दिनेश निगम ‘त्यागी’
प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के दावेदार नेताओं को एक बार फिर जोर का झटका धीरे से लगा है। पहले यह कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिरने के बाद लगा था, जब अन्य दावेदारों को किनारे कर शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे थे। अब सफल जनजातीय गौरव दिवस के जरिए यह झटका और किसी ने नहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ही दिया है। चर्चा चल रही थी कि गुजरात और उत्तराखंड की तर्ज पर मप्र में भी विधानसभा चुनाव से पहले नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है। प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के लगभग आधा दर्जन ताकतवर दावेदार हैं।
इस बीच जनजातीय गौरव दिवस के सफल आयोजन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के बाद शिवराज सिंह चौहान ने अपने नंबर बढ़ा लिए। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में जिस तादाद में आदिवासी जुटे और प्रधानमंत्री मोदी ने उनका जैसा रिस्पांस देखा, इससे उनका अभिभूत होना स्वाभाविक था। हुआ भी यही, प्रधानमंत्री भोपाल से गद्गद् होकर गए और पांसा पलट गया। इसलिए कहा जाने लगा है कि भाजपा नेतृत्व विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज सिंह चौहान को बदलने का खतरा मोल नहीं लेगा। दावेदारों के लिए यह जोर का झटका ही तो हैं।
दिग्विजय-कमलनाथ के भी ‘उस्ताद’ शिवराज-
एक समय दिग्विजय सिंह कहते थे कि चुनाव काम से नहीं, मैनेजमेंट से जीते जाते हैं। 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बंपर जीत दर्ज कर उनकी इस धारणा को गलत साबित कर दिया। दिग्विजय अब कभी मैनेजमेंट की बात नहीं करते। इसके बाद राजनीतिक प्रबधंन के मामले में कमलनाथ को अव्वल माना जाता था। कमलनाथ के प्रबंधन की धज्जियां तब उड़ गर्इं, जब कांग्रेस के 22 विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए और वे खुद सत्ता से बाहर हो गए। सच यह है कि मौजूदा दौर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सभी के उस्ताद निकले।
ये भी पढ़े – 24 नवंबर को कृषि कानूनों के वापसी प्रस्ताव पर लगेगी मुहर : सूत्र
उन्होंने इन दोनों के साथ सबको पीछे छोड़ दिया। जनजातीय गौरव दिवस के सफल आयोजन के जरिए उन्होंने फिर अपने प्रबंधन कौशल का लोहा मनवा दिया। इससे पहले भी कई बार वे ऐसा करतब दिखा चुके हैं। यह बात हमेशा चर्चा में रहती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान के बीच अच्छी कैमिस्ट्री नहीं है लेकिन मोदी जब भी मप्र के दौरे पर आते हैं, शिवराज उन्हें अभिभूत कर देते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ। प्रबंधन कौशल की वजह से ही वे लगातार मुख्यमंत्री हैं। उन्हें बदलने की अटकलें गलत साबित हो जाती हैं। इसे कहते हैं असल राजनीतिक प्रबंधन, जिसके शिल्पकार हैं शिवराज।
यह वीडी को पीछे करने की कोशिश तो नहीं-
इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने बहुत जल्दी वह मुकाम हासिल किया, जिसके लिए किसी नेता को लंबा संघर्ष और इंतजार करना पड़ता है। वर्ना मप्र भाजपा में आते ही पहले प्रदेश महामंत्री, फिर प्रदेश अध्यक्ष और लगे हाथ सांसद बन जाना किसी चमत्कार से काम नहीं। वीडी के काम की रफ्तार इतनी तेज है कि कई बार लगता है कि पार्टी के अंदर उन्हें पीछे करने की कोशिश हो रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अवैध खनन के मामले में वीडी शर्मा को निशाने पर लिए हैं।
