Ujjain : श्रीहरि विष्णु को सृष्टि का भार सौपकर महाकाल गए कैलाश, उज्जैन में हुआ हरि संग हर का अद्भुत मिलन

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Ujjain : बैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर, उज्जैन में भगवान महाकाल और भगवान विष्णु का दिव्य मिलन हुआ, जिसे भक्तों ने बहुत धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया। यह मिलन आधी रात को हुआ, जब भगवान महाकाल ने भगवान विष्णु को सृष्टि का भार फिर से सौंप दिया। इस विशेष अवसर पर, महाकाल की सवारी ने रात 11 बजे अपने पारंपरिक मार्ग की शुरुआत की और गोपाल मंदिर तक पहुंची, जहां दोनों देवताओं का मिलन हुआ। इस मिलन को लेकर शहर भर में उत्साह का माहौल था और भक्तों की भारी भीड़ सवारी मार्ग के दोनों किनारों पर जमा थी।

हरी-हर मिलन का धार्मिक महत्व

बैकुंठ चतुर्दशी की रात भगवान महाकाल और भगवान विष्णु के मिलन को लेकर धार्मिक मान्यता है कि इस दिन हरि (भगवान विष्णु) और हर (भगवान शिव) का मिलन होता है। यह मिलन एक अद्भुत और दिव्य क्षण होता है, जिसमें दोनों देवताओं ने एक-दूसरे को विपरीत मालाएं पहनाई। भगवान महाकाल ने भगवान विष्णु को बिल्वपत्र की माला पहनाई, जो भगवान शिव की प्रिय माला मानी जाती है, जबकि भगवान विष्णु ने भगवान महाकाल को तुलसी पत्र की माला पहनाई, जो भगवान विष्णु को प्रिय है। इस समय दोनों देवताओं की महाआरती भी विधिपूर्वक की गई और भक्तों ने हर्षोल्लास के साथ पूजा-अर्चना की।

मध्य रात्रि में देवों का मिलन

मध्य रात्रि के समय, भगवान महाकाल अपनी सवारी के साथ भगवान विष्णु के समक्ष पहुंचे, जो कि उज्जैन के गोपाल मंदिर में स्थित थे। इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर के आसपास और सवारी मार्ग के किनारे जमा हुए थे। भक्तों ने इस दिव्य मिलन को देखा और भगवान महाकाल और भगवान विष्णु की महिमा का गान किया।

भगवान महाकाल और भगवान विष्णु के बीच की परंपरा

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक पाताल लोक में राजा बलि के यहाँ विश्राम करने जाते हैं। इस दौरान भगवान विष्णु सृष्टि का संपूर्ण भार भगवान महाकाल को सौंप देते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी की मध्य रात्रि में, भगवान महाकाल भगवान विष्णु को फिर से सृष्टि का भार सौंपते हैं। इस प्रक्रिया के बाद, भगवान महाकाल फिर से कैलाश पर्वत पर तपस्या के लिए लौट जाते हैं।