माना तुम्हारा व्यापार घटा है…क्योंकि तुम्हारी दुकान से धोखा देने वाला नाम हटा है…

Shivani Rathore
Published on:

प्रखर वाणी
=========

मुंह में राम बगल में छुरी की कहावत सुनी है…तुमने हर काम के लिए राम नहीं छूरी ही चुनी है..

नाम लिखवाकर दुकान पर पहचान बताना जरूरी है…बिन पहचान के कावड़ियों की अनभिज्ञता मजबूरी है…धर्मध्वजा के वाहक बोल बम के निनाद के साथ कांधे पर कावड़ धारण कर निकलते हैं…उनके पवित्र भाव शुद्ध सात्विक आहार विहार हेतु मचलते हैं…तुम धोखा देने के लिहाज से भगवान के नाम पर प्रतिष्ठान बना लेते हो…आने जाने वालों को दिल से नहीं महज जुबान से जय शिवशंकर कहते हो…

मुँह में राम बगल में छूरी की कहावत हमने खूब सुनी है…तुमने भी तो हर काम के लिए राम नहीं छूरी ही चुनी है…दगाबाज आचरण के चलचित्रों…कावड़ियों के प्रलोभन हेतु दिखावटी मित्रों…तुमने कौन से ऐसे काम व नाम अब तक करे व धरे हैं…जिसको देखकर – सुनकर हम माने की तुम्हारे आचरण विश्वसनीयता में सौ टंच खरे हैं…कोरोना में दरवाजों पर थूककर जाने वालों के अनेक उदाहरण मिले हैं…

तबलीगी जमात के भंडाफोड़ के बाद भी जिनके चेहरे खिले हैं…तुम पप्पू , सोनू , गोलू , बबलू नाम रखकर अनेक प्रसंगों में दगाबाजी करते आये हो…बकरों की दहाड़ पर भी मुस्कुराहट संग उनको खेले खाये हो…किसी टेलर ने जिज्ञासा वश कह दिया कि क्यों अंतर करते हो भगवान और खुदा में….तो तुमको तनिक पीड़ा नहीं हुई उसका निर्दयतापूर्वक सर तन से जुदा में…माना कि तुम्हारा व्यापार घटा है…क्योंकि तुम्हारी दुकान से धोखा देने वाला नाम हटा है…तुम कठपुतली के खेल की तरह दर्शनार्थी देखकर समसामयिक पुतलियां नचाते हो…जिन भगवा वस्त्रधारियों को यूं नफरत की आग से देखते आये हो अब उन्हीं से रुपया कमाते हो…

कुछ बुद्धिजीवी कहेंगे कि कश्मीर में शिकारा हो या चारधाम पर पिट्ठू ये ही तो हमारे धार्मिक प्रकल्पों के सदा सहायक है…पर वो ये भूल जाते हैं कि वर्षों तक कश्मीरी पंडितों पर जुर्म ढाने वाले शैतानों के ये ही नायक है…भारत का खाकर , यहीं के पहनकर , यहीं से सुविधा जुटाकर पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे बहुत सुने है…किसने आतंकवादियों की शक्ल में निर्दोष असहाय कश्मीरी पंडित गोलियों से भुने हैं…यूपी में तुम्हारी तूती बोलती थी तो तुम दादागिरी के दम पर लोगों की जायदाद हड़प लेते थे…बुलडोजर वाला बाबा निष्काम कर्मयोगी बनकर आया तो हथियार डाल खसक लेते थे…

एन काउंटर होने लगे तो दुबककर घुस गए चूहे जैसे बिल में…वतन की खातिर मोहब्बत का जज़्बा रखो अपने दिल में…पवित्र श्रावण मास में कावड़िया भाई निकलते हैं लक्ष्य थामकर प्रकृति के श्रृंगार का…जैसे पवित्र रमजान में महत्व होता है पांच वक्त की नमाज और रोज़ा इफ्तार का…शिव के आराधक शुद्ध सात्विक और शाकाहार के उपासक हैं…मंत्रमुग्ध होकर श्रवण कुमार की तरह श्रावण में कावड़ थामते हैं यही फर्क है उपासक व उपहासक में…विश्व प्रसिद्ध यात्रा मार्ग में हम छल से बचने और पहचान कायम रखने हेतु नाम का उल्लेख करवाते हैं…

इसके लिए हम कोई लूटमार करके बॉन्ड या रुपये नहीं धरवाते हैं…कावड़ धारियों को जानो आस्था जिनकी धरोहर और विश्वास जिनका पाक मंच है…उनको रिझाने और उनसे व्यापार के जरिये दौलत कमाने वाले क्यों करना चाहते प्रपंच है…कावड़ और हिंदुत्व के भावों का सम्मान करना सीखो…जिधर गंगा – नर्मदा का पवित्र जल पूजित हो रहा हो पूजा विरोधियों उस मार्ग पर तुम मत दिखो ।