उत्तर प्रदेश सरकार ने किराएदारों और मकान मालिकों के बीच संबंधों में पारदर्शिता लाने तथा किराया विवादों को कम करने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक पहल की है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर रेंट एग्रीमेंट के रजिस्ट्रेशन पर लगने वाली स्टांप ड्यूटी में उल्लेखनीय कमी की गई है। अब किराए के मकानों का रजिस्ट्रेशन मात्र ₹500 से ₹2500 के न्यूनतम शुल्क पर कराया जा सकेगा।
पहले 4 प्रतिशत स्टांप ड्यूटी के कारण लोग एग्रीमेंट कराने से हिचकते थे, जिससे शिकायतें और कानूनी विवाद लगातार बढ़ते जा रहे थे। सरकार का यह निर्णय न केवल लाखों किरायेदारों, मकान मालिकों और ब्रोकरों के लिए राहतकारी साबित होगा, बल्कि प्रदेश के तेजी से शहरीकरण की दिशा में आने वाली चुनौतियों के समाधान की दिशा में भी यह एक सार्थक कदम माना जा रहा है।
किराया विवादों पर लगाम लगाने की पहल
किराया व्यवस्था से जुड़े विवादों और बढ़ती शिकायतों को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्टांप एवं पंजीकरण विभाग को इस संबंध में विस्तृत प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए थे। विभाग ने सुझाव दिया कि यदि स्टांप ड्यूटी को न्यूनतम किया जाए, तो अधिक लोग किराया अनुबंधों का पंजीकरण कराएंगे, जिससे न केवल विवादों में कमी आएगी बल्कि अभिलेख प्रणाली भी सुदृढ़ होगी। सरकार ने विभाग के इन सुझावों को स्वीकार करते हुए नई दरों को लागू कर दिया है।
4% स्टांप ड्यूटी के कारण लोग करते थे परहेज
किरायेदारी विवादों की जड़ में अब तक सबसे बड़ी समस्या यह थी कि अधिकांश लोग रेंट एग्रीमेंट का पंजीकरण नहीं कराते थे। पहले की व्यवस्था के अनुसार इन अनुबंधों पर 4% स्टांप ड्यूटी लगती थी, जो किराएदार और मकान मालिक दोनों के लिए आर्थिक बोझ साबित होती थी। इसी कारण अधिकांश लोग औपचारिक कागज़ी अनुबंध के बजाय मौखिक समझौते के आधार पर ही मकान किराए पर दे देते थे।
कई मामलों में यह भी पाया गया कि बिना पंजीकरण वाले किरायेदार अपराध गतिविधियों में शामिल होने पर आसानी से ट्रैक नहीं किए जा सकते थे, क्योंकि उनके निवास का कोई सरकारी रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं होता था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में लगभग 40% मकान किराए पर दिए जाते हैं, लेकिन उनमें से केवल 8–10% ही रेंट एग्रीमेंट पंजीकृत होते थे। यह स्थिति कानून व्यवस्था और प्रशासनिक दृष्टि से गंभीर चुनौती बन चुकी थी।









