पेगासस जासूसी कांड: शक का बीज तो पड़ गया है…

Author Picture
By Mohit DevkarPublished On: July 20, 2021

अजय बोकिल


क्या देश के कुछ जानी मानी और प्र‍ितिष्ठित हस्तियों का फोन टैप कांड मोदी सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकता है या फिर विरोध के सनसनीखेज मुद्दे तलाश रहे विपक्ष के लिए यह संजीवनी बनेगा? ये सवाल इसलिए क्योंकि विपक्ष इस मुद्दे पर सदन को हिलाने के मूड में है तो मोदी सरकार ने सफाई दी है कि उसका इस फोन टैप कांड से कोई सम्बन्ध नहीं है। केंद्र सरकार ने कहा कि ‘भारत एक लचीला लोकतंत्र है और वह अपने सभी नागरिकों के निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के तौर पर सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।’ वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने इस पर संसद में भारी हंगामा किया। नए-नए खुलासे किए जा रहे हैं। जो खबर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लीक हुई है, उसके मुताबिक भारत समेत विभिन्न देशों में इजरायली एनएसअो ग्रुप के ‘पेगासस’ स्‍पाईवेयर’ के जरिए कई लोगों के सर्विलांस की बात कही गई है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कम से कम 38 लोगों की जासूसी की गई। इनमें पत्रकारों से लेकर कारोबारियों, कुछ मंत्रियों और उनके स्टाफ तथा एक सुप्रीम कोर्ट जज का नाम भी है। लीक हुए डेटा में विभिन्न देशों के 50 हजार से अधिक फोन नंबरों की सूची है। रिपोर्ट के मुताबिक यह फोन टैपिंग हुई तो कई देशों में है, लेकिन भारत में इस पर राजनीतिक बवाल मचा हुआ है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इसे ‘सरकारी निगरानी’ करार देते हुए कहा कि यह संवैधानिक लोकतंत्र के ढांचे और लोगों की निजता पर करारी चोट है।

राज्‍यसभा में कांग्रेस के उप-नेता आनंद शर्मा ने कहा कि “सरकार यह कहकर बच नहीं सकती कि उसे वेरिफाई करना होता है या कुछ और। ये बेहद गंभीर मसले हैं। कौन सी एजेंसियां हैं, जिन्‍हें मालवेयर मिला है? किन एजेंसियों ने पेगासस खरीदा? पूरे मामले की खुली जांच और जवाबदेही तय होनी चाहिए। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया कि ‘उम्मीद करता हूं कि वो (रिपोर्ट छापने वाले) मोदी-शाह के दबाव में नहीं आएंगे।’ दिग्विजय सिंह ने 2019 में पेगासस से जुड़ा मामला राज्यसभा में उठाया था। उधर वरिष्ठ पत्रकार सिद्‍धार्थ वरदराजन का कहना है कि सर्विलांस के लिए न केवल राहुल गांधी बल्कि उनके पांच दोस्तों और पार्टी के मसलों पर उनके साथ काम करने वाले दो क़रीबी सहयोगियों के फोन भी चुने गए थे। सीपीआई के नेता‍ विनय विश्वम ने कहा कि “अपने डर से पार पाने के लिए फासीवादी किसी भी हद तक जा सकते हैं।‘ एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि सरकार बताए कि उसने पेगासस निर्माता एनएसअो ग्रुप की सेवाएं ली हैं या नहीं।

इस राजनीतिक हंगामे के बीच ‘पेगासस’ स्पाई वेयर बनाने वाली कंपनी एनएसअो ने जासूसी के तमाम आरोपो से इंकार‍ किया है। कंपनी का दावा है कि वो अपना (जासूसी) प्रोग्राम केवल मान्यता प्राप्त सरकारी एजेंसियों को ही बेचती है। इसका उद्देश्य ‘ आतंकवाद और अपराध के खिलाफ लड़ना है।‘ बीबीसी के अनुसार पेरिस की एक मीडिया संस्था ‘फारबिडेन स्टोरीज’ ने टैप किए फोन नंबरों की सूची हासिल करने का दावा करते हुए कहा कि आज दुनिया भर के सैकड़ों पत्रकार और मानवाधिकारों के हामी इस सर्विलेंस के शिकार हैं। यह दिखाता है कि दुनिया भर में लोकतंत्र पर हमला हो रहा है। इस काम में पेगासस स्पाईवेयर को हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया। इसकी जद में 50 से अधिक देश हैं। ‘द वायर’ के मुताबिक भारत में जिनके फोन टैप करने का आरोप है, उनकी पहली सूची में 40 पत्रकार, तीन विपक्ष के बड़े नेता, एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति, मोदी सरकार के दो मंत्री और सुरक्षा एजेंसियों के मौजूदा और पूर्व प्रमुख समेत कई बिजनेसमैन शामिल हैं।”

