*रुचिता तुषार नीमा*
आजकल प्रतिदिन बच्चों की आत्महत्या की खबरें सामने आ रही है, पढ़कर मन बहुत व्यथित सा हो जाता है, कि क्यों आजकल के बच्चे सिर्फ पेपर बिगड़ने पर या एग्जाम में पास न हो पाने के डर से, प्रेम प्रसंगों में झगड़े होने पर या नौकरी न मिल पाने पर ही अपने जीवन को खत्म करने जैसा दुष्कर कदम उठा लेते हैं।
कहीं न कहीं उनके इस कदम में पालकों की और समाज की भी अपेक्षाएं होती है। बचपन से उनके मन में कंपीटीशन की भावनाएं जगाकर उन्हें सिर्फ सफलता प्राप्त करने को तैयार किया जाता है और दूसरे पहलू से कभी अवगत ही नहीं कराया जाता। यही वजह है कि बच्चे किसी भी जगह नाकामयाबी स्वीकार ही नही कर पाते।
आज बहुत जरूरत है ,हमें बच्चों को पढ़ाई के साथ साथ जीवन की वास्तविकता की शिक्षा भी जरूर देना चाहिए।जीवन में हर कदम पर संघर्ष करना होता है, अपनी तरफ से पूर्ण प्रयास करें, लेकिन सफलता और विफलता को इतना महत्व न दें। उन्हें जीवन के महत्व को समझाए। ऐसे बहुत से उदाहरण है जो असफल होने के बाद इस कदर सफल हुए कि आज दुनिया उनको उनके योगदान के लिए याद करती है, जैसे अब्राहम लिंकन, अलबर्ट आइंस्टीन, स्वामी विवेकानंद आज के परिपेक्ष्य में बहुत जरूरत है कि बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ साथ मानसिक मजबूती भी प्रदान की जाए। जिससे उनका,समाज का और देश का भी भविष्य उज्ज्वल हो सके।