मित्रता दिवस की शुभकामनाएँ, स्कूल में पढ़े दोस्तों से मिलने का मौक़ा

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सभी दोस्तों को मित्रता दिवस की शुभकामनाएँ, रिश्तों में यही एक रिश्ता है जिसे हम चुनते हैं, बाक़ी के रिश्ते माँ-बाप, बहन-भाई सब कुदरत के बनाए होते हैं। यही वजह है कि अपने घर कटनी जाने की इच्छा मेरे मन में केवल इसलिए नहीं होती कि मेरे परिवार के लोग वहां रहते हैं, बल्कि पुराने दोस्तों से मुलाक़ात का आकर्षण भी इसका कारण होता है। यही हाल जबलपुर जाने पर होता है।

जहाँ डिसिलवा स्कूल में पढ़े दोस्तों से मिलने का मौक़ा मिलता है। दोस्तों के बीच सरसता का कारण ईगो का अभाव होता है, जहाँ अहम आड़े आया दोस्ती का अध्याय समाप्त हो जाता है। एक दूसरे की टांग खीचना, पिकनिक मनाना और जमाने भर की गप्पें करना ये सब बातें दोस्ती के रिश्ते को गाढ़ी चाशनी में पिरो देती हैं।

दोस्तों से जुड़ी कुछ मज़ेदार यादें ताज़ा करते हैं। हमारे जमाने में बेरोज़गार नवजवानों के बीच पुलिस सब इंस्पेक्टर की भर्ती के लिए ली जाने वाली परीक्षा बड़ी लोकप्रिय थी। हमारी मित्र मंडली में श्री हरी कुशवाहा थे। जो शारीरिक रूप से पहलवान की तरह थे। हरी भाई की शादी कम उम्र में हो चुकी थी और हम मित्रों की बेरोज़गार मण्डली के वे अकेले शादीशुदा सदस्य थे, इसलिये महिलाएँ क्या चाहती हैं, जैसे गूढ़ विषयों में अपने ज्ञान से वे सबको प्रभावित करते रहते थे। बहरहाल सब इंस्पेक्टर की परीक्षा के फार्म भरे गए और हरी पहलवान ने भी फार्म भर कर तय्यारी प्रारम्भ कर दी।

पहलवानी में माहिर हरी फ़िज़िकल टेस्ट के प्रति तो आश्वस्त थे पर इस बार उनने पढ़ाई करने की कोशिश भी पूरी की, और हर बार की तरह इस बार भी उनका पेपर बढ़िया गया जिसकी ख़ुशी में हम सब ने उनसे पार्टी भी ले मारी। कुछ दिनों बाद मैंने सुबह अख़बार में पढ़ा कि उस परीक्षा का परिणाम आ गया है। उसी शाम मित्र मंडली की बैठक के नियत स्थान गजानन टाकीज चौराहे पर मैं पहुंचा तो हरी पहलवान वहीं मिल गए। मैंने उनसे पूछा कि क्या हुआ यार आज रिजल्ट निकल आया है, तो बोले यार क्या बताऊँ एक नंबर से रह गया। मुझे थोडा आश्चर्य हुआ कि आज ही तो रिजल्ट निकला है और इन्हें नंबर भी पता लग गए। मैंने पूछा एक नम्बर से चूक गए ये कैसे कह सकते हो? पहलवान बोले यार मुझसे आगे वाले रोलनंबर का सिलेक्शन हो गया। हम सब ख़ूब हँसे , हरी भाई बुरा मान गए और फिर हमको उन्हें मनाने के लिए पार्टी देनी पड़ी।

सरकारी नौकरी लगने पर जब प्रशासन अकादमी भोपाल में हम सब आए तो श्री सी.बी. सिंह जैसे अनुभवी साथियों के नेतृत्व में हम सब लोगों की बढ़िया टोली बन गयी। अकादमी में हम लोगों को सिंगल बेड के कमरे आबंटित किए गए थे जिसमें टायलेट सुविधा नहीं थी और हम सब सामूहिक रूप से बने सुविधा केंद्र में स्नान और बाक़ी निस्तार किया करते थे। कुछ दिनों बाद बैच के कुछ स्मार्ट साथियों ने हमें समझाया कि अकादमी डिप्टी कलेकटर्स की ट्रेनिंग के लिए बनी है और निस्तार सुविधायुक्त कमरे दूसरी सेवा के ट्रेनिंग में आए अधिकारी इस्तेमाल करते हैं, ये ठीक नहीं है। बैच के अधिकांश लोग सीधे कालेज से पढ़ कर सेवा में आए थे, सो सेवा-नियमावलियों की जानकारी कम ही थी। क्रांतिकारी भावना के साथ तय किया गया कि अकादमी में बंद पड़े ऐसे डबल बेड कमरों में घुसा जाए जिसमें बाथरूम अटैच था।

जल्द ही अमल हो गया और हमारा पूरा बैच बिना अनुमति उन कमरों में घुस गया जो सीनियर अधिकारियों के लिए नियत थे, न कि हम जैसे रंगरूटों के लिए। कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा पर जब डायरेक्टर तक ख़बर पहुँची तो हम सब की पेशी अकादमी में पदस्थ वरिष्ठ आइ.ए.एस. श्री ओ.व्ही. नागर के समक्ष हुई जो वहाँ ओ एस डी के पद पर पदस्थ थे। नागर साहब ने डाँटा भी और पुचकारा भी और आख़िर में ये कह के विदा किया कि तुम लोग राज्य की सबसे प्रमुख प्रशासनिक सेवा के लिए चुने गए हो, आगे चल कर शासन के प्रमुख अंग होगे, और आप लोगों को ऐसी हरकतें शोभा नहीं देतीं, जाओ शाम तक कमरा ख़ाली कर अपने पुराने कमरों में जाओ। दूसरे दिन सुबह हम सब कामन बाथरूम में नहा रहे थे।

लेखक – आनंद शर्मा