कम से कम मध्यप्रदेश के कांग्रेसजनों के लिए तो मोदी मंत्रिमंडल में ज्योतिरादित्य सिंधिया का केंद्रीय मंत्री के रूप में शपथ लेना रेत में मुंह गढ़ाने जैसा ही है, क्योंकि दो दिन पहले तक ये सब सिंधिया के भाजपामय होने को उपेक्षित किया जाना बताते नहीं थक रहे थे।अब जबकि सिंधिया को शपथ समारोह में चौथे क्रम पर शपथ शपथ लेने के साथ नागरिक उड्डयन मंत्री जैसा भारी भरकम मंत्रालय मिल गया है तो मध्य प्रदेश के साथ ही राजस्थान, महाराष्ट्र से लेकर गुजरात और जम्मू कश्मीर तक में भाजपा को उनकी मिस्टर क्लीन वाली छवि का फायदा मिलना तय है। कांग्रेस सरकार में यह मंत्रालय कभी उनके पिता माधवराव सिंधिया ने संभाला था और नैतिकता का हवाला देकर छोड़ भी दिया था। मोदी मंत्रिमंडल में माना जा रहा था कि सिंधिया को रेल मंत्रालय दिया जा सकता है। उनके पिता यह मंत्रालय भी संभाल चुके हैं।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में युवा चेहरों की भरमार से मोदी-शाह-नड्डा की तिकड़ी ने बाकी दलों-खासकर कांग्रेस-को यह भी संदेश दिया है कि बदलते भारत में युवा खून पर भरोसा करना डिजिटल इंडिया की मांग है।मोदी ने एक झटके में उन सारे मंत्रियों को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया है जो कल तक उनके विश्वस्त माने जाते थे। बहुत संभव है कि हटाए गए मंत्रियों के कंधों पर इस चुनावी साल में पार्टी के प्रवक्ता वाली जिम्मेदारी डाल दी जाए लेकिन इन पर नाकाम होने का ठप्पा तो लग ही गया है-यदि इन मंत्रियों को हटाने का कारण अयोग्य साबित होना ही मान लिया जाए तो यह भी सर्वज्ञात है कि किसी भी दल की सरकार हो सारी उपलब्धिया यदि पीएम-सीएम के खाते में दर्ज होती है तो नाकामियों का टोकरा किसी मंत्री के सिर पर नहीं रखा जा सकता।
जहां तक मोदी सरकार का सवाल है तो यह आम बात है कि मोदी-शाह की सहमति बिना मंत्री से लेकर मंत्रालय तक में पत्ता तक नहीं खड़कता, वह भी तब जब खुद पीएम अपने कार्य-निर्णय-व्यवहार को लेकर सख्ती पसंद हों।अब चुनावी साल में यह इल्हाम होना कि कई मंत्री सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में नाकाम रहे या पीएमओ की रफ्तार से नहीं दौड़ पाए तो लंगड़े घोड़ों की पहचान में इतने साल लगना भी कमजोर नजर भी तो मानी जा सकती है।बढ़ती महंगाई, किसान आंदोलन, पेट्रोल-डीजल-कुकिंग गैस के निरंतर बढ़ते दाम से गुस्से में बदलती जा रही नाराजी किसी एक मंत्रालय की अपेक्षा सरकार से अधिक है।
मप्र में सिंधिया गुट मजबूत होगा कहने को तो भाजपा दोहराती रही है कि भाजपा में व्यक्ति नहीं पार्टी प्रधान होती है लेकिन भाजपा के लिए सिंधिया जैसे व्यक्तित्व की प्रधानता रही कि पार्टी की मप्र में कटी नाक की सर्जरी हुई और तीन बार अपनी ताकत पर सीएम कुर्सी पर बने रहे शिवराज सिंह को चौथी बार पार्टी की मजबूरी के चलते मुख्यमंत्री बन पाए। करीब सवा दो साल पहले जब जन समस्याओं का हवाला देकर सिंधिया ने सड़क पर उतरने की धमकी दी थी तब कमलनाथ-दिग्विजय सिंह की जोड़ी ने गिदड़ भभकी मानने की जो भूल की उसका ही खामियाजा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ ही प्रदेश का आम मतदाता भुगत रहा है जिसने भरोसा कर कांग्रेस को मौका दिया था।
