कांग्रेस में राष्ट्रीय फलक पर बढ़ता दिग्विजय का कद

Ayushi
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-अरुण पटेल
– लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं
– संपर्कः 0942510804-7999673990
– यह आलेख दैनिक समाचार पत्र सुबह सवेरे के 05 सितम्‍बर 2021 के अंक में प्रकाशित हुआ है।

देशव्यापी आंदोलनों की रुपरेखा बनाने वाली समिति का अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री सांसद दिग्विजय सिंह को बनाकर सोनिया गांधी ने कांग्रेसी राजनीति में राष्ट्रीय फलक पर फिर एक बार दिग्विजय का कद और महत्व बढ़ा दिया है। दिग्विजय के बढ़ते राजनीतिक कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी अध्यक्षता में जो समिति गठित हुई है उसमें कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी एक सदस्य मनोनीत की गई हैं। इस नौ सदस्यीय समिति में उत्तम कुमार रेड्डी, मनीष चतरथ, वी.के. हरिप्रसाद, रिपुन वोरा, उदित राज, डाॅ रागिनी नायक तथा जुबेर खान शामिल हैं।

वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश में पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का श्रेय लूटने की होड़ भाजपा और कांग्रेस में तेज हो गई है। बतौर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपनी डेढ़ साल की सरकार के दौरान पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण बढ़ाकर उसकी सीमा 27 प्रतिशत कर दी थी, जिसे बाद में उच्च न्यायालय ने स्थगित कर दिया था। शिवराज सिंह चैहान ने हाल में जिन क्षेत्रों में उच्च न्यायालय ने स्थगन नहीं दिया था उनमें 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने का ऐलान कर दिया है। इसके साथ ही इस मुद्दे का राजनीतिक लाभ लेने के लिए दोनों पार्टियों द्वारा इन वर्गों के असली हितैषी होने का दावा जोरशोर से किया जा रहा है।

दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता में गठित नौ सदस्यीय कमेटी का मुख्य काम कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव और आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर पार्टी आंदोलनों की रुपरेखा बनाना है। दिग्विजय सिंह कांग्रेस की आर्थिक मामलों की समिति के अध्यक्ष भी हैं। इससे पूर्व विधानसभा चुनाव के दौरान तामिलनाडु स्क्रीनिंग कमेटी का प्रमुख बनाया गया था। दिग्विजय सिंह तो कांग्रेसी राजनीति में सक्रिय हैं ही लेकिन अब धीरे-धीरे कांग्रेस आलाकमान उन्हें निरन्तर नयी-नयी जिम्मेदारियां सौंपता जा रहा है। 2018 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के पूर्व दिग्विजय ने नर्मदा परिक्रमा यात्रा की थी जो कि उनका एक धार्मिक आयोजन था लेकिन फिर भी कांग्रेस के नेता व कार्यकर्ता जगह-जगह इसमें शामिल हुए थे।

धड़ों और गुटों में बंटी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं व नेताओं को एकजुट करने के अभियान के तहत उन्होंने ‘‘संगत में पंगत‘‘ कार्यक्रम के तहत सभी कांग्रेसजनों को आपस में बैठा कर उनका असंतोष दूर करने और मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया, जिसका असर विधानसभा चुनाव में साफ-साफ देखने में नजर आया और डेढ़ दशक के बाद फिर से राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। कमलनाथ सरकार गिरने और ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में चले जाने के बाद धीरे-धीरे कांग्रेस आलाकमान भी यह महसूस करने लगा कि अब दिग्विजय सिंह का उपयोग राष्ट्रीय राजनीति में भी किया जाए। वैसे प्रादेशिक राजनीति में ग्वालियर-चम्बल संभाग में कांग्रेस को फिर से मजबूत करने का बीड़ा दिग्विजय ने उठा रखा है।

मध्यप्रदेश और दिल्ली में आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण अचानक फिर से आलाकमान की नजर में दिग्विजय का महत्व रेखांकित हुआ। नई दिल्ली में हाल ही में युवा कांग्रेस ने एक प्रदर्शन किया उसमें दिग्विजय सिंह बड़ी फुर्ती से बेरीकेड पार कर दूसरी तरफ जा पहुंचे। उनकी सक्रियता को देखते हुए ही अब आंदोलनों से लगभग परहेज करने वाली कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए जो समिति बनाई गई उसका उन्हें अध्यक्ष पद सौंपा गया है। वैसे भी अब कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में जो नेता सक्रिय हैं उनकी अपनी पहचान अपने प्रदेश में भी नहीं है। जबकि दिग्विजय सिंह ऐसे राजनेता हैं जिनकी पकड़ मध्यप्रदेश के अलावा अन्य कुछ कांग्रेस के असर वाले राज्यों में भी है।

पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की राजनीति में जो भी चेहरे हैं उनमें से अधिकांश अविभाजित मध्यप्रदेश में दिग्विजय के नजदीकी माने जाते थे और इनमें से अधिकांश उनके मंत्रिमंडल के सदस्य भी रह चुके हैं। अपने बयानों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहने वाले दिग्विजय को अंततः हाईकमान ने ऐसा दायित्व सौंपा है जो उनकी रुचि के अनुकूल है क्योंकि वे हमेशा मैदानी राजनीति में सक्रिय रहे हैं। भाजपा के सुनियोजित हमलों की उन्होंने कभी अधिक परवाह नहीं की और लगातार मोदी सरकार व भाजपा पर आक्रामक राजनीतिक हमले करते रहे, अब वह मोदी सरकार के खिलाफ देश व्यापी आंदोलनों के मुद्दे तय करेंगे। एक बात निश्चित है कि उन्हें जो काम सौंपा गया वह वे अपने समकालीन नेताओं की तुलना में ज्यादा कारगर ढंग से कर सकेंगे।

