जनता की गाढ़ी कमाई को डकार रहे निकम्मे नेता , कर्मचारी व अधिकारी…नगरनिगम में करोड़ों का चुना लगा देने की चुनते ही बढ़ गई है महामारी…हर काम के पैसे लगते हैं और वो भी धमकी व दादागिरी के साथ…बारीकी व कमजोरी का खौफ दिखाकर जनता के बांध देते हैं हाथ…फिर पीली गाड़ी में बाउंसरों की इकट्ठी करके फौज…भयभीत करने वाले प्रतिदिन बड़ी बड़ी होटलों में कर रहे हैं।
मौज…बरसों से जमे अधिकारी पर कोई नेता भी हाथ नहीं डालता…उसका हिस्सा चला नहीं जाए इस बात का गम उसको सालता…डेवलोपमेन्ट के नाम पर बंदरबांट मचाते त्रिदेव कर रहे हैं खूब कमाई…पद पर आकर ही बन जाते हैं वो तो ओहदेदार जमाई…पुराने ब्लॉक उखाड़े जाते हैं फिर रंग रोगन करके वो दूसरी जगह और दूसरी जगह के इस जगह लगाए जाते हैं…ठेकेदारों के तौर तरीके ऐसे हैं कि अफसर से बाबू तक और नेता से प्रणेता तक रुपये कमाए जाते हैं…सरिया , गिट्टी , सीमेंट और अनावश्यक काम का तरीका कमाई का जरिया बन रहा है…हर काम के चार गुना दाम फिर पेमेंट के लिए फर्जी बिल का इंतजाम आदमी तो चकरिया बन गया है…गड्ढे खोदना फिर भरना , भरे हुए स्थान को खोदना परेशानी का सबक है।
ईमानदारी से नक्शे पास करवाने वालों को तो निगम लगता नरक है…वायदे तो चौबीस घण्टे में नक्शे पास करवाने के किये जाते हैं…इसके लिए निर्देश भी सख्त से सख्त दिए जाते हैं…फिर कानूनी गलियां काम आती है और टेबल के नीचे से लिये और दिए जाते हैं…कुछ विशेषज्ञ अधिकारी तो सेवानिवृत्ति के बाद भी सेवा दे रहे हैं…अपने अनुभव और दिमाग के बदले मेवा ले रहे हैं…नए चेहरों से उम्मीद लगाना फिजूल लगने लगा है…नेता बनते ही कार्यकर्ता भी पल्लू झाड़ने लगा है…सलाह व ज्ञान तो कूटकूटकर भर जाता है…राह दिखाने वाले से देखने वाला डर जाता है…काम के बीच काम की खामियों पर विरोध करो तो लॉलीपॉप थमा दी जाती है…बड़े वातानुकूलित कक्षों के बड़े लोगों द्वारा फटे दूध की भी कुल्फी जमा दी जाती है…आश्वासनों के मसीहा बनकर नेता जननेता बनने का ख़्वाब देखता है…अपने वालों को ही दबाकर वो आगे बढ़ने की रोटी सेकता है…डेढ़ सौ करोड़ का नहीं डेढ़ हजार करोड़ का भी गबन हो गया हो तो कोई बड़ी बात नहीं…दिन में सफेदपोश दिखने वालों की रात में शरीफों से मुलाकात नहीं…दल दल के दलदल तो बस चुनाव के समय रहते हैं…बाद में फिर काम शुरू करने वालों को ही चोर चोर मौसेरे भाई कहते हैं…पूरे कुए में भांग पड़ी है तो झूमने में मिलती नही कोई सजा है।
मंदिर पर शीश नवाना और मजार पर चादर चढ़ाना नेतागिरी का मजा है….जिन्होंने खूब माल कमाया अखबारों में करतूतों का चिट्ठा आया वो फिर कोर्ट कचहरी और जुगाड़ से चिपक जाते हैं वैसे के वैसे…जिनका एक ही सूत्र है ‘ऐसे भी पैसे वैसे भी पैसे बिना पैसे ये हिलें कैसे’…नई पीढ़ी के लोगों को कहो की सम्बन्धों के आधार पर काम होते हैं तो वो आपका मजाक उड़ाती है…वो कहती नहीं अघाती है तुम्हारे ख्यालात रहने दो लिफाफे दो तो काम की कड़ी से कड़ी जुड़ जाती है…ये जो युग परिवर्तन है वो राजनीति का भी पतन है…भ्रष्टाचारियों की वजह से ही हैप्पीनेस के मामले में नीचे से पायदान छू रहा अपना वतन है…हर काम के मुंहमांगे दाम से शहरों में सांसे फूलने लगी है…ऊपर से नियंत्रित नहीं हो रही दिनरात ठगी है…कहीं ऐसा न हो जाये कि अपना इंदौर जो बाहरियों की शरण स्थली रहा वहां से पलायन शुरू हो जाये…स्वच्छता के शिखर को छूने वाला शहर कहीं भ्रष्टाचार का नहीं गुरु हो जाये ।