मध्यप्रदेश भाजपा में सत्ता और संगठन के बीच बेहतर तालमेल बनाने की दिशा में नई कवायद शुरू हो चुकी है। शनिवार को मुख्यमंत्री निवास पर एक अहम बैठक आयोजित हुई, जिसमें राष्ट्रीय सह-संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल समेत कई दिग्गज मौजूद रहे। इस बैठक का उद्देश्य सरकार, संगठन और सत्ता के बीच आपसी समन्वय को मज़बूत करना और निर्णय प्रक्रिया को तेज़ करना था।
छोटी टोली का गठन, पहली बैठक से ही सक्रियता
बैठक में एक छोटी समन्वय टोली बनाई गई, जो आगे चलकर सत्ता और संगठन के बीच सेतु का काम करेगी। इस टोली की पहली बैठक में ही भविष्य की कार्ययोजना पर चर्चा हुई। इसमें सेवा पखवाड़ा, नए जीएसटी से जुड़े कार्यक्रम और आत्मनिर्भर भारत अभियान जैसे संगठनात्मक विषयों पर भी विचार किया गया। यह टीम पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और प्रदेश स्तर पर चल रहे सरकारी कार्यों को आपस में जोड़ने का काम करेगी।
समन्वय टोली में शामिल दिग्गज नेता
इस नई टोली में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, राष्ट्रीय सह-संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल, डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ल को शामिल किया गया है। इसके अलावा, प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद, वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद पटेल और राकेश सिंह भी इसका हिस्सा हैं। यह टीम न केवल रणनीतिक फैसले लेगी बल्कि संगठनात्मक गतिविधियों की निगरानी भी करेगी।
गुटबाजी – पहली बड़ी चुनौती
प्रदेश भाजपा के सामने सबसे गंभीर चुनौती गुटबाजी की है। अलग-अलग गुटों में बंटे नेताओं के बीच की खींचतान समय-समय पर पार्टी की एकता को कमजोर करती है। कभी सागर में इसकी झलक देखने को मिलती है तो कभी ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में बगावती सुर उठ खड़े होते हैं। हाल ही में विंध्य क्षेत्र में मुख्यमंत्री के कार्यक्रम से डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल की दूरी ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसे हालातों ने समन्वय टोली के सामने पहली और सबसे बड़ी कसौटी खड़ी कर दी है।
अनुशासनहीनता और बड़बोले बयान – दूसरी चुनौती
भाजपा संगठन के लिए दूसरी बड़ी चुनौती उन नेताओं और उनके परिजनों से जुड़ी है, जिनकी जुबान या हरकतें पार्टी को बार-बार मुश्किल में डाल देती हैं। विधायक गोलू शुक्ला के बेटे का मामला हो या देवास विधायक के पुत्र का वायरल वीडियो, ऐसे प्रकरण पार्टी की साख पर असर डालते हैं। इसके अलावा, भिंड विधायक का कलेक्टर से टकराव जैसी घटनाएँ भाजपा की अनुशासनप्रिय छवि पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। इन मुद्दों से निपटना समन्वय टोली के लिए आसान नहीं होगा।
प्रदेश कोर कमेटी रहेगी बरकरार
भाजपा की पहले से बनी प्रदेश कोर कमेटी यथावत रहेगी। इस कमेटी में पूर्व मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी शामिल होते हैं। हालांकि, व्यस्त कार्यक्रम और राष्ट्रीय स्तर की जिम्मेदारियों के कारण कोर कमेटी की बैठकें समय-समय पर नहीं हो पातीं। ऐसे में, त्वरित निर्णय और छोटे स्तर की समस्याओं को हल करने के लिए नई समन्वय टोली को जिम्मेदारी दी गई है।