मध्यप्रदेश सरकार ने सोयाबीन किसानों को राहत देने के लिए फिर से भावांतर योजना शुरू कर दी है। इस योजना के तहत रजिस्टर्ड किसान 1 नवंबर से 31 जनवरी तक अपनी फसल मंडियों में बेच सकेंगे। हर 15 दिन की बिक्री के बाद, प्रदेश की सरकारी मंडियों में फसल के औसत भाव के आधार पर एक मॉडल रेट तय किया जाएगा। अगर यह मॉडल रेट न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम पाया गया, तो सरकार अंतर की राशि सीधे किसानों के बैंक खातों में जमा कर देगी।
रजिस्ट्रेशन और बिक्री का समय
इस योजना में भाग लेने के लिए किसान 10 से 25 अक्टूबर तक अपना रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। रजिस्ट्रेशन पूरा करने के बाद ही किसान 1 नवंबर से मंडियों में अपनी फसल बेचने के पात्र होंगे। मुख्यमंत्री ने भावांतर योजना को इस साल फिर से लागू करने की घोषणा की, क्योंकि पिछले कुछ समय में सोयाबीन के भाव लगातार गिर रहे थे और किसान इसके चलते परेशान थे।
मॉडल रेट की नई प्रक्रिया
पहले मॉडल रेट तय करने में तीन अन्य राज्यों के भाव की तुलना की जाती थी, जिससे मध्यप्रदेश के किसानों के लिए वास्तविक भाव पर असर पड़ता था। अब नया तरीका अपनाया गया है, जिसमें केवल प्रदेश की सरकारी मंडियों के औसत भाव के आधार पर मॉडल रेट तय होगा। इस बदलाव से किसानों को अधिक पारदर्शी और सही भाव मिलने की संभावना बढ़ गई है।
उत्पादन और मंडियों की स्थिति
पिछले साल प्रदेश में सोयाबीन का उत्पादन 52 लाख मीट्रिक टन था। लेकिन इस साल भारी बारिश के कारण उत्पादन में 10 से 15 प्रतिशत तक गिरावट की आशंका है। मंडी बोर्ड के अनुसार, 1 अप्रैल से प्रदेश की सभी मंडियां ई-मंडी सिस्टम से जुड़ चुकी हैं, जिससे फसल की बिक्री पूरी तरह ऑनलाइन और पारदर्शी तरीके से होती है।
कैमरों की निगरानी और पारदर्शिता
अब मंडियों में होने वाली हर खरीदारी कैमरों की निगरानी में एक निश्चित कमरे में होगी। इससे भाव विवाद कम होंगे और सभी लेन-देन पारदर्शी तरीके से होंगे। ऑनलाइन डेटा के जरिए यह भी पता चल सकेगा कि किस व्यापारी ने कितना माल खरीदा। इसके अलावा, अगर कोई किसान मंडी के बाहर ई-अनुज्ञा के जरिए फसल बेचता है, तो उसका रिकॉर्ड भी मंडी बोर्ड के सिस्टम में दर्ज होगा। इस व्यवस्था से किसानों और व्यापारियों दोनों के लिए विश्वास और पारदर्शिता सुनिश्चित होती है।