सीखने की चाह अवनीश को खींच लाई पत्रकारिता की ओर

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-अन्ना दुराई

जब कुछ सीखने की चाह अवनीश को पत्रकारिता की ओर खींच लायी थी। कस्तूरबा ग्राम में एक साधारण परिवार से मन में कुछ करने का जज़्बा लेकर जब वह बाहर निकला तब पत्रकारों को लेकर जनमानस कोई विशिष्ट सोच नहीं रखता था। वाक़ई परिवार से मिली गांधीवादी विरासत अवनीश में साफ़ झलकती थी। लिखने पढ़ने का शौक अवनीश को बचपन से था। किताबों से मानो उसे प्रेम था। कस्तूरबा ग्राम के पुस्तकालय की साज संभाल में भी वो अपना हाथ बँटाता था। जब पत्रकारिता प्रारंभ की तब इतना ग्लैमर नहीं था। हमारे परिवार ने सांध्य दैनिक असली दुनिया की शुरुआत की थी, जहाँ पत्रकारिता के पहले गुर प्रुफ रिडिंग से अवनीश ने शुरुआत की। टेली प्रिंटर पर आने वाली ख़बरें रिराईट की जाती थी।

यह कार्य भी अवनीश ने बख़ूबी किया। समसामयिक विषयों पर संपादक अजित प्रसाद जैन के साथ चर्चा में अवनीश का काफी समय बितता जो पत्रकारिता के प्रति उसकी ललक को दर्शाता था। मैं और अवनीश घंटों मोटर साईकिल पर साथ साथ घूमा करते थे। शहर में कोई घटना दुर्घटना हो या फिर कोई पत्रकार वार्ता, कवरेज के लिए अवनीश मेरे साथ हम क़दम रहता था। पत्रकारिता के सफ़र का यह बहुत छोटा सा पड़ाव था क्योंकि अवनीश को तो बहुत आगे जाना था। कुछ दिन प्रभात किरण में कार्य किया और फिर अवनीश ने अपनी स्थायी मंज़िल दैनिक भास्कर के रूप में पकड़ ली। जब मन में लगन हो, हौसला हो, जूनून हो तो रास्ता भी अपने आप बनता है। अवनीश ने भास्कर में ख़ासा मुक़ाम हासिल किया। अवनीश भास्कर की कोर टीम का हिस्सा था।

अवनीश बेहद ऊंचाइयों पर रहा लेकिन पत्रकार होने के अहम् से वह कोसो दूर था। बड़ा पत्रकार होने के बावजूद छोटों से छोटों के प्रति सदैव नेकदिल रहा। अपनों के प्रति स्नेह, प्यार और उनके लिए हर क़दम पर सहयोगी बनना अवनीश की ख़ास छवि को उजागर करता था। सरलता, सहजता और मिलनसारिता का स्वभाव उसे दूसरों से एक कदम आगे रखता था। बड़े बड़ों से उसका याराना था। खबरें उसके पास चलकर आती थी। अवनीश एक पावर सेंटर था, इसलिए कई व्यक्ति उससे मिलने के लिए लालायित रहते थे। भास्कर के प्रति लगाव और निष्ठा का भाव उसमें हमेशा परिलक्षित होता था। इतना ज़रूर कहता था कि जब भास्कर से रिटायर होऊंगा तो पढ़ना लिखना नहीं छोड़ूंगा, पुस्तक लिखूंगा। देश विदेश में होने वाली घटना दुर्घटना पर अवनीश की पैनी निगाह रहती थी जो उसके संपादन में दिखती थी। उसमें विचारों का तेज साफ़ झलकता था। अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए इस देश प्रदेश और समाज को अवनीश ने दिया ही दिया।

दुख है तो इस बात का कि ज़िंदगी भर पत्रकारिता पर पकड़ रखने वाला अवनीश अपने शरीर पर पकड़ नहीं बना सका। अपने संस्थान से मिले दायित्वों के प्रति भाग दौड़ मानो उसकी नियति बन गई थी। संस्थान के प्रति समर्पण और अति काम की व्यस्तता में मानों वह शरीर को भूल सा गया था। उसे नज़र लग गई, कम उम्र में बड़ा पत्रकार जो बना था। हमेशा ख़बरों को रचने वाला अवनीश आज ख़ुद ख़बर बन गया। प्रिय साथी के प्रति अनंत श्रद्धाभाव….