हरतालिका तीज का त्योहार आज भाद्रपद की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती है। ये व्रत सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती है। हर साल यह त्योहार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं और लड़कियां श्रंगार कर मेहंदी लगाती है। साथ ही महिलाएं निराहार रहकर व्रत करती हैं। शाम को कथा पढ़ कर और माता पार्वती, शिवजी की पूजा करती है। आपको बता दे, इस व्रत में महिलाएं माता गौरी से सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मांगती हैं। इसलिए विवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आज हम आपको हरतालिका तीज कैसे शुरू हुआ और क्या है इसकी प्राचीन कथा वो बताने जा रहे हैं। तो चलिए जानते हैं –
हरतालिका तीज का मुहूर्त –
हरतालिका पूजा मुहूर्त: 5:53 am से 8:29 am
प्रदोष काल हरतालिका पूजा मुहूर्त: 6:54 pm से 9:06 pm
तृतीया तिथि प्रारंभ – 2:13 am अगस्त 21, 2020
तृतीया तिथि समाप्त – 11.02 pm अगस्त 21, 2020
हरतालिका तीज की कथा-
हिन्दू परंम्परा के जानकार बताते हैं कि महादेव को पतिदेव के रुप में प्राप्त करने की इच्छा से बाल्यकाल में हिमालय पुत्री गौरी ने गंगा किनारे अधोमुखी होकर घोर तप किया था। जिसमें उन्होंने बिना अन्न-जल ग्रहण किये केवल वायु के सेवन से सैकड़ो वर्ष गौरी ने गुजारे। जाड़े में पानी में खड़े होकर और भीषण गर्मी में पंचाग्नि से शरीर को तपाया। वहीं बरसात के दिनों में खुले आसमान में रहकर तपस्या की। अनेक वर्ष केवल पेड़ के सूखे पत्ते चबाकर जीवन निर्वाह किया। हिमाचल पुत्री के तप की धमक जब देवलोक पहुंची तो सप्तर्षियों ने जाकर पार्वती के शिव प्रेम की परीक्षा ली।
लेकिन गौरी को संकल्प पथ से विचलित करने के सारे प्रयत्न विफल साबित हुए। उनकी अटल-अविचल शिव भक्ति से सप्तर्षी प्रसन्न हुए और जाकर महादेव को सारी बात बताई। ऐसा कहते हैं कि भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हथिया नक्षत्र में गौरी ने रेत का शिवलिंग बनाकर रात भर पूजा की। इससे भगवान भोले प्रसन्न हुए और गौरी के सामने उपस्थित होकर वर मांगने को कहा। उसी समय गौरी ने शिव से अपनी अर्द्धागिंनी के तौर पर स्वीकार करने का वर मांग लिया। तब से ही मनचाहा वर पाने और पति की लंबी आयु के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। साथ ही कहीं-कहीं कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं।
हरतालिका तीज पूजा विधि –
इस दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। उसके बाद बालू रेत से भगवान गणेश, शिव जी और माता पार्वती की प्रतिमा बनाएं। फिर एक चौकी पर अक्षत से अष्टदल कमल की आकृति बनाएं। उसके बाद एक कलश में जल भरकर उसमें सुपारी, अक्षत, सिक्के डालें। फिर उस कलश की स्थापना अष्टदल कमल की आकृति पर करें। फिर कलश के ऊपर आम के पत्ते लगाकर नारियल रखें। वहीं चौकी पर पान के पत्तों पर चावल रखें।
फिर माता पार्वती, गणेश जी, और भगवान शिव को तिलक लगाएं। घी का दीपक, धूप जलाएं। फिर भगवान शिव को उनके प्रिय बेलपत्र धतूरा भांग शमी के पत्ते आदि अर्पित करें। माता पार्वती को फूल माला चढ़ाएं गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें। फिर भगवान गणेश, माता पार्वती को पीले चावल और शिव जी को सफेद चावल अर्पित करें। पार्वती जी को शृंगार का सामान भी अवश्य अर्पित करें। उसके बाद भगवान शिव औऱ गणेश जी को जनेऊ अर्पित करें। और देवताओं को कलावा (मौली) चढ़ाएं। हरितालिका तीज की कथा सुनें। पूरी पूजा विधिवत् कर लेने के बाद अंत में मिष्ठान आदि का भोग लगाएं और आरती करें।