बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने लालू परिवार को एक बड़ा झटका दिया है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव महुआ विधानसभा सीट से चुनाव हार गए हैं। अपनी नई पार्टी ‘जनशक्ति जनता दल’ (JJD) के टिकट पर उतरे तेज प्रताप मुकाबले में तीसरे स्थान पर खिसक गए। इस सीट पर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के उम्मीदवार संजय सिंह ने 87,641 वोट हासिल कर एकतरफा जीत दर्ज की।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, RJD के आधिकारिक उम्मीदवार मुकेश कुमार रौशन 42,644 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे, जबकि तेज प्रताप यादव को केवल 35,703 वोटों से संतोष करना पड़ा। दिलचस्प बात यह है कि 2015 में तेज प्रताप ने इसी महुआ सीट से जीतकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। उनकी इस बड़ी हार के पीछे सियासी समीकरणों और रणनीतिक चूकों को मुख्य कारण माना जा रहा है।
यादव वोटों का बंटवारा बना हार की सबसे बड़ी वजह
तेज प्रताप की हार का सबसे अहम कारण यादव वोटों का विभाजन रहा। महुआ सीट पर यादव मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इस बार RJD ने तेज प्रताप के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतार दिया, जिससे पारंपरिक RJD वोट बैंक दो हिस्सों में बंट गया।
आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं। यदि तेज प्रताप (35,703) और RJD उम्मीदवार मुकेश रौशन (42,644) के वोटों को मिला दिया जाए, तो कुल योग 78,347 होता है। यह संख्या LJP के विजेता उम्मीदवार संजय सिंह (87,641) से बहुत ज्यादा कम नहीं है। अगर तेज प्रताप महागठबंधन के साथ होते, तो यह सीधा मुकाबला होता और नतीजा कुछ और हो सकता था। इस बंटवारे ने LJP की जीत का रास्ता आसान कर दिया।
RJD से अलग होकर नई पार्टी बनाना पड़ा महंगा
तेज प्रताप यादव ने RJD से अलग होकर अपनी पार्टी JJD के बैनर तले चुनाव लड़ने का फैसला किया, जो एक बड़ी रणनीतिक भूल साबित हुई। 2020 में वह RJD के टिकट पर हसनपुर से जीते थे, लेकिन इस बार उन्होंने महुआ लौटने का जोखिम उठाया।
RJD जैसे बड़े और स्थापित संगठन के बिना उनका व्यक्तिगत करिश्मा काम नहीं आया। उनकी नई पार्टी का संगठनात्मक ढांचा कमजोर था और संसाधन भी सीमित थे। चुनाव प्रचार के दौरान वह वह गति नहीं बना पाए, जो एक बड़े गठबंधन का हिस्सा होने पर मिलती। हार के बाद तेज प्रताप का “जयचंदों” पर निशाना साधना पार्टी के भीतर आंतरिक कलह और कमजोर प्रबंधन की ओर इशारा करता है।
तेजस्वी की लहर से कटे और एंटी-इनकम्बेंसी का असर
इस चुनाव में तेजस्वी यादव ने पूरे बिहार में RJD के पक्ष में एक माहौल बनाया था। लेकिन तेज प्रताप ने अलग चुनाव लड़कर खुद को इस सामूहिक लहर से अलग कर लिया। वह तेजस्वी के युवा नेतृत्व और महागठबंधन के मजबूत ढांचे का फायदा उठाने से चूक गए।
इसके अलावा, महुआ सीट पर 2015 से ही लालू परिवार का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कब्जा रहा है (2015 में तेज प्रताप, 2020 में RJD)। इस वजह से स्थानीय स्तर पर एक सत्ता-विरोधी भावना भी काम कर रही थी। इन सभी कारणों ने मिलकर तेज प्रताप यादव की हार की पटकथा लिखी।










