कथित तौर पर आरटीआई एक्टिविज्म(RTI activist) के नाम पर संविधान द्वारा प्रदत्त सूचना के अधिकार का दुरुपयोग(misusing Right to Information) करने वाले लोगों के खिलाफ इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह(Indore Collector Manish Singh) द्वारा सख्त रुख अपनाने के बाद इस मामले में नए नए खुलासे सामने आ रहे हैं।
ताजा जानकारी के अनुसार महू सिविल अस्पताल(Mhow Civil Hospital) के प्रभारी डॉ हंसराज वर्मा ने भी कलेक्टर से शिकायत की हैं। उन्होंने बताया कि आरटीआई एक्टिविज्म के नाम पर ब्लैकमेलिंग के उद्देश्य से शिकायत करने वाला एक शख्स घनश्याम पाटीदार हैं। जो पहले महू सिविल अस्पताल में ही रोगी कल्याण समिति के माध्यम से जॉब करता था। लेकिन उसे आर्थिक अनियमितताओं की शिकायतों के बाद हटा दिया गया था।
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और उसके विरुद्ध ऐसी कार्रवाई होने के बाद से वो लगातार अस्पताल के विरुद्ध शिकायत कर अधिकारियों को ब्लैकमेल करता रहता हैं। और बताया गया कि घनश्याम पाटीदार अब तक सिविल अस्पताल की 183 शिकायतें कर चुका हैं। हालांकि अब कलेक्टर मनीष सिंह के निर्देश पर एडीएम ने जमानती वारंट जारी कर कार्रवाई शुरू कर दी गई हैं।

वहीं हाल ही में आरटीआई एक्टिविस्ट संजय मिश्रा के खिलाफ कलेक्टर मनीष सिंह द्वारा FIR कराने के आदेश दिए जाने के बाद कई स्कूल संचालक शिक्षा विभाग के कर्मचारी और अन्य लोग अपर कलेक्टर अभय बेडेकर के पास पहुंचे। उन्होंने जानकारी दी कि लंबे समय से संजय मिश्रा उन्हें भी प्रताड़ित कर रहा है। यही नहीं कलेक्टर कार्यालय के भी कुछ कर्मचारियों ने अभय बेडेकर को संजय मिश्रा के खिलाफ बयान दिए हैं। श्री बेडेकर ने बताया कि इन सभी के बयानों की जांच की जा रही है और जल्द ही संजय मिश्रा के खिलाफ FIR दर्ज कराई जाएगी। उन्होंने बताया कि संजय मिश्रा की संपत्ति की जांच भी की जाएगी।
हालांकि इस पूरे मामले में इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह द्वारा सख्त रुख अपनाने को लेकर कई गंभीर सवाल भी उठाये जा रहें हैं इसी कड़ी में एडवोकेट अजय गौतम ने अपनी बात रखते हुए कहा कि सूचना का अधिकार यानी आरटीआई को आम जनता के भले के लिए ही कानून बनाया गया है। और यदि कोई इसका प्रयोग अपने निजी हित के लिए करता है तो यह बेईमानी है, पर कोई भ्रष्ट अधिकारी अपने कुकर्मों को छुपाने के लिए आरटीआई एक्टिविस्ट पर ही FIR दर्ज कराता है तो यह भी बेईमानी की श्रेणी में आता हैं।