वैसे पेगासस को लेकर पहले भी विवाद हुए हैं। मेक्सिको से लेकर सऊदी अरब की सरकार तक पर इसके इस्तेमाल को लेकर सवाल उठाए जा चुके हैं। व्हाट्सऐप के स्वामित्व वाली कंपनी फ़ेसबुक समेत कई दूसरी कंपनियों ने उस पर मुकदमे किए हैं। हालांकि भारत के बारे में आधिकारिक जानकारी नहीं है कि सरकार ने एनएसओ से ‘पेगासस’ खरीदा है या नहीं। अलबत्ता ‘पेगासस’ एक ऐसा प्रोग्राम है जिसे किसी स्मार्टफ़ोन फ़ोन में डाल दिया जाए, तो कोई हैकर उस स्मार्टफोन के माइक्रोफ़ोन, कैमरा, ऑडियो और टेक्सट मेसेज, ईमेल और लोकेशन तक की जानकारी हासिल कर सकता है। वह एन्क्रिप्टेड संदेशों को भी पढ़ने लायक बना देता है। इस स्पाईवेयर की जानकारी पहली बार 2016 में सामने आई थी। ज्यादातर देशों में इस स्पाईवेयर का उपयोग सरकार विरोधी पत्रकारों, नेताअो, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और भ्रष्टाचाररोधी कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ किया जाता रहा है।

वैसे सरकारों द्वारा अपने विरोधियों के फोन टैप करने का यह मामला या प्रवृत्ति नई नहीं है। मोदी सरकार के कार्यकाल में ही पिछले साल हाथरस फोन टैप कांड सामने आया था। उसके बाद कहा गया था कि देश की 10 सरकारी एजेंसियां उन उपकरणों से लैस हैं, जो फोन टैप करती हैं। यह खुलासा भी हाथरस गैंगरेप कांड के बाद एक दलित युवती की मौत पर विरोध प्रदर्शन के दौरान एक एक्टिविस्ट और गैंगरेप पीडि़ता के आॅडियो टैप सामने आने से हुआ था।

मोदी सरकार को घेरने वाली कांग्रेस खुद 2011 में फोन टैप कांड पर घिर चुकी है, जब देश के तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए.राजा और राजनीतिक लाबिस्ट नीरा राडिया की बातचीत का टैप लीक हुआ था। इसके बाद मनमोह‍न सिंह सरकार विपक्ष के ‍िनशाने पर आ गई थी। इसी मुद्दे ने यूपीए सरकार के भ्रष्ट होने का नरेटिव बनाने में उत्प्रेरक का काम किया, जिसकी राजनीतिक फसल भाजपा ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हुए आम चुनाव में काटी। इस मामले में लगी आरटीआई में खुलासा हुआ था कि तबकी यूपीए-2 सरकार रोजाना 300 फोन व 20 ई मेल अलग अलग एजेंसियों से टैप करवा रही थी। तब राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष अरूण जेटली ने मनमोहन सरकार से इस्तीफा मांगा था। अभी पिछले साल ही राजस्थान में कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने विधानसभा में स्वीकार किया था कि राज्य में कुछ लोगों को फोन ‘इंटरसेप्ट’ किए गए थे।

यह सही है कि हमारे देश में कुछ सरकारी एजेंसियों को फोन टैप करने का वैधानिक अधिकार है। लेकिन ऐसा देश की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही विशिष्ट और गंभीर मामलों में ही किया जा सकता है। हालांकि ऐसा करना वैधानिक रूप से सही है या नहीं, यह भी बहस का विषय है। लेकिन केवलराजनीतिक उद्देश्यों के ‍लिए फोन टैप करना गलत है। क्योंकि किसी की निजता में दखल देना अनैतिक है। जिन लोगो की जासूसी करने किए जाने की बात सामने आ रही है, उसमें कुछ तो भाजपा से जुड़े लोग भी हैं। ‘पेगासस’ जासूसी कांड के पीछे सचमुच मोदी सरकार का हाथ है तो यह उसे आगे चलकर महंगा पड़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी छवि और खराब होगी। लेकिन यदि इस मुद्दे को उछालने के पीछे विपक्ष का मकसद केवल मोदी सरकार के खिलाफ सियासी माहौल बनाना है तो इसकी प्रामाणिकता का खुलासा भी जल्द हो जाएगा। वैसे वो ही सत्ताएं टैप करने में ज्यादा भरोसा रखती हैं, जिनका अपने आप पर विश्वास कम हो जाता है। अगर फोन टैप का आरोप सही सिद्ध हुआ तो यह मोदी सरकार की वास्तविक मनस्थिति को अंडर लाइन करेगा। इससे भी बड़ा और गंभीर सवाल यह है कि अगर ये फोन टैपिंग सरकार के इशारे पर सरकारी एजेंसियों ने नहीं की है तो फिर किसने की है? क्या इस देश में कोई भी गैर सरकारी एजेंसी मनमाने ढंग से किसी की फोन टैंपिंग कर सकती है? यदि ऐसी कोई जासूसी हो रही है और सरकार उससे बेखबर है तो इससे सरकार की सजगता पर ही सवाल उठता है। बहरहाल, मोदी सरकार ऐसे किसी टैप कांड से पल्ला भले झाड़े, लेकिन इस मामले ने जनता के मन में शक का बीज तो बो ही ‍िदया है, जिसे जल्दी मिटाना आसान नहीं है।