बदहवास वक्त में चुप्पी कैसे तोडी जाए

Share on:

एक कवि का दुःख यदि कविता के माध्यम से पाठकों का दु:ख और दृष्टि बन जाए,यह बडी बात है।इन कविताओं का भाषा सौंदर्य और विचार पक्ष प्रबल है। ख्यात व्यंग्यकार जवाहर चौधरी ने यह बात कवि मोहन वर्मा की कविताओं पर टिप्पणी करते हुए कही। शासकीय अहिल्या केन्द्रीय पुस्तकालय में आहूत जनवादी लेखक संघ, इन्दौर के मासिक रचना पाठ-99 मे दो रचनाकारों ने अपनी रचनाएं सुनाई। देवास के कवि मोहन वर्मा ने नवगीत से शुरूआत करते हुए ” रंगहीन फागुन से आते हैं अब त्यौहार, समय निगोडा ले भागा है /जीवन ऐसा चिठ्ठी सा/ जिसमे पता न नाम, कैसे भूलें वे पल-छिन/फटी रजाई वाले दिन तथा सहमें बच्चे देख रहे हैं दीवारों के पार को काफी सराहना मिली।

उनके गजल अभी नहीं तो कब बोलोगे/सिले होठ फिर कब खोलोगे तथा” वो जो शख्स इधर था, किधर गया होगा/रसूख से साहब आपके डर गया होगा/घर से ऊब के जो आया था यहां मन बहलाने/उक्ता के भीड़ से घर गया होगा को काफी पसंद किया गया। मोहन वर्मा ने अपनी चुनिंदा समकालीन कविता-‘ इस बदहवास वक्त में, मैं बेहद खौफजदा हूँ, उनकी भूमिका,, जो कहा जा चुका है आदि का भी पाठ किया।

कविताओं पर चर्चा करते हुए सुरेश उपाध्याय ने कहा कि कवि की चिंताए समाज के अंधेरे पक्ष को रखने की है, परन्तु समय के हस्तक्षेप की भी जरूरत है।चुन्नीलाल बाधवानी चाहते थे कि इस बदहवासी में क्या करें, कवि इसका हल भी बताएं।अर्जुन राठौर ने रचनाओं में पैनापन लाने का सुझाव दिया तो देवेन्द्र रिणवा ने गजलों का कहन बेहतर बताया। कविताओं पर रजनी रमण शर्मा,प्रदीप मिश्र, डाँ.रमेश चंद्र और नेहा लिम्बोदिया नेभी अपने विचार रखे। अनकहे में रमता है पाठक गोष्ठी के दूसरे सत्र मे कथाकार सीमा व्यास ने “कोडींग-री कोडींग,सन्नीपात,सलवटें, मुझ से पूछा था क्या, चकमा,नाम बडा या काम, सबक, प्रोफेशनल तथा किश्तवार वैवाहिक विज्ञापन आदि लघुकथाओं का पाठ किया।

रजनी रमण शर्मा ने लघुकथाओं पर चर्चा में रोटी के साथ विचार बेलना और रोटी की सिलवटें को रेखांकित करते हुए कहा कि इनमें ताप बहुत है।अर्जुन राठौर ने कहा कि विसंगतियों पर लघुकथा लेखन चुनौतीपूर्ण काम है।दवेंद्र रिणवा ने इन्हें किफायती शब्दों की लघुकथा माना तो सुरेश उपाध्याय ने सीमा व्यास को मध्यवर्गीय चेतना का कथाकार माना।प्रदीप मिश्र ने लघुकथाओं की सधी हुई भाषा और उनमें मिलने वाली काव्य पंक्तियों को संदर्भित करते हुए कहा कि रचनाओं में जो अनकहा है, उसी मे पाठक रमता है।चुन्नीलाल बाधवानी ने स्त्री विमर्श की लघुकथाओं की सराहना की।जवाहर चौधरी ने लघुकथाओं को उम्मीद भरी बताते हुए उनमें छुपे व्यंग्य के संकेतों पर सार्थक टिप्पणी की। गोष्ठी का संचालन रजनी रमण शर्मा ने किया। आभार देवेंद्र रिणवा ने माना।