Indore News : भारतीय प्रबंध संस्थान इंदौर (आईआईएम इंदौर) में 1-14 सितम्बर, 2021 तक हिंदी पखवाड़े का आयोजन किया गया। समापन कार्यक्रम 14 सितम्बर को आयोजित हुआ जिसमें डॉ. गुलाब कोठारी, प्रधान संपादक, राजस्थान पत्रिका मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। प्रो. हिमाँशु राय, निदेशक, आईआईएम इंदौर ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। प्रो.हिमाँशु राय ने हिंदी भाषा के महत्व पर अपने विचार साझा किए।
उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र और एक देश के बीच अंतर होता है। एक देश में भौगोलिक भूमि द्रव्यमान, लोग और संप्रभुता होती है; जबकि राष्ट्र में एक चौथा तत्व जुड़ जाता है – संस्कृति। यही संस्कृति वह बुनियाद है जिस पर हमें एक नई,न्यायपूर्ण और जीवंत दुनिया का निर्माण करना चाहिए और ज़ाहिर है, कि भाषा संस्कृति का आधार है। ‘जिस तरह हमारी माँ हमारा पालन-पोषण करती है, हमें खिलाती है, बड़ा करती है और हमें वह बनाती है जो हम हैं; उसी प्रकार हमारी मातृभाषा भी हमारी पहचान को आकार देती है और हमारे उद्देश्य को परिभाषित करती है।
हमें आत्मनिरीक्षण करने और समझने की जरूरत है कि अगर हमारी मातृभाषा नहीं होती, या अगर हम हमारी भाषा खो देते हैं, या वह विलुप्त हो जाती है तो क्या होगा; क्योंकि अब कोई भी हिंदी या क्षेत्रीय भाषा में अधिक बात नहीं करता है। हमारी मातृभाषा संस्कृत पर निर्भर है। चूंकि संस्कृत में बातचीत करने वाले लोग भी अब नहीं हैं, इसलिए यह भाषा अब एक ‘विषय’ बन गई है। सुनिश्चित करें कि हमारी हिंदी भाषा लुप्त न हो, क्योंकि यह वह आत्मा है, वह सार है जो हमारी संस्कृति के अस्तित्व को सुनिश्चित करती है। हम अधिक से अधिक हिंदी में बातचीत करते रहें, इसकी सराहना करें, इसे अपनाएं और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को भी सीखें, क्योंकि भले ही हम इतिहास में नहीं जीते हैं, लेकिन अगर हम अपना इतिहास खो देते हैं, तो हमारा अस्तित्व भी नष्ट हो जाएगा ‘, उन्होंने कहा।
डॉ. गुलाब कोठारी ने ‘हिंदी का इतिहास और भविष्य’ पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि हिंदी को अध्ययन का विषय नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि यह तो हमारे अस्तित्व का सार है। हमें सकारात्मक विचारों पर जोर देना चाहिए, आशावादी पक्ष की ओर देखना चाहिए और अन्य संस्कृतियों की नकल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। इसके लिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम अपने अस्तित्व के कारणों को समझने और अपनाने में सक्षम हैं। उन्होंने कहा, ‘यही कारण है कि हमें प्राचीन और अच्छे साहित्य को पढने,उससे ज्ञान प्राप्त करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि उसके सकारात्मक विचार हमें अपने अस्तित्व के कारण को स्वीकार करने में, हमें खुद को फिर से जीवंत और सशक्त बनाने में मदद करते हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी सबसे शक्तिशाली भाषाओं में से एक है और हिंदी या हमारी क्षेत्रीय भाषा में बातचीत करना भाषा के साथ हमारे सम्बन्ध को और प्रगाढ़ और मजबूत बनाता है। ‘आइए हम अपने अस्तित्व के उद्देश्य का पता लगाने का संकल्प लें, लक्ष्य पर केन्द्रित रहे,जो जीवन में आगे बढ़ने में मदद करते हैं।
जरूरत पड़ने पर पैसा, पदनाम या शक्ति हमारी मदद नहीं करती है। यह इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प ही है जो लक्ष्यों को पूरा करने और वह जीवन प्राप्त करने में मदद करता है जिसे आप चाहते हैं और जीने की इच्छा रखते हैं ‘, उन्होंने कहा। उन्होंने कहा कि हम उस अंकुर की तरह हैं जो जमीन में बोने पर पेड़ बन जाता है – एक ऐसा पेड़ जो दूसरों को फल देता है। इसी तरह, एक बार जब आप अपने जीवन में अपने लक्ष्य और उद्देश्य को खोजने में सक्षम हो जाते हैं,तो जमीन से जुड़े रहें, अपनी संस्कृति की मदद से खुद का पोषण करें, एक बड़े व्यक्ति के रूप में विकसित हों और तभी आप अपने आसपास के लोगों की सेवा करते हुए राष्ट्र निर्माण में योगदान दे पाएंगे। इस अवसर पर, आईआईएम इंदौर की वार्षिक हिंदी पत्रिका ज्ञान शिखर का छठा संस्करण भी जारी किया गया। पुस्तक में संस्थान के शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों द्वारा विभिन्न रोचक और व्यावहारिक लेख, कहानियां और कविताएं शामिल हैं। पत्रिका में परिवार के सदस्यों और संकाय और कर्मचारियों के बच्चों के रेखाचित्र और लेख भी हैं।
इसके बाद एक अंतर्दृष्टिपूर्ण प्रश्न और उत्तर सत्र का आयोजन किया गया जिसमें प्रो. राय ने डॉ. कोठारी से उनके जीवन, उनके अद्भुत कार्य अनुभव और पत्रकारिता की यात्रा के बारे में प्रश्न पूछे। इस मौके पर दर्शकों को डॉ. कोठारी से बातचीत करने का भी मौका मिला। संस्थान में आयोजित हिंदी पखवाड़े के दौरान दो प्रतियोगिताएं – टिप्पण एवं मसौदा लेखन और अन्ताक्षरी का भी आयोजन हुआ था। इस मौके पर इन दोनों प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया।
हिंदी पखवाड़ा के दौरान प्रो. राय द्वारा 13 सितंबर, 2021 को आईआईएम इंदौर लर्निंग सेंटर में एक ‘वर्नाक्यूलर लैंग्वेज कॉर्नर’ का भी उद्घाटन किया गया। इसका उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में लिखी गई पुस्तकों की पेशकश करना और समुदाय को विभिन्न भारतीय भाषाओं से संबंधित साहित्य को सीखने और पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना है। वर्तमान में यहाँ कन्नड़, हिंदी, मलयालम, बंगाली, उर्दू, मराठी और गुजराती भाषाओं में लगभग 2000 पुस्तकें हैं। कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।आईआईएम इंदौर सदैव अपने ध्येय वाक्य पर अडिग रहा है और राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए तत्पर रहा है। संस्थान में सभी संचार के लिए अब द्विभाषा का प्रयोग किया जाता है।