परंपरा या अंधविश्वास? भारत का एक ऐसा गांव जहाँ 80 सालों से नहीं जलाई गई होलिका, जानें वजह

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By Abhishek SinghPublished On: March 12, 2025

हिंदू धर्म में फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को हर वर्ष होलिका दहन किया जाता है। इस दिन लोग लकड़ियों और उपलों का ढेर एकत्र कर अग्नि में प्रज्वलित करते हैं और बुराइयों के अंत की प्रार्थना करते हैं। यह पर्व भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद की स्मृति में मनाया जाता है, जो अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक माना जाता है।

इस साल कब होगा होलिका दहन

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे होगी और इसका समापन 14 मार्च को दोपहर 12:23 बजे होगा। ऐसे में इस साल होलिका दहन 13 मार्च को संपन्न होगा, जबकि रंगों का त्योहार होली 14 मार्च को मनाया जाएगा।

धार्मिक दृष्टिकोण से होलिका दहन का महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भक्त प्रहलाद की बुआ होलिका उन्हें अग्नि में लेकर बैठी थीं, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद सुरक्षित रहे, जबकि होलिका जलकर भस्म हो गई। होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है और इसे पूरे देश में मनाया जाता है। हालांकि, भारत में एक ऐसा गांव भी है जहां होलिका दहन नहीं किया जाता। यह गांव मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में सागर जिले का हथखोह है। आइए जानते हैं कि यहां होलिका दहन न करने के पीछे की वजह क्या है।

80 साल से इस गांव में नहीं जल रही होलिका

बुंदेलखंड के सागर जिले के हथखोह गांव में होलिका दहन के दिन कोई विशेष उत्साह या उमंग दिखाई नहीं देती। यहां के लोग इस दिन को आम दिनों की तरह ही बिताते हैं। मान्यता है कि कई साल पहले होलिका दहन के अवसर पर गांव में भीषण आग लग गई थी, जिसमें कई झोपड़ियां जलकर राख हो गईं। इस आपदा के बाद, ग्रामीणों ने झारखंडन देवी की पूजा की, जिसके बाद आग पर काबू पाया जा सका। तभी से इस गांव में होलिका दहन की परंपरा समाप्त हो गई।

स्थानीय लोगों का विश्वास है कि देवी की पूजा के बाद ही उस समय आग शांत हुई थी, इसलिए गांव में पिछले 80 वर्षों से होलिका दहन नहीं किया जाता। ग्रामीणों को आशंका है कि यदि होलिका जलाई गई तो देवी अप्रसन्न हो सकती हैं। हालांकि, इस प्रतिबंध के बावजूद, होली का त्योहार यहां बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। गांववाले रंगों से होली खेलते हैं और अपनी खुशियों का इजहार करते हैं। बुजुर्गों से सुनी कहानियों के अनुसार, कई लोगों ने झारखंडन देवी के साक्षात दर्शन की बातें साझा की हैं। श्रद्धा के प्रतीक स्वरूप, यहां देवी के मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है और बच्चों का मुंडन संस्कार भी संपन्न कराया जाता है।