व्यंग्य शशिकांत गुप्ते
एक भिखारी ने मेरे सामने हाथ फैलाते हुए, याचना भरे आंदाज में कहा,एक रुपये का सवाल बाबू? मैने भिखारी से कहा तुम्हे मालूम नहीं भीख मांगना अपराध है? मेरी बात सुनकर भिखारी जोर से हँसने लगा। मैने कहा,मैं कोई चुटुकुला नहीं सुना रहा हूँ। भिखारी बोला बाबू मैने सिर्फ एक रुपया मांगा और आप मुझे कानून बताने लगे गए?
मैं भिखारी से ज्यादा बहस करना नहीं चाहता था।मैने बेमन से जेब से निकालकर एक रुपया भिखारी को दिया। मेरे चहरे के भाव देख कर भिखारी बोला भीख भी अच्छे नीयत से देना चाहिए। भिखारी की बातों को दर किनार कर आगे बढ़ते हुए सोच रहा था।मैं नीति से चलने वाला व्यक्ति हूँ,और भिखारी मेरी नीयत पर प्रश्न उपस्थित कर रहा है?
यकायक मेरे स्मृति पटल पर सवाल को लेकर मेरे मानस पटल पर द्वंद छिड़ गया। भिखारी ने बोला हुआ संवाद याद आया,एक रुपये का सवाल है?
एक रुपया की क़ीमत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कितनी भी गिर रही हो,लेकिन स्वदेश में सवाल करने पर एक रुपया जुर्माना भरना पड़ता है। यह एकदम सत्य है। संविधान द्वारा प्राप्त वाणी की स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार को व्यावहार में लाने का जुर्माना एक रुपया।
गांधीजी के तीन बंदर अब अपने संदेश की भाषा बदल रहे हैं।एक बंदर कहता है,बुराई देख कर भी चुप रहो,दूसरा बंदर कहता है,बुरा काम होता है,तो होने दो,देखो मत,तीसरा बंदर स्वयं के कान पर हाथ रख कर संकेत दे रहा है,जैसे मैने अपने कानों पर हाथ रखे वैसे ही व्यवस्था ने तो कानों में रुई ठूस रखी है।व्यवस्था तो बुराई सुनना ही नहीं चाहती।
वैसे भी सवाल करने वाले को सोचना चाहिए हमारे देश की संस्कृति में, किसी की भी, सीधी आलोचना नहीं करती है।मसलन अंधे को कोई अंधा नहीं कहता है, सूरदास कहता है।काने को कोई तिरछा नहीं कहता है,समदरसी कहता है।बहरे को ऊंचा सुनने वाला कहा जाता है। विकलांग विव्यांग आदि सम्बोधनों का भी प्रचलन है।
भिखारी के एक रुपये के सवाल पर कितना कुछ सोचा जा सकता है। कानून विद सड़क पर आकर लोकतंत्र पर प्रश्न उपस्थित करते हैं तो करने दो। कोई फटफटी पर बैठ कर सैरसपाटा करता है तो करने दो।ऐसे दृश्य देख कर आपकी आंखें क्यों फ़टी की फटी रह जाती है?
आपने देखा ,फिर लिखा,आप अपराधी घोषित हो गए।
एक रुपये का जुर्माना राष्ट्रव्यापी बहस का मुद्दा बन गया है, यह लोकतंत्र के लिए एक सुखद अनुभूति है। धन्य है वह भिखारी जिसने सड़क पर चलते हुए, एक लेखक के मानसिक अंतर्द्वद्व को झकझोर कर रख दिया।लेखक द्वारा भीख में दिया गया एक रूपया उतना ही महत्वपूर्ण है जितना एक रुपये का जुर्माना?