक है । सत्ता की डोर बंधी है हर वर्ग के मतदाताओं से। पिता को भुलाकर हम क्या अपेक्षा रख सकते हैं माताओं से। व्यापारी वर्ग की नाराजगी और उद्योगपतियों पर लगाम। सत्ता के सिरमायेदारों का भी बिगाड़ देती है काम। जिनकी जेबों से कर वसूली हो रही है वो भी उसके उपभोग का हकदार है। क्या जातियों , जनजातियों और वनांचल क्षेत्र के शोषितों की ही सरकार है। जिन पर खूब भरोसा किया उन्होंने ही नैया डुबाई है।

साइकिल उन्हीं पिछड़ों की बदौलत फिर से राजनीति की धारा में आई है। अयोध्या में राम तो आ गए लेकिन नगर के रहवासी दुखी हैं । उनकी वर्षो की विरासत बर्बादी से वो कैसे सुखी हैं। किसी की भी ज़िन्दगी की बेदखली मंजूर नहीं होती। निजी हितों पर प्रहार हो तो जनता आंखे भिगोती। संपदा और रोजगार प्रभावित होने पर मुआवजे का प्राचीन प्रावधान नीति संगत रहा था। जमीन जायदाद राजसात होने पर उनका उचित बन्दोबस्त हो ये तो चाणक्य ने भी कहा था। अनेक बेघरबार दुखी होकर सबक सिखाने को लालायित थे । हराने के लिए वे ही आतुर थे जो नीतियों के तानाशाही रुख से प्रभावित थे।

एक धर्म के अनुयायी जिनका तुमको साथ रहा वो शिथिल थे और तुम्हारे कट्टर विरोधी धर्मावलम्बी सक्रिय रूप से सबक सिखाने का मन्तव्य लेकर सड़क पर उतर गए। तुम समझ भी नहीं पाए ढंग से और तुमने जिन चूहों को पोषित किया वो ही तुम्हारा पजामा कुतर गए। खुद के नहीं गठजोड़ के बल पर सरकार तो फिर आ ही गई है ये तो सर्वमान्य सत्य है। मगर अब फूंक फूंक कर कदम बढ़ाकर निर्णय लेना होंगे जो सवेदनशील कृत्य है। नया कार्यकाल आम सहमति का नया अनुभव देकर जाएगा। पांच साल में पचास बार तुमको पूर्ण बहुमत के फायदों की याद दिलाएगा। सत्ता का ध्रुवीकरण अब दो ताकतों से निकलकर अनेक ताकतों की झोली में होगा । कदम कदम पर कड़वाहट का स्वाद सत्ता विरोधियों की बोली में होगा। अब कार्यकर्ता की ताकत का एहसास पुनः होने लगेगा। तब तक आप कमजोर रहोगे जब तक आपका समर्थक नही जगेगा।