कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कड़ा हमला करते हुए कहा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 16 बार यह दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित युद्ध को रोका, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने आज तक एक बार भी इसका खंडन नहीं किया।
ओडिशा में खड़गे ने साधा निशाना
जब कोई विदेशी नेता देश की संप्रभुता से जुड़ी बातों पर दावा करता है, तो देश के प्रधानमंत्री को बोलना चाहिए। लेकिन मोदी जी की चुप्पी क्या इस बात की पुष्टि नहीं करती कि वो बात सही थी? देश की विदेश नीति कमजोर हो गई है, आत्मसम्मान को आंच आई है। खड़गे ने इस मौके पर भारत की विदेश नीति पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की नीति सिर्फ प्रचार तक सीमित रह गई है। मोदी जी विदेशी दौरों पर गले तो बहुत मिलते हैं, लेकिन जब बात भारत की गरिमा की आती है, तो चुप्पी साध लेते हैं। उन्होंने ट्रंप के उस कथन को लेकर भी निशाना साधा जिसमें उन्होंने कहा था कि मोदी ने खुद उनसे मध्यस्थता की पेशकश की थी। हालांकि भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से इससे इनकार किया था, लेकिन खड़गे ने कहा कि प्रधानमंत्री को खुद सामने आकर इस मुद्दे पर सफाई देनी चाहिए थी।

ट्रंप के दावों पर बार-बार चुप रहना
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान कई बार सार्वजनिक रूप से यह कहा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध को रोकने में भूमिका निभाई। उनके अनुसार, मोदी ने उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की थी। भारत सरकार ने ट्रंप के दावों को कभी जोरदार ढंग से सार्वजनिक मंचों पर नहीं नकारा, जो विपक्ष के लिए लगातार एक मुद्दा बना रहा है। खड़गे ने इसी चुप्पी को केंद्र बनाकर यह सवाल उठाया कि क्या यह मोदी सरकार की रणनीतिक मौन नीति है या फिर भारत की संप्रभुता पर समझौता?
विपक्ष का संदेश साफ
विदेश नीति को भी चुनावी मुद्दा विपक्ष की ओर से बना सकता है। खड़गे का ये बयान इस बात का साफ संकेत है कि कांग्रेस पार्टी अब विदेश नीति, कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी चुनावी विमर्श का हिस्सा बनाने जा रही है।
उन्होंने कहा कि देश को एक ऐसा प्रधानमंत्री चाहिए जो बोल सके, जो देश की प्रतिष्ठा के लिए दुनिया के किसी भी नेता के सामने साफ-साफ बात कह सके।
खड़गे के बयान पर क्या होगा पलटवार
खड़गे ने पीएम मोदी की तुलना भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों से करते हुए कहा कि, नेहरू, इंदिरा गांधी और मनमोहन सिंह जैसे नेताओं ने कभी देश के आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। खड़गे द्वारा उठाया गया यह मुद्दा सिर्फ ट्रंप और मोदी के रिश्तों तक सीमित नहीं, बल्कि भारत की विदेश नीति, संप्रभुता और नेतृत्व की छवि से भी जुड़ता है। अब जैसे-जैसे बिहार के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, विपक्ष इस मुद्दे को जनता के सामने लाकर यह बताना चाहता है कि मौजूदा नेतृत्व न सिर्फ घरेलू मोर्चों पर असफल है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी भारत की आवाज़ कमजोर हो रही है। अब देखना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी और भारतीय जनता पार्टी इस बयान पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं, और क्या यह मुद्दा चुनावी मंचों पर लंबी बहस का कारण बनेगा।