कृषि महाविद्यालय इंदौर के पूर्व छात्रों ने बनाया एक FPO विशेषज्ञों का कॉन्सोर्शियम

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सन 1980 के दशक मे कृषि महाविद्यालय मे पढे कुछ पूर्व छात्रों ने बेस्ट केयर के नाम से एक कॉन्सोर्शियम (संघ) बनाया है, और ध्वस्त होते एफ़पीओ (कृषि उत्पादक संघठन) क्षेत्र को पुन: जीवित करने का बीड़ा उठाया है। वर्ष 1982 बैच के शाजी जॉन जो वर्ष 1988 मे छात्र संघ के अध्यक्ष भी रह चुके है ने अपने पुराने साथियों और अन्य मित्रों के साथ मिलकर यह कॉन्सोर्शियम बनाया है।

कॉन्सोर्शियम बनाने का मुख्य उद्देश्य यही है की कई साथी सेवानिवृत हो गए है या सेवानिवृति के कगार पर है, और अधिकतर के पास कृषि और ग्रामीण परिपेक्ष मे कार्य करने का वृहद अनुभव है जो वे अब ग्रामीण विकास के लिए उपयोग करना चाहते है। शाजी जॉन जो पिछले एक दशक से एफ़पीओ एवं ग्रामीण आजीविका के क्षेत्र मे कार्य कर रहे है, का इस कॉन्सोर्शियम के माध्यम से पहला लक्ष्य यह है की डूबते हुए एफ़पीओ सेक्टर को पुनर्जीवित करें।

वर्तमान मे एफ़पीओ सैक्टर के डूबने का मुख्य कारण यह है की ये एफ़पीओ दो – तीन वर्ष के बाद भी कोई टिकाऊ कार्य नहीं प्रारम्भ कर पाते है जिससे एफ़पीओ को कोई ठोस लाभ मिले। बेस्ट केयर के विशेषज्ञों का मानना है की अब समय “हार्ड वर्क” का नहीं है, “स्मार्ट वर्क” का है, और एफ़पीओ को यदि जीवित रहना है तो उन्हे स्मार्ट वर्क करना होगा। इसी पर आधारित बेस्ट केयर ने एक संकल्पना बनाई है जिसका नाम ही उन्होने “स्मार्ट एफ़पीओ” दिया है।

इन विशेषज्ञों का मानना है की स्मार्ट एफ़पीओ छह माह मे अपना व्यवसाय प्रारम्भ कर स्वावलंबी बन सकता है, और तीन वर्ष मे रु 10 करोड़ से अधिक का लाभ कमा सकता है। साथ ही ये स्मार्ट एफ़पीओ क्षेत्र मे 300 से अधिक नए रोजगार और आजीविका के साधन उपलब्ध करा सकता है। खास बात तो यह है की इस स्मार्ट एफ़पीओ की स्थापना रु पाँच लाख से कम मे किया जा सकता है, जबकि सरकार का प्रति एफ़पीओ वर्तमान मे प्रावधान रु 43 लाख का है जिससे कुछ भी नहीं हो रहा है।

स्मार्ट एफ़पीओ के बारे मे बताने और उसका एक पायलट करने के लिए बेस्ट केयर के विशेषज्ञ नाबार्ड, एसएफ़एसी, बर्ड, अतिरिक्त सचिव कृषि मंत्रालय (भारत शासन), अतिरिक्त मुख्य सचिव, म. प्र. शासन, कृषि आयुक्त म. प्र. से पिछले 11 महीने से मिलने की किशिश कर रहे है या मिल रहे है, लेकिन इनमे से कई तो बेस्ट केयर का नाम सुनकर मिलने से माना कर देते है।

स्पष्ट है की इनमे से किसी को कोई चिंता नहीं है की दुनिया का सबसे बड़ा ग्रामीण विकास/ एफ़पीओ विकास की परियोजना डूब रही है। सब अपना नौकरी काट रहे है, और मालूम है की इस योजना के डूबने के बाद कोई नई योजना आ जाएगी। बेस्ट केयर अभी हारी नहीं है। इस टीम के पास इतना ज्ञान और अनुभव है की इन नकारे अधिकारियों से कैसे काम करवाना है, वो जानते है।