आज गुप्त नवरात्रि का दूसरा दिन है। ऐसे में आज महाविद्या तारा देवी की पूजा अर्चना की जाती है। महाविद्या तारा देवी को मां काली का स्वरुप माना गया है। वहीं तारा देवी श्मशान को श्मशान की देवी भी कहा जाता है। इसलिए तारा देवी नर-मुंड की माला पहनती हैं। साथ ही इन्हें तंत्र शास्त्र की देवी माना गया है। इसलिए कहा जाता है कि आज के दिन मां तारा की पूजा अर्चना और व्रत करने से लोगों के सभी कष्ट दूर होते है। बता दे, तारा देवी के 3 रूप हैं- उग्र तारा, एकजटा और नील सरस्व। आज हम आपको मां तारा देवी की कथा बताने जा रहे है तो चलिए जानते है –
तारा देवी की कथा –
मान्यताओं के अनुसार, मां तारा की उत्पत्ति मेरु पर्वत के पश्चिम भाग में, चोलना नदी के तट पर हुई। हयग्रीव नाम के दैत्य के वध हेतु देवी महा-काली ने ही, नील वर्ण धारण किया था। ऐसे में कहा जाता है कि सर्वप्रथम स्वर्ग-लोक के रत्नद्वीप में वैदिक कल्पोक्त तथ्यों तथा वाक्यों को देवी काली के मुख से सुनकर, शिव जी अपनी पत्नी पर बहुत प्रसन्न हुए। वहीं शिव जी ने महाकाली से पूछा, आदि काल में अपने भयंकर मुख वाले रावण का विनाश किया तब आश्चर्य से युक्त आप का वह स्वरूप ‘तारा’ नाम से विख्यात हुआ।
बता दे, उस समय, समस्त देवताओं ने आप की स्तुति की थी तथा आप अपने हाथों में खड़ग, नर मुंड, वार तथा अभय मुद्रा धारण की हुई थी, मुख से चंचल जिह्वा बहार कर आप भयंकर रुपवाली प्रतीत हो रही थी। आप का वह विकराल रूप देख सभी देवता भय से आतुर हो कांप रहे थे, आपके विकराल भयंकर रुद्र रूप को देखकर, उन्हें शांत करने के निमित्त ब्रह्मा जी आप के पास गए थे।
वहीं समस्त देवताओं को ब्रह्मा जी के साथ देखकर देवी, लज्जित हो आप खड़ग से लज्जा निवारण की चेष्टा करने लगी। रावण वध के समय आप अपने रुद्र रूप के कारण नग्न हो गई थी तथा स्वयं ब्रह्मा जी ने आपकी लज्जा निवारण हेतु, आपको व्याघ्र चर्म प्रदान किया था। साथ ही इसी रूप में देवी ‘लम्बोदरी’ के नाम से विख्यात हुई। बता दे, तारा-रहस्य तंत्र के मुताबिक, भगवान राम केवल निमित्त मात्र ही थे, वास्तव में भगवान राम की विध्वंसक शक्ति देवी तारा ही थी, जिन्होंने लंका पति रावण का वध किया।