जनगणना की विशेषताएँ
इस बार की जनगणना कई मायनों में खास होगी। पहले जनगणना हर दशक के शुरुआत में होती थी, जैसे 1991, 2001, और 2011 में। अब अगली जनगणना 2035, 2045, और 2055 में होगी। इसके साथ ही, लोकसभा सीटों के परिसीमन की प्रक्रिया जनगणना पूरी होने के बाद शुरू होगी, और इसे 2028 तक पूरा करने की उम्मीद है।
विपक्षी दलों की ओर से जातिगत जनगणना की मांग उठाई जा रही है, लेकिन सरकार ने इस पर अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है। जनगणना में धर्म और वर्ग के साथ-साथ लोगों से यह भी पूछा जा सकता है कि वे किस संप्रदाय के अनुयायी हैं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक में लिंगायत समुदाय स्वयं को एक अलग संप्रदाय मानते हैं।
जनगणना प्रक्रिया
जनगणना की प्रक्रिया दो चरणों में होती है: मकानों की लिस्टिंग और वास्तविक गणना। 2011 में 640 जिलों, 7,935 कस्बों और 600,000 से अधिक गांवों को शामिल किया गया था। इस बार की जनगणना लोकसभा परिसीमन का आधार बनेगी, जो कि 2002 से रुकी हुई थी।
कई राजनीतिक दलों ने जाति आधारित गणना की मांग की है। बिहार, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में जाति सर्वेक्षण किए जा चुके हैं, और तेलंगाना जैसे अन्य राज्य भी इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस पर सर्वदलीय बैठक की मांग की है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि नई जनगणना में अनुसूचित जातियों के साथ-साथ सभी जातियों की विस्तृत गणना शामिल की जाएगी।
प्रश्नावली में पूछे जाने वाले सवाल
इस बार जनगणना में लोगों से 31 सवाल पूछे जाएंगे, जिनमें परिवार के सदस्यों की संख्या, परिवार की मुखिया महिला है या नहीं, और परिवार में कितने कमरे हैं, जैसे प्रश्न शामिल होंगे। इसके अतिरिक्त, यह भी पूछा जाएगा कि परिवार के पास टेलीफोन, इंटरनेट, मोबाइल, साइकिल, स्कूटर, या कार जैसे वाहन हैं या नहीं।
परिसीमन की प्रक्रिया
हर जनगणना के बाद परिसीमन होता है, जो संसद और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या को नवीनतम जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार समायोजित करता है। 2001 के 84वें संवैधानिक संशोधन के अनुसार, अगला परिसीमन 2026 के बाद होने वाली जनगणना के आधार पर होगा।
इस प्रकार, आगामी जनगणना न केवल जनसंख्या के आंकड़े जुटाने का कार्य करेगी, बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण बदलाव लाने का माध्यम बनेगी।