वीडी शर्मा को लगता है कि भाजपा के अंदर से ही कुछ नेता उनके खिलाफ दिग्विजय की मदद कर रहे हैं। हालांकि दिग्विजय जैसे वरिष्ठ नेता किसी भाजपाई के कहने पर वीडी के खिलाफ अभियान चलाएंगे, यह बात जचती नहीं है। दूसरा, हाल में हुए उप चुनाव और जनजातीय गौरव सम्मेलन के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और वीडी शर्मा ने अपनी टीमों के साथ जीतोड़ मेहनत की लेकिन श्रेय वीडी शर्मा के खाते में नहीं गया। शिवराज ही छाए रहे। साफ है कि वीडी के पैर खींचने की कोशिश पार्टी के अंदर से ही हो रही है। इसका अहसास वीडी शर्मा को है। लिहाजा, अब उन्हें संभलकर चलना और बढ़ना होगा।
टांग तोड़ने के जवाब में दिग्विजय की रामधुन-
भाजपा के तेजतर्रार विधायक रामेश्वर शर्मा के एक बयान ने हंगामा बरपा रखा है। उन्होंने कलखेड़ा गांव में कहा था कि यहां कांग्रेस के नेता आएं तो उनकी टांग तोड़ दें। इस बयान की तीखी आलोचना हुई। रामेश्वर ने बाद में सफाई दी, लेकिन वह भी व्यंगात्मक लहजे में थी। तब तक मामला तूल पकड़ चुका था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने रामेश्वर की बात को चुनौती के रूप में लिया। उन्होंने कहा कि ‘मैं कांग्रेसी हूं जिसमें ताकत हो तो मेरे घुटने तोड़ दे। मैं गांधीवादी हूं।
हिंसा का जवाब अहिंसा से दूंगा। 24 नवंबर को मैं महात्मा गांधी की मूर्ति से रामेश्वर शर्मा के घर जाऊंगा। उनके घर जाकर प्रभु से उन्हें सदबुद्धि देने के लिए एक घंटे तक रामधुन करूंगा।’ उधर पूर्व विधायक जितेंद्र डागा ने रामेश्वर को उनकी ही भाषा में चुनौती दे डाली। डागा ने कहा है कि ‘मैं कलखेड़ा गांव जाऊंगा, रामेश्वर ने मां का दूध पिया है तो मेरी टांग तोड़ कर दिखाए।’ इस तरह कांग्रेस और रामेश्वर आमने-सामने है। दिग्विजय की रामधुन को लेकर रामेश्वर ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है जबकि भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने व्यंग बाण छोड़े हैं। भाजपा-कांग्रेस नेतृत्व को चाहिए कि वह अमर्यादित बयानों को प्रोत्साहित न करें।
मंत्री तक नहीं भूल पा रहे मुरली की टिप्पणियां-
प्रदेश भाजपा के प्रभारी मुरलीधर राव की टिप्पणियां पार्टी नेताओं तथा मंत्रियों के बीच हास्य-व्यंग की वजह बन गई हैं। मुरली ने कहा था कि भाजपा की एक जेब में ब्राह्मण रहते हैं और दूसरी में बनिया। भाजपा की प्रदेश सरकार में ब्राह्मण समाज के एक कद्दावर मंत्री एवं एक बनिया मंत्री के बीच के वार्तालाप में ऐसे हास्य-व्यंग का आनंद आया। ब्राह्मण मंत्री पार्टी के अपराजेय योद्धा हैं और बनिया मंत्री के पिता प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। बनिया मंत्री का ब्राह्मण मंत्री से कोई काम था। उन्होंने फोन लगाया भाई साहब मैने काम बताया था, अभी नहीं हुआ।
जवाब मिला, बंगले आ जाइए। वैसे भी हम दोनों भाजपा की एक-एक जेब में रहते हैं। यह हास्य-व्यंग तो है ही, इससे मुरलीधर राव की टिप्पणी पर इन वरिष्ठ मंत्रियों की पीड़ा भी झलकती है। इसी तरह मुरलीधर के उस बयान से भी भाजपा में सांसदों, विधायकों को पीड़ा हुई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि बार-बार विधायक, सांसद बनने वाले यदि मंत्री न बन पाने के कारण असंतुष्ट होते हैं तो उनसे बड़ा नालायक कोई नहीं। मुरलीधर की इन टिप्पणियों को काफी समय हो चुका फिर भी ये इनती चुभने वाली हैं कि कई नेता चाहकर भी इन्हें भुला नहीं पा रहे हैं।