कोरोना और व्यंग्य?

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शशिकान्त गुप्ते

एक स्वाभाविक प्रश्न जहन में उभर कर आया।क्या कोरोना पर व्यंग्य लिखा जा सकता है?यह प्रश्न अपने आप में बहुत कठिन है? व्यंग्य लिखना अर्थात शब्दो का खेल करना है।व्यंग्य लिखने के लिए शब्दों को आधार बनाने मात्र से काम नहीं चलता,शब्दों को धारदार भी बनाना आना चाहिए। कोरोना पर व्यंग्य लिखना बहुत साहस का काम है।इस बीमारी ने पूरे विश्व पर दादागीरी करने वाले देश को भी छटी का दूध याद करवा दिया।ताश के पत्तों के खेल का ट्रम्प कार्ड ही पीट गया।ऐसी भयावह बीमारी पर व्यंग्य लिखने का साहस कैसे करूँ?आदत से लाचार हूँ,व्यंग्य ही लिखता हूँ व्यंग्य ही लिखूंगा।

लेखन शुरू करने के पूर्व हाथों को साबुन से धोया,हाथों के साथ कलम और कागज़ को भी सेनेटराइज किया।ग्यारह बार हनुमान चालीसा पढा।यह चौपाई बार बार रटी।”संकट कटे मिटे सब पीरा,जो सुमिरै हनुमंत बलवीरा।”अपने इष्टदेव को याद किया।कलम कागज के साथ स्वयं को मंत्रों से पवित्र किया।जैसे किसी भी पूजा को प्रारम्भ करने के पूर्व किया जाता है। व्यंग्य लिखना शुरू किया तब ध्यान में आया, यह प्राकृतिक आपदा नहीं है,यह तो मानव निर्मित त्रासदी है।”यह बीमारी आ बैल मुझे मार”वाली कहावत को चरितार्थ करती है।

विज्ञान मानव के मानसिक विकास का माध्यम है।विज्ञान भ्रम दूर कर यथार्थ से अवगत कराता है।विज्ञान की एक साधारण परिभाषा है।”प्रकृति में उपस्थित वस्तुओं के क्रमबद्ध अध्ययन से प्राप्त ज्ञान के आधार पर वस्तु की प्रकृति और व्यवहार जैसे गुणों का पता लगाने को ही विज्ञान कहते है।”
(विज्ञान वस्तुओं के गुणों का ही पता लगता है और वहीं रुक जाता है।गुणकारी है या अवगुनकारी?यह तो चेतना युक्त जीव जंतु उसके प्रयोग से स्वयं पर हुए अनुकूल प्रतिकूल प्रभाव के आधार पर विभाजन करते हैं)

यह जो कोरोना है,यह रसायन शास्त्र की प्रयोग शाला में, विकृत मानसिकता से पैदा किया वायरस है। प्रतिस्पर्धा का भाव रखना स्वस्थ मानसिकता का लक्षण है।प्रतिस्पर्धा करते समय मनुष्य के अंदर खेल की भावना होनी चाहिए।प्रतिस्पर्धा में विजय प्राप्त करने के लिए, आत्मबल के साथ सम्बंधित खेल में निपुण होना भी जरूरी होता है।एनकेनप्रकारेण विजय प्राप्त करने की भावना कुत्सित मानसिकता को दर्शाती है।”दूसरे की लाईन छोटी करने के लिए,उसकी लाईन पोछने की मानसिकता नहीं रखनी चाहिए,स्वयं के गुणवत्ता के आधार पर अपनी लाईन बड़ी करते आना चाहिए।”दूसरे की लाईन पोछ कर छोटी करना ओछी मानसिकता होती है।ऐसा करने वाले के साथ यही होता जो इस कहावत में कहा गया है। “दूसरों के लिए खड्डा खोदने वाला उसी खड्डे में स्वयं गिरता है।”

