कोरोना का रोना, कभी भुलायेगा नहीं ये जिंदगियों को खोना और सरकारों का सोना…

Ayushi
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हरीश फतेहचन्दानी

सच कहता हूं…वाकई अब सिस्टम और सरकार के कान मरोड़ने का वक्त आ गया है क्योंकि कान से ना तो सरकार कुछ सुन पा रहे हैं और ना ही सिस्टम की आंखों से सरकार हकीकत को देख पा रहे हैं । लोकतंत्र के सर्वोच्च पद पर बैठने के बाद भी सरकार को सिस्टम पर ही भरोसा है शायद इसलिए क्योंकि बंगाल में वोट के लाल चाहिए और अब जब हालात बेकाबू हैं तो लॉकडाउन आखिरी रास्ता नज़र आता है । वाकई सिस्टम भी कमाल है और सरकार की दूरदृष्टि भी बेमिसाल है जो जानलेवा कोरोना की दूसरी लहर का अंदाज़ा नहीं लगा पाए ।

जनता का मिज़ाज जानने की जादुई शक्ति रखने वाले साहब जनता की जान बचा पाने में नाकाम नज़र आये । वैसे स्थानीय स्तर पर एक हकीकत और है कि अफसर हों या नेता हर कोई असहज है, बस बेबस है क्योंकि सरकार ने जागते जागते बहुