उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर फटने से नदियों में बाढ़ आ गई जिसकी वजह से बड़ी जनहानि हुई है। साथ ही कई लोगों की जान भी इस घटना में जा चुकी है। बताया जा रहा है कि पानी के तेज बहाव में काफी कुछ बह गया। अब तक कुल 15 शवों को मिल चुके हैं। जबकि सौ से अधिक लोग गायब बताए जा रहे हैं। ऐसे में लगातार रेस्क्यू जारी है। इसमें राज्य-केंद्र सरकार मिलकर काम कर रही हैं। ऐसे में सभी के दिमाग में एक सवाल ये आ रहा है कि ना पिघली बर्फ ना हुई बारिश, फिर कैसे फटा ग्लेशियर?
इसको लेकर वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक कलाचंद सैन ने बताया है कि उत्तराखंड के चमोली जिले में नंदा देवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने के बाद आई व्यापक बाढ़ के कारणों का अध्ययन करने के लिए ग्लेशियर के बारे में जानकारी रखने वाले वैज्ञानिकों की दो टीमें जोशीमठ-तपोवन जाएंगी। वहीं सैन ने कहा कि ग्लेशियोलॉजिस्ट की दो टीम हैं– एक में दो सदस्य हैं और एक अन्य में तीन सदस्य हैं।
जानकारी के अनुसार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तत्वावधान में देहरादून का वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, क्षेत्र में हिमनदों और भूकंपीय गतिविधियों सहित हिमालय के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करता है। इस इंस्टीट्यट ने 2013 की बाढ़ पर भी अध्ययन किया था। वहीं सैन ने आगे बतया कि टीम त्रासदी के कारणों का अध्ययन करेगी. हमारी टीम ग्लेशियोलॉजी के विभिन्न पहलुओं को देख रही होगी।
सैन ने कहा कि रविवार की घटना काफी ’अजीब’ थी, क्योंकि बारिश नहीं हुई थी और न ही बर्फ पिघली थी। इसके अलावा 2013 में केदारनाथ जल प्रलय के दौरान मुख्यमंत्री के सलाहकार रह चुके और उत्तराखंड में ईको टास्क फोर्स के पूर्व कमांडेंट ऑफिसर कर्नल हरिराज सिंह राणा ने एक इंटरव्यू में बताया कि इस घटना में जान-माल का काफी नुकसान हुआ है।
150 से ज्यादा लापता हैं तो इससे मृतकों की संख्या बढ़ने की पूरी आशंका है। ग्लेशियर का टूटना उत्तराखंड में कोई नई घटना नहीं है। लेकिन उसका तबाही में बदल जाना खतरनाक है और ऐसा प्रमुख वजह से है। उन्होंने आगे बताया कि उत्तराखंड में इस घटना की दो बड़ी वजहें हो सकती हैं। पहली नदी के फ्लड एरिया में अतिक्रमण और निर्माण कार्य, दूसरा 2013 की तबाही से कोई सबक न लेना. इस इलाके में भी कमोबेश यही हाल है।