Bihar Election: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर एनडीए को सत्ता सौंप दी है। एनडीए ने 243 में से 200 से अधिक सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया, वहीं तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन महज 34 सीटों पर सिमट कर रह गया। चुनाव नतीजों के बाद अब इस बात का विश्लेषण हो रहा है कि कांटे की टक्कर के बावजूद महागठबंधन सीटों में क्यों पिछड़ गया।
आंकड़ों पर नजर डालें तो महागठबंधन का वोट शेयर पिछली बार की तरह 37.2% पर ही टिका रहा, जबकि एनडीए ने अपने पिछले 37.3% वोट शेयर में 10% से ज्यादा की बढ़ोतरी करते हुए 47.7% वोट हासिल किए। इस बड़ी हार के पीछे कई रणनीतिक चूक और विवादास्पद घटनाएं जिम्मेदार मानी जा रही हैं, जिन्होंने महागठबंधन की छवि को नुकसान पहुंचाया।
छठ पर बयान और नीतीश का अपमान
चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी का एक बयान महागठबंधन पर भारी पड़ा। 29 अक्टूबर को मुजफ्फरपुर की रैली में उन्होंने कहा था कि पीएम मोदी को छठ पूजा से कोई लेना-देना नहीं है, वे सिर्फ वोट के लिए ड्रामा करते हैं। एनडीए ने इसे बिहार की अस्मिता और आस्था के पर्व छठ का अपमान बताकर मुद्दा बना दिया। भाजपा ने इसे राहुल का हिन्दू विरोधी आचरण करार दिया और हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करने में सफल रही। इसके अलावा, राहुल और तेजस्वी द्वारा लगातार नीतीश कुमार को ‘पलटू राम’ कहना और उन्हें ‘बूढ़ा’ और ‘लाचार’ मुख्यमंत्री बताना भी उल्टा पड़ा। इसे नीतीश कुमार के लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) और अति पिछड़े वोटरों ने बिहार का अपमान माना।
‘जंगल राज’ की वापसी का डर
तेजस्वी यादव ने मुस्लिम-यादव समीकरण साधने के लिए बाहुबली नेता शहाबुद्दीन के परिवार को तरजीह दी, जो उनके लिए नुकसानदायक साबित हुआ। सीवान में तेजस्वी ने शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा सहाब के साथ मंच साझा किया, जहां ‘शहाबुद्दीन अमर रहें’ के नारे लगे। भाजपा ने इसे ‘जंगल राज’ की वापसी का प्रतीक बताकर जमकर प्रचार किया।
“शहाबुद्दीन जिंदाबाद के नारे से ही महागठबंधन की हार तय हो गई थी। बिहार की जनता जंगल राज नहीं चाहती।” — मनोज तिवारी, भाजपा सांसद
इसके अलावा, तेजस्वी समर्थकों द्वारा सोशल मीडिया पर ‘भूराबाल’ (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, कायस्थ) साफ करो जैसे नारे उछाले गए, जिससे सवर्ण मतदाता महागठबंधन से दूर हो गए।
ओवैसी को चरमपंथी बताना
मुस्लिम वोटों को एकजुट रखने की कोशिश में तेजस्वी यादव ने AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को ‘चरमपंथी’ कह दिया। इस बयान ने मुस्लिम समुदाय के एक बड़े हिस्से को नाराज कर दिया। ओवैसी ने इसे मुसलमानों का अपमान बताते हुए सीमांचल की अपनी रैलियों में खूब भुनाया। इसका नतीजा यह हुआ कि मुस्लिम बहुल 24 सीटों पर वोट बंट गए और ओवैसी की पार्टी 5 सीटें जीतने में कामयाब रही, जिससे सीधा नुकसान महागठबंधन को हुआ।
मुस्लिम समुदाय की उपेक्षा
बिहार की लगभग 17% मुस्लिम आबादी को महागठबंधन से टिकट बंटवारे में निराशा हाथ लगी। आरजेडी ने अपने कोटे की 143 सीटों में से सिर्फ 18 मुसलमानों को उम्मीदवार बनाया, जबकि यादव जाति को 50 से अधिक टिकट दिए। इतना ही नहीं, जब उपमुख्यमंत्री चेहरे का ऐलान हुआ तो 3% आबादी वाले मुकेश सहनी को चुना गया, लेकिन 17% वाले मुस्लिम समुदाय को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला। इस अनदेखी ने मुस्लिम मतदाताओं की नाराजगी बढ़ाई, जिसका खामियाजा चुनाव नतीजों में दिखा।
पारिवारिक कलह और तेज प्रताप
आरजेडी के भीतर की पारिवारिक कलह भी हार का एक बड़ा कारण बनी। चुनाव से ठीक पहले लालू प्रसाद यादव द्वारा अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया। इससे जनता में यह संदेश गया कि जो परिवार नहीं संभाल सकता, वह राज्य क्या संभालेगा। बाद में तेज प्रताप ने अपनी अलग पार्टी बनाकर कई सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिससे यादव वोटों का बंटवारा हुआ और तेजस्वी का खेल बिगड़ गया। हार के बाद तेज प्रताप ने तंज कसते हुए कहा, “तेजस्वी फेलस्वी हो गए।”











