अर्जुन राठौर
भोपाल के हमीदिया हॉस्पिटल में हुए हादसे के बाद पूरे मध्यप्रदेश में नर्सिंग होम तथा अस्पतालों को लेकर बवंडर मचा हुआ है भोपाल हादसे में 13 मासूम बच्चों ने अपनी जान गवा दी और सबसे बड़ी बात यह है कि इस घटना के लिए जिम्मेदार डॉक्टरों तथा अधिकारियों पर अपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं किए गए हैं ।
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इंदौर में भी रहवासी क्षेत्रों में जो नर्सिंग होम संचालित किए जा रहे हैं उनमें हालात बहुत बदतर हैं और किसी भी दिन कोई बड़ा हादसा यहां पर भी हो सकता है उल्लेखनीय है कि नर्सिंग होम तथा अस्पताल के संचालन के लिए जो नियम बने हैं उनमें स्पष्ट रूप से बताया गया है कि नर्सिंग होम की बिल्डिंग नगर निगम के मापदंडों के आधार पर हो जिसका निर्माण नगर निगम के नक्शे के अनुसार किया जाए इसके साथ ही कम से कम 40 फीट की सड़क तथा भूमिगत नाली होना चाहिए इसमें यह भी प्रावधान है कि नर्सिंग होम रिहायशी इलाके में नहीं हो तथा वहां पर पार्किंग की पर्याप्त व्यवस्था की जाए ।
इसके साथ ही 1 से अधिक विशेषज्ञ डॉक्टर तथा क्वालिफाइड डॉक्टर होना चाहिए 15 बिस्तर वाले नर्सिंग होम में 1 तथा 45 बिस्तर वाले नर्सिंग होम में तीन क्वालिफाइड डॉक्टर 24 घंटे उपलब्ध रहना चाहिए लेकिन वास्तविकता इन तमाम मापदंडों के विपरीत है और इस पूरे मामले में इंदौर के स्वास्थ्य विभाग की सांठगांठ नर्सिंग होम वालों से रहती है यही वजह है कि नर्सिंग होम रहवासी क्षेत्रों में चाहे जहां बना दिए गए हैं और वहां पर कई बार कंपाउंडर ही डॉक्टर बनकर इलाज कर देते हैं इसके अलावा एमबीबीएस डॉक्टरों की बजाय आयुर्वेद और होम्योपैथी के डॉक्टरों की नियुक्ति कर दी जाती है कोरोना में इंदौर के नर्सिंग होम की पोल पूरी तरह से खुल चुकी है अस्पतालों में जो हालात बने थे उसके लिए बहुत कुछ वहां के व्यवस्थापक भी जिम्मेदार हैं स्वास्थ्य विभाग ने आज तक यह देखने की कोशिश नहीं की कि जब रहवासी इलाके में नर्सिंग होम खोलने की अनुमति ही नहीं है तो वहां पर नर्सिंग होम कैसे संचालित किए जा रहे हैं हाई कोर्ट में भी कई बार अस्पतालों की पार्किंग को लेकर यह शिकायत दर्ज हो चुकी है और हाई कोर्ट द्वारा स्वास्थ विभाग से पूछा भी गया है कि अस्पतालों में पार्किंग की क्या व्यवस्था है ?