कमलनाथ तब भी दो पदों पर थे और प्रदेश में कांग्रेस आज जिस दुरावस्था में है तब भी वे नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दोनों पदों पर जमे हुए है। एक तरफ जहां मोदी ने मंत्रिमंडल में युवा खुन पर अधिक भरोसा जताया है वहीं कांग्रेस अपने बूढ़े बैल वाले पुराने चुनाव चिह्न को भूलना ही नहीं चाहती। मोदी मंत्रिमंडल में मालवा क्षेत्र को सिर्फ इतने से ही संतोष करना पड़ा है कि केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री रहे थावरचंद गेहलोत को कर्नाटक के राजभवन में रुखसत कर दिया है।वैसे भी गेहलोत दलित चेहरे की वजह से ही मंत्रिमंडल में थे।उनके रहने ना रहने से इंदौर के खाते में कोई उपलब्धि दर्ज हुई नहीं।
अब मालवा-निमाड़ क्षेत्र को सारी उम्मीदें ज्योतिरादित्य सिंधिया से ही हैं। वैसे तो टीकमगढ़ से वीरेंद्र खटीक को दूसरी बार मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है लेकिन इससे पहले भी उनके होने का मालवा क्षेत्र को तो कोई घोषित लाभ नहीं मिला है।सिंधिया का ग्वालियर-चंबल संभाग में अब जमीनी प्रभाव और बढ़ सकता है, यह दबदबा पहले रहा होता तो शायद वे लोकसभा का चुनाव जीत जाते।अब जबकि सिंधिया केंद्रीय मंत्री बन गए हैं तो उनका मालवा-निमाड़ पर अधिक फोकस रहने का मतलब होगा इंदौर में उनके गुट का और उनके कोटे वाले मंत्री तुलसी सिलावट का और अधिक मजबूत होना।
हालांकि तमाम कोशिशों के बाद भी तुलसी सिलावट को इंदौर जिले का प्रभार नहीं मिल पाया, वे सिंधिया के शहर ग्वालियर के प्रभारी मंत्री हैं लेकिन नागरिक उड्डयन मंत्री सिंधिया का इंदौर में दबदबा रहने से सिलावट कंट्रोल टॉवर तो बन ही जाएंगे।सिंधिया कांग्रेस में रहते भी इंदौर की राजनीति में सुमित्रा महाजन के प्रति आदर भाव दर्शाते रहे हैं, भाजपा में शामिल होने के बाद कैलाश विजयवर्गीय,सांसद शंकर लालवानी, पूर्व सांसद कृष्ण मुरारी मोघे से लेकर पूर्व महापौर मालिनी गौड़ तक से उन्होंने सौजन्य मुलाकातों में रिश्तों की गांठ मजबूत की है।इन सभी नेताओं के समर्थक-कार्यकर्ताओं को अपने स्तर पर सिंधिया का नजदीकी होने के लिए सिलावट की परिक्रमा करना मजबूरी रहेगी।
भाजपा में शामिल होने, राज्यसभा में पहुंचने, शिवराज मंत्रिमंडल में अपने समर्थक विधायकों को मंत्री पद दिलाने के बाद भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी में 65 समर्थकों को शामिल करा चुके सिंधिया का अगला लक्ष्य नगर निगम, पंचायत चुनाव में अपने समर्थकों को उपकृत करने के साथ ही निगम मंडलों में मनोनयन कराना भी रहेगा। व्यक्ति से अधिक पार्टी में भरोसा करने वाली भाजपा सिंधिया के सपनों की इस उड़ान को किस तरह से नियंत्रित कर पाएगी यह वक्त बताएगा।वैसे भी प्रदेश सरकार के मुखिया को लेकर हर दिन कहीं ना कहीं से बदलाव के सदाबहार गीत गूंज रहे हों तब मप्र में भाजपा को सिंधिया उम्मीद की ज्योति नजर आ रहे हैं इसलिए सेव-परमल खाकर भाजपा के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं से बेहतर भविष्य सिंधिया के साथ भाजपाई बने समर्थकों का रहेगा।