हमारे भारत में व्रत और उपवास में अधिकतर सब साबूदाना (Sabudana) का ही सेवन करते है। साबूदाना फलाहारी होता है। साबूदाना से कई तरह के व्यंजन बनते है। साबूदाना भी सभी को बहुत पसंद आता हैं। भारत में व्रत में ज़्यादातर लोग इसकी खिचड़ी बना कर खाते है। पहले जानते है साबूदाना क्या होता है ? क्या वो कोई फल है या दाल या फिर कोई अनाज ? इस बात को जानिए की क्यों साबूदाना को फलाहारी मानते हैं।
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क्या होता है साबूदाना ?
साबूदाना पेड़ पर होता है लेकिन ये कोई फल नहीं है। आपको बता दें कि साबूदाना का पेड़ अफ्रीकी पेड़ है। साबूदाना को अफ्रीकी में ताड के पेड़ की शाखाओं से बनाया जाता है, इसलिए ये अनाज नहीं है। शकरकंद जैसा स्टार्च साबूदाना में भी होता है इसलिए यह कंदमूल प्रजाति में आता है। साबूदाना में कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम और विटामिन सी होता है और यही सब नुट्रिएंट्स फल में भी होते है, इसलिए इसे फल भी कह सकते हैं। साबूदाना खेत में नहीं होता है इसलिए इसे यह तो साबित हो गया है कि ये ना तो दाल है और ना ही कोई अनाज है। दरअसल बात यह है कि भारत में साबूदाना को व्रत और उपवास में खाया जाता है वो भारत का है ही नहीं बल्कि अफ्रीका का है। साइंस साबूदाने के बारे में क्या कहता है, जानिए –
कहा पर होते है साबूदाने के पेड़ ?
इंग्लिश में साबूदाने को सेगो कहते है। जिसे अफ्रीका का एक पौधा माना जाता है। यह पेड़ पाम पेड़ की तरह दीखता है लेकिन पाम नहीं है। सुना है कि लोग इसे सेगो पाम भी कहते हैं। साइंस के मुताबिक वैज्ञानिक कहते है कि साबूदाना एक जिम्नोस्पर्म पौधा होता है। जिम्नोस्पर्म शब्द में जिम्नो का मतलब होता है नग्नबीजी और स्पर्म का मतलब होता है बीज। इस पेड़ की शाखाओं से जो गुदा मिलता है उसी से साबूदाना बनाया जाता है। इस गूदे में भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम और विटामिन सी होता है।
कैसे बनता है साबूदाना ?
आपको जानकारी दें कि हमारे देश भारत में साबूदाना को टेपियोका जड़ से बनाया जाता है। इसमें सबसे ज़्यादा स्टार्च होता है। ये बिल्कुल शकरकंद की तरह दीखता है। इसे कसावा प्लांट भी कहते है। वैज्ञानिकों ने इसका नाम मनिहोट एस्कुलेंटा रखा है। भारत देश इसको बनाने में सभी देशों में सबसे ऊपर आता है।
साबूदाना को कैसे देते है आकार ?
गूदे को टेपियोका रूट से निकाल कर 8-10 दिनों के लिए रख देते है। उसके बाद इसमें रोज पानी डालते है। इस क्रिया को 4-6 महीने तक किया जाता है। महीनों के बाद इस गूदे को मशीन में डालकर मोतियों का आकार देते है। इतनी क्रिया करने बाद साबूदाना हमे सफ़ेद मोतियों की तरह मिलता है।
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