MP Employees Promotion : लंबे इंतजार के बाद आखिरकार मध्य प्रदेश की सरकारी कर्मचारियों को बड़ी खुशी मिलने वाली है।उनके प्रमोशन का रास्ता साफ हो सकता है। इसको लेकर मुख्यमंत्री ने विधानसभा में 14 मार्च को संकेत दिए थे। मुख्यमंत्री के खाने के मुताबिक जल्दी कर्मचारियों के प्रमोशन का रास्ता साफ होने वाला है।
इससे प्रदेश सरकार प्रमोशन प्रक्रिया को लागू करेगी। यदि इस पर अमल किया जाता है तो हजारों कर्मचारियों का लंबा इंतजार समाप्त होगा। 9 साल से प्रदेश में कर्मचारी अधिकारी के प्रमोशन रुके हुए हैं।

तीन क्राइटेरिया तय
इस दौरान एक लाख से ज्यादा अधिकारी कर्मचारी बिना प्रमोशन के ही रिटायर भी हो चुके हैं लेकिन अब सरकार द्वारा तीन क्राइटेरिया तय किया गया है। इससे प्रमोशन का रास्ता आगे बढ़ सकता है। तीनों क्राइटेरिया की प्रक्रिया को आगे बढ़ने से उनके प्रमोशन में उन्हें लाभ मिल सकती है।
हाल ही में हाई कोर्ट ने तीन अहम निर्णय दिए हैं। जिसमें पशु चिकित्सको सहित नगरीय निकाय इंजीनियर और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को प्रमोशन देने का आदेश इसमें शामिल है। इसके बाद सरकार को यह निर्णय लेना है कि अब आगे की रणनीतिकैसे तय की जाए सरकार द्वारा बनाए गए।
तीन क्राइटेरिया
तीन क्राइटेरिया की बात करें तो
- कर्मचारी को उनकी वरिष्ठता के आधार पर प्रमोट किया जाएगा लेकिन अभी यह साफ नहीं है कि वरिष्ठता की गणना किस तारीख से की जाएगी?
- वही प्रमोशन प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन मामलों के अंतिम निर्णय के आधार पर आगे बढ़ाया जाना है।
- 2002 से अब तक जिन 60000 से अधिक एससी एसटी कर्मचारी को प्रमोशन मिला है। उनका डिमोशन नहीं किया जाएगा। हाई कोर्ट ने 31 मार्च 2024 को दिए अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि 2002 के आधार पर हुए प्रमोशन रद्द किए जाएंगे लेकिन सरकार इसका नया समाधान निकालने की तैयारी कर रही है।
कर्मचारियों के लिए प्रमोशन के रास्ते सफल
यदि इन तीनों क्राइटेरिया को साथ लेकर चला जाता है तो कर्मचारियों के लिए प्रमोशन के रास्ते सफल हो सकते हैं। प्रमोशन को लेकर सीएम मोहन यादव के बयान के बाद कर्मचारियों में उम्मीद बढ़ गई है। लेकिन ऐसा तभी संभव हो सकेगा, जब विपक्ष के समर्थन से प्रमोशन से जुड़े मुद्दे को स्थाई समाधान मिलेगा। अब सवाल उठता है कि क्या सरकार इस मुद्दे को पूरी तरह से सुलझा सकेगी या फिर एक बार फिर से यह मामला राजनीतिक हस्तक्षेप के हत्थे चढ़ जाएगा?
यह था मामला
बता दे की 2002 में तत्कालीन सरकार ने प्रमोशन के नियम बनाते हुए प्रमोशन में आरक्षण लागू किया था। ऐसे में आरक्षित वर्ग के कर्मचारी प्रमोशन पाते गए लेकिन अनरिजर्व कैटेगरी के कर्मचारी इसमें पिछड़ गए। जब इस मामले में विवाद बढ़ने लगा तो कर्मचारियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
कोर्ट से प्रमोशन में आरक्षण खत्म करने का आग्रह किया गया था, जब 2016 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस नियम को रद्द किया। तब बात खत्म नहीं हुई और सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। जहां प्रमोशन की प्रक्रिया पूरी तरह से ठप्प पड़ गई थी। वहीं 2018 के विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे को राजनीतिक मोड़ दिया गया था। अब सरकार इस पर तेजी से फैसला लेने की और अग्रसर दिख रही है।