अधिवक्ता दिवस : ” अभिनव भारत को तराशने में अधिवक्ताओं की भूमिका”

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आशीष पटेल (बी.ए.एल.एल.बी. (ऑनर्स) चतुर्थ सेमेस्टर)

प्रत्येक वर्ष 3 दिसंबर को अधिवक्ता दिवस मनाया जाता है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के जन्मदिवस पर भारत भर में अधिवक्ता दिवस होता है। डॉ राजेंद्र प्रसाद प्रथम राष्ट्रपति के साथ संविधान समिति के अध्यक्ष भी थे, इन सब के पूर्व वह अधिवक्ता रहे हैं। वकालत विश्व भर में अत्यंत सम्माननीय और गरिमामय पैशा हैं। भारत में भी वकालत गरिमामय और सत्कार के पेशे के तौर पर हर दौर बना रहा है। स्वतंत्रता संग्राम में वकीलों ने जमकर लोहा लिया है। स्वतंत्रता ही नहीं अपितु जब स्वतंत्रता मिली और नए भारत को अभिनव का समय आया तब भी अधिवक्ताओं की महत्ता बनी रही।किसी युग में वकालत इंग्लैंड का राजशाही पैसा रहा है। वकील के गाउन में पीछे दो जेब होती थी, इन पीछे दो जेबों का अर्थ या अपने ग्राहक से कोई राशि नहीं मांगी जाना अर्थात ग्राहक जो चाहे अपने इक्क्षानुसार जेब में पारिश्रमिक डाल जाए।

अधिवक्ता की गरिमा वर्तमान भारत में भी ज्यों की त्यों बनी हुई है। अनेकों पेशों का आज आधुनिक बाज़ारवादी युग में प्रवेश हुआ है पर वकालत की चमक पर कोई पॉलिश अब तक भरी नहीं हुई है। आज भी भारतभर में बड़ी संख्या में लोग अधिवक्ता के लिए रजिस्टर हो रहे हैं।हालांकि आज समय के साथ इस पेशे के अर्थ अवश्य बदल गए है। धन कमाने के उद्देश्य से आज वकालत की जाने लगी है, आज हर वर्ग विशेष का व्यक्ति वकालत में दांव खेलने आ रहा है। जो जितना योग्य और निषांत प्रतिभा का धनी है उतना वकालत में सफल है। आज सफलता का अर्थ धन कमाना है, सफल वही है जिसने अधिक धन लूटा है क्योंकि सारा परिवेश ही इस प्रकार का बना हुआ, वैधानिक से लेकर सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह धन के आसपास है इसलिए वकालत भी धन कमाने के साधन के रूप हो चली है।इस पेशे का अजीब रहस्य है कि इस ही पेशे में एक ही विषय का अध्ययन कर कोई व्यक्ति अच्छी संपदा एकत्रित कर लेता है और कोई शून्य रह जाता, इतना रहस्यमय पेशा कोई अन्य नहीं मालूम होता है।

वकालत धन के मामले में संपूर्ण योग्यतावादी विचार देती है अर्थात जो जितना अधिक योग्य उतना धनवान और सफल।इन सब बाज़ारवादी विचारों के पूर्व अधिवक्ता आज भी मानवतावादी विचारों और तथा मानवीय स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत है। जहां कहीं मानवीय मूल्यों का अतिक्रमण होता है वहां अधिवक्ता की उपलब्धता प्रतीत हो जाती है।भारत की सारी न्याय व्यवस्था अधिवक्ता के काम पर टिकी हुई है। इतना कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि न्याय मिल ही इसलिए रहा है क्योंकिअधिवक्ता उपलब्ध है। अधिवक्ता न्यायालय के अधिकारी है, कभी कभी वह न्यायधीश से उच्च स्तरीय प्रतीत होतें क्योंकि संपूर्ण न्याय व्यवस्था का भार इन ही काले कोट के कंधों पर है। अगर अधिवक्ता न हो तो भारत की जनता को न्याय मिलना असंभव सा हो चले।विधि शासन को बनाए रखने में अधिवक्ता की महत्वपूर्ण भूमिका है। व्यक्ति अधिकारों के अतिक्रमण होने पर न्यायालय की ओर रुख करता है। और न्यायालय का रास्ता वकील के मार्गदर्शन में ही पाया जाता है।

भारत की विषाद न्याय व्यवस्था समझने उसे पर कार्य करने के लिए कौशल चाहिए। जन साधारण का ऐसा कौशल पाना सरल कार्य नहीं है। अधिवक्ता का अभ्यास ही ऐसे कौशल को जन्म देता है।मनुष्य की असभ्य युग से सभ्य युग तक आने की यात्रा बहुत लंबी है और इस यात्रा के बाद विधि शासन का जन्म होता है और विधि शासन को बनाए रखने वाली अदृश्य शक्ति एक प्रकार से अधिवक्ता भी है।समाज में अनेक पेशे दुराचार में ग्रस्त है परंतु दुराचार का लांछन वकीलों पर मढ़ दिया जाता है।वकीलों को अपनी गरिमा और सामाजिक प्रतिष्ठा को ज्यों की त्यों बनाए रखने के लिए अधिक परिश्रम करने चाहिए जिससे किसी भी प्रकार से यह विलक्षण और पवित्र वृत्ति दूषित और कलंकित नहीं हो।महान भारत को अभिनव में महत्ती भूमिका रखने वाले अधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद को अधिवक्ता दिवस पर विधि विद्यार्थी आशीष पटेल द्वारा इस लेख के माध्यम से श्रद्धा सुमन अर्पित है ।