महाकुंभ मेला हमेशा नागा साधुओं के स्नान से शुरू होता है, जो अपनी तपस्या और साधना के लिए प्रसिद्ध हैं। ये साधु कुंभ के समय में तो नजर आते हैं, लेकिन कुंभ के समाप्त होते ही इनका लापता हो जाना एक रहस्य बना रहता है। माना जाता है कि ये साधु जंगलों और पहाड़ों में जाते हैं, जहाँ वे बिना किसी विघ्न के अपनी साधना करते हैं। नागा साधु चार प्रकार के होते हैं, जिनकी विशेषताएँ और पहचान उनके दीक्षा स्थल से जुड़ी होती हैं।
नागा साधु के प्रकार
- राजेश्वर नागा – प्रयाग कुंभ से दीक्षा लेने वाले साधु को यह नाम दिया जाता है, क्योंकि ये संन्यास के बाद राजयोग की कामना करते हैं।
- खूनी नागा – उज्जैन कुंभ से दीक्षा लेने वाले साधु का स्वभाव उग्र और शक्तिशाली होता है।
- बर्फानी नागा – हरिद्वार से दीक्षा लेने वाले साधु शांत स्वभाव के होते हैं।
- खिचड़ी नागा – नाशिक कुंभ से दीक्षा लेने वाले साधु का कोई निश्चित स्वभाव नहीं होता।
नागा साधु बनने के तीन कठिन चरण
नागा साधु बनने के लिए एक कठिन यात्रा की आवश्यकता होती है। इसे प्राप्त करने के लिए साधकों को तीन महत्वपूर्ण चरणों से गुजरना पड़ता है:
- महापुरुष
- अवधूत
- दिगंबर
कुंभ मेला के दौरान अंतिम संकल्प लेने पर वे लंगोट का त्याग करते हैं और जीवन भर दिगंबर बने रहते हैं। नागा साधुओं का दाह संस्कार नहीं किया जाता। उनकी मृत्यु के बाद उन्हें समाधि दी जाती है। यह इसलिए, क्योंकि नागा साधु पहले ही अपने जीवन को समाप्त कर चुके होते हैं। उनके शव को भस्म लगाकर भगवा वस्त्र पहनाया जाता है, और समाधि स्थल पर सनातन निशान बना दिया जाता है। यह सभी धार्मिक विधियाँ श्रद्धा और सम्मान के साथ पूरी की जाती हैं।
नागा साधुओं का सबसे बड़ा अखाड़ा जूना अखाड़ा है, जहाँ करीब 5 लाख नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी हैं। ये साधु धर्म के रक्षक माने जाते हैं और कुंभ के दौरान इनकी महत्ता अत्यधिक बढ़ जाती है।