कोलकाता की दुर्गा प्रतिमाओं को देख दर्शक हुए कायल, जमकर हो रही तारीफ़

Shivani Rathore
Published on:

मुझे 2013 में प्रयागराज के महाकुंभ में स्नान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। कई किलोमीटर वर्गक्षेत्र में फैले दुनिया के उस सबसे बड़े सम्मेलन में करोड़ों श्रद्धालु पवित्र गंगा, यमुना एवं सरस्वती के संगम में डुबकी लगाकर अपने जीवन को धन्य बना रहे थे। मैंने वहां साधु-संत, महात्मा एवं अखाड़ों के हजारों पंडाल देखे। सभी पंडालों के सामने एक से बढ़कर एक मुख्यद्वार बनाए गए थे। हजारों की संख्या के बावजूद एक ही डिजाइन के दो द्वार देखने को नहीं मिले। ऐसा बताया गया कि अधिकांश द्वार प.बंगाल के कारीगरों के सहयोग से बने हैं। उस समय मैं उन सभी कारीगरों की सृजनशीलता से बेहद प्रभावित हुआ था।

कोलकाता आश्विन माह के शुक्लपक्ष की नवरात्र में आयोजित होनेवाले अपने दुर्गा उत्सव के लिए विश्व में विख्यात है। हजारों पूजा-पंडाल लगाए जाते हैं। देवी माँ की मूर्तियों की स्थापना की जाती है। लाखों श्रद्धालु दर्शन करते हैं। नौ दिनों तक पूरा महानगर शक्ति की उपासना में डूब जाता है। इस वर्ष कोरोना महामारी ने कोलकाता की दुर्गा पूजा को भी प्रभावित किया है। फिर भी, पूजा के पंडाल लगाए गए हैं। देवी माँ के विग्रह स्थापित किए गए हैं। बंगाल के गुणी आयोजकों एवं कारीगरों ने देवी माता की एक से बढ़कर एक दिव्य प्रतिमाओं का निर्माण किया है।

मैं पूजा पंडालों में स्थापित की गई सबसे अधिक ध्यान खींचनेवाली तीन मूर्तियों की चर्चा करूंगा। पहली मूर्ति है कोलकाता के बेहला इलाके के बारिशा क्लब की पूजा प्रतिमा जिसमें एक प्रवासी मजदूर माँ को अपने बेहाल बच्चों के साथ प्रदर्शित किया गया है। लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूर परिवारों की दुश्वारियां किसी से छिपी नहीं हैं। दूसरी मूर्ति है डॉक्टर की पोशाक में इंजेक्शन रूपी त्रिशूल से कोरोना रूपी महिषासुर का वध करती देवी माँ। तीसरी मूर्ति देवी माँ की नहीं अपितु बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद की है। लॉकडाउन के दौरान अप्रवासी मजदूरों की हर प्रकार से सहायता करनेवाले सोनू सूद अनेक लोगों के बीच मसीहा बनकर उभरे हैं।

इन सभी मूर्तियों की व्याख्या आप स्वयं करें। मैं तो इतना कहूंगा कि बंगाल के गुमनाम कारीगरों की सृजनशीलता का कायल मैं पहले ही था, अब इन प्रतिमाओं का समाचार पढ़कर मेरे मन में उनके लिए अपार श्रद्धा का भाव जाग गया है। सोनू सूद ने पूजा पंडाल में अपनी मूर्ति लगाए जाने को अपना अब तक का सबसे बड़ा अवार्ड निरूपित किया है। सोनू सूद की इस मूर्ति की तुलना मैडम तुसाद के म्यूजियम में लगाई जानेवाली अनेक कलाकारों की मोम की मूर्तियों से की जा सकती है क्या?
-रमेश रंजन त्रिपाठी
(सभी चित्र गूगल से साभार)