भाजपा और कांग्रेस में लगी श्रेय लेने की होड़

राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की सारी रणनीति इन दिनों पिछड़े वर्गों में कांग्रेस का आधार बढ़ाने की है तो वहीं दूसरी ओर वह दलितों और आदिवासियों को कांग्रेस से जोड़े रखने के साथ ही इन वर्गों के बीच अपना आधार बढ़ाने की मशक्कत भी कर रहे हैं। शिवराज और कमलनाथ दोनों का ही एकमात्र लक्ष्य अपनी-अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने का है। आगामी 6 सितम्बर को बड़वानी में आदिवासी अधिकार यात्रा निकालकर कांग्रेस आदिवासियों का एक बड़ा समागम आयोजित करने जा रही है जिसका उद्देश आदिवासियों को साधने का है।

कमलनाथ सरकार ने पिछड़े वर्गों का आरक्षण बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था जिस पर म.प्र. उच्च न्यायालय ने स्थगन आदेश जारी कर दिया था। अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने न्यायालय में मुस्तैदी से 27 प्रतिशत आरक्षण बरकरार रखने का प्रयास प्रारम्भ कर दिया है। शिक्षक भर्ती परीक्षा, पीएससी से स्वास्थ्य विभाग में की जाने वाली भर्तियां और पीजी मेडिकल कालेज की परीक्षाओं पर उच्च न्यायालय ने 27 प्रतिशत आरक्षण देने पर रोक लगा रखी है।

शिवराज सरकार ने इन परीक्षाओं को छोड़कर अन्य परीक्षाओं में पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षरण लागू करने के आदेश जारी कर दिए हैं। भाजपा जहां सरकार के इस निर्णय को ऐतिहासिक बता रही है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस शिवराज सरकार द्वारा उठाये गये कदम को गलती सुधारने का प्रयास निरुपित कर रही है। कुल मिलाकर आरक्षण के बहाने प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस में पिछड़े वर्गों का स्वयं को सबसे बड़ा हिमायती साबित करने की होड़ लग गयी है। कांग्रेस के दावे पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद विष्णुदत्त शर्मा का आरोप है कि जब करना था कांग्रेस ने तब किया नहीं और अब पिछड़ों की चिन्ता का ढोंग कर रही है।

कमलनाथ जब मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने उच्च न्यायालय में अपने महाधिवक्ता को भेजा ही नहीं और केवियट तक दायर नहीं की थी। तल्खी के साथ शर्मा कहते हैं कि कमलनाथ व दिग्विजय सिंह जैसे नेता जिन्दगी भर झूठ बोलकर लोगों को गुमराह करते रहे और अब कह रहे हैं पिछड़ों के लिए बड़ा वकील करेंगे, कांग्रेस को बड़ा वकील करने की जरुरत नहीं है जो भी करना होगा वह हम कर रहे हैं। प्रदेश में अब भाजपा सरकार है और मुख्ययमंत्री शिवराज सिंह चैहान पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण देने को प्रतिबद्ध हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस का दावा है कि पिछड़े वर्गों की चिन्ता व हितों का संरक्षण हमेशा कांग्रेस की सरकारों ने ही किया है। तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने अपने मुख्यिमंत्रित्व काल में रामजी महाजन की अगुवाई में आयोग का गठन किया था और उसकी सिफारिश पर आरक्षण की व्यवस्था की शुरुआत की थी और अब उसे 27 प्रतिशत तक बढ़ाने का निर्णय भी कमलनाथ की कांग्रेस सरकार ने ही किया है।

और यह भी

मध्यप्रदेश में लगभग 52 प्रतिशत मतदाता पिछड़े वर्ग के होने का दावा किया जाता है, यही कारण है कि इस वर्ग के बहुसंख्यक मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने की प्रतिस्पर्धा सत्तारुढ़ भाजपा तथा विपक्षी पार्टी कांग्रेस के बीच मची हुई है और यह प्रतिस्पर्धा संभावित एक लोकसभा और तीन विधानसभा उपचुनाव के साथ ही 2023 के विधानसभा चुनाव तक दिन-प्रतिदिन और अधिक तेज होने की संभावना है। इस दिशा में अथक प्रयास तो दोनों पार्टियां कर रही हैं लेकिन मतदाताओं के गले किसकी बात उतरी इसका पता तो उस समय ही चलेगा जब राज्य में कोई चुनाव होंगे।

नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने शिवराज सरकार के निर्णय को ऐतिहासिक निरुपित करते हुए कहा है कि जिन तीन परीक्षाओं में आरक्षण पर स्थगन है उसमें भी सरकार पूरी ताकत से अपना पक्ष रख चुकी है और आवश्यकता हुई तो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में भी अपील की जाएगी। आरक्षण के मुद्दे पर कमलनाथ का कहना है कि उनकी सरकार द्वारा पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए 8 मार्च 2019 को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत आरक्षण करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया था। उनका कहना है कि कुछ याचिकाओं को छोड़कर बढ़े हुए आरक्षण को लागू करने पर उच्च न्यायालय से कोई रोक नहीं लगी थी लेकिन गलत अभिमत के आधार पर अन्य सारे विभागों में नियुक्तियां रोक कर शिववराज सरकार ने पिछड़े वर्ग को उनके हकों से निरन्तर वंचित किया है, हम सरकार के इस कदम का शुरु से विरोध कर रहे हैं।