प्रत्यक्ष ऐसा हुआ भी है। जिसने कोरोना पैदा किया वह स्वयं भी इसकी चपेट आया है। हे ईश्वर सभी को सद्बुद्धि दे। पुनः यह चौपाई दोहराता हूँ।”भूत पिशाच निकट नहीं आवे,महावीर जब नाम सुनावे” कोरोना से बचने के लिए एहतियातन लॉक डाउन किया गया।  इस कोरोना ने सभी की संवैधानिक आजादी भी छीन ली।सभी को मुह पर मास्क लगाना अनिवार्य हो गया। मानव, मानव में एक मीटर की दूरी रखने का नियम भी बन गया। यह नियम एहतियात बरतने के लिए बनाया गया।वैसे तो अपने देश में हमेशा से ही अगड़ों की पिछड़ो से सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए दकीयानूसी और घृणित मानसिकता रही ही है।  जनप्रतिनिधी तो जनता से सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए अभ्यस्त है ही।

प्रति पाँच वर्ष में एक बार दर्शन देने की परिपाटी का निर्वहन करते रहते हैं। इस मामले में तकरीबन सभी जनप्रतिनिधी हम सब एक हैं, का नारा बुलंद करते हैं।
लॉक डाउन में पुलिस प्रशासन अपनी ओरिजनल मानसिकता को नहीं छोड़ा है।बेबस बेकसों पर पुलिस का अत्याचार बरकरार है।शायद असामाजिक कार्य के लिए दूरी का कोई मापदण्ड नहीं होता है? दलितों को बर्बरता से परलोक सिधार ने केअमानवीय कृत्य के बाद,शासन,वही घीसा पीटा राग अलापता है,जांच होगी दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा?यह जुमला हमेशा हमेशा के लिए जुमला ही रहेगा? लॉक डाउन का एहतियातन पालन सिर्फ समझदार जनता को करना है। राजनेताओं के जन्मदिन,सभाओं, चुवाव प्रचार के लिए,और हॉर्स ट्रेडिंग के लिए लॉक डाउन में स्वयं घोषित छूट ही है।

कोरोना राजनेताओं के लिए वरदान सिध्द हुआ है।कोरोना के रहते जहां भी चुनाव होंगे वहां उम्मीदवार लॉक डाउन के बहाने मतदाताओं से प्रत्यक्ष संपर्क करने से बचेगा।यदि प्रत्यक्ष संपर्क कर वोट मांगने जाएगा तो उम्मीदवार को प्रत्यक्ष रूप से ही जनता के ज्वलन्त प्रश्नों से रूबरू होना पड़ेगा? उम्मीदवार के लिए चुनाव में जीतने की उम्मीद पर प्रश्न चिन्ह लग सकता है? वैसे तो इन नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता।यह तो इस उक्ति का समर्थन करने वाले लोग हैं। निर्लज्जम सदा सुखी मुख्यमुद्दा है,कोरोना महामारी? कोरोना से डरना नहीं लड़ना है। यह जितने भी स्लोगन है,सभी समझदार जनता के लिए ही हैं।अंत में कोरोना से बचने के लिए एहतियात बरतना बहुत जरूरी है दहशत में नहीं रहना चाहिए। सकारात्मक सोच बनाएं रखिए।

कोई भी बीमारी किसी को होती है ,तो बीमारी होते ही कोई भी व्यक्ति मरता नहीं है? यदि जांच में पता चलता है कि कोरोना हुआ है तो इसे भी सकारात्मक ही सोचना चाहिए कि,रोग का पता चला है तो इलाज भी होगा।जिनको भी डिटेक्ट हो रहा है,सभी के लिए रोग की तीव्रता का भी ध्यान रखना चाहिए,चिकित्सकों को भी इस बात को समझना चाहिए।रोग की तीव्रता सभी के लिए एक सी नहीं होती है। सकारात्मक सोच भी हिंदी वाला ही रखना है।कारण इनदिनों अंग्रेजी का पॉजीटिव शब्द तो स्वयं ही संक्रमक हो गया है। आश्चर्य से कहा जाता है अरे यह तो पॉजिटिव है। पुनः भगवन से पार्थना है,हे प्रभु जल्दी से इस महामारी से छुटकारा दिलओ।