बिहार की राजनीति एक बार फिर उस मोड़ पर खड़ी है जहाँ नीतीश कुमार लगातार सुर्खियों के केंद्र बन गए हैं। 74 वर्षीय नेता अब तक नौ बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं और एनडीए की भारी जीत के बाद उनका दसवां शपथ ग्रहण लगभग तय माना जा रहा है। भारत के राजनीतिक इतिहास में इतने बार मुख्यमंत्री बनने वाला कोई दूसरा नेता नहीं है। नीतीश न सिर्फ बार-बार सत्ता में लौटे हैं बल्कि जल्द ही वे मुख्यमंत्री के तौर पर सबसे लंबे कार्यकाल वाले नेताओं की सूची में भी ऊपर चढ़ते जा रहे हैं, जिससे उनकी राजनीतिक यात्रा और भी खास बन जाती है।
कैसे नीतीश बने नौ बार मुख्यमंत्री, हर कार्यकाल की अनोखी कहानी
नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव, गठबंधन, इस्तीफे और अप्रत्याशित वापसी से भरा रहा है। पहली बार मार्च 2000 में वे मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत न मिलने के कारण उनका पहला कार्यकाल सिर्फ सात दिनों का रहा जो आज भी चर्चा का विषय रहता है। दूसरी पारी 2005 में शुरू हुई जब उन्होंने बिहार में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता संभाली और पूरा कार्यकाल पूरा किया। इसके बाद तीसरी बार 2010 में वे दोबारा सीएम बने और सुशासन बाबू की छवि मजबूत हुई।चौथी बार 2014 में मुख्यमंत्री बने। हालांकि यह अवधि लंबी नहीं चली क्योंकि लोकसभा चुनाव में जेडीयू के खराब प्रदर्शन की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया। पांचवें कार्यकाल में 2015 में वे महागठबंधन के नेता बनकर फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लौटे। छठा कार्यकाल जुलाई 2017 में शुरू हुआ, जब उन्होंने अचानक महागठबंधन छोड़ भाजपा के साथ सरकार बनाई। सातवीं बार 2020 में एनडीए के साथ मिलकर नीतीश फिर मुख्यमंत्री बने। आठवीं बार 2022 में उन्होंने भाजपा से नाता तोड़कर आरजेडी-कांग्रेस के साथ नई सरकार बनाई और फिर नौवीं बार, जनवरी 2024 में उन्होंने महागठबंधन को छोड़कर एक बार फिर एनडीए की ओर रुख किया और रिकॉर्ड नौवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने।
सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री, नीतीश भी रेस में शामिल
हालांकि नीतीश कुमार “सबसे ज़्यादा बार पद की शपथ लेने वाले” मुख्यमंत्री बन चुके हैं, लेकिन कुल कार्यकाल की अवधि के हिसाब से वे भारत के शीर्ष 10 मुख्यमंत्रियों में शामिल हैं। देश में सबसे लंबा मुख्यमंत्री कार्यकाल सिक्किम के पवन कुमार चामलिंग का है, जो 24 वर्ष 165 दिन तक लगातार सत्ता में रहे। यह एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड है। ओडिशा के नवीन पटनायक ने 24 साल 99 दिन शासन करके राजनीति में स्थायित्व का नया उदाहरण दिया। पश्चिम बंगाल के ज्योति बसु ने 23 साल 137 दिन तक राज्य का नेतृत्व किया वे भारतीय वाम राजनीति के सबसे बड़े चेहरों में से एक थे।
अरुणाचल प्रदेश के गेगोंग अपांग, मिजोरम के लाल थनहवला, हिमाचल के वीरभद्र सिंह, त्रिपुरा के माणिक सरकार, तमिलनाडु के एम. करुणानिधि और पंजाब के प्रकाश सिंह बादल इन सभी नेताओं का नाम भारत के सबसे ज्यादा कार्यकाल वाले मुख्यमंत्रियों की सूची में दर्ज है। इन बड़े नामों के बीच नीतीश कुमार लगभग 19 साल के कुल कार्यकाल के साथ 9वें स्थान पर हैं लेकिन शपथ लेने के रिकॉर्ड में वे सभी को पीछे छोड़ चुके हैं।
10वीं शपथ, नया अध्याय या फिर बिहार की राजनीति में नया मोड़?
अब जब एनडीए ने शानदार जीत हासिल की है, नीतीश कुमार का अगला और ऐतिहासिक 10वां शपथ ग्रहण लगभग तय माना जा रहा है। यह सिर्फ संख्या नहीं बिहार की राजनीतिक स्थिरता, उनके नेतृत्व और बार-बार परिस्थितियों के अनुसार खुद को पुनर्परिभाषित करने की क्षमता का प्रमाण है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश कुमार सत्ता में रहने की कला, परिस्थितियों के अनुसार गठबंधन बदलने की क्षमता और बिहार की प्रशासनिक जरूरतों को समझने की वजह से आज भी राज्य की राजनीति का सबसे मजबूत स्तंभ बने हुए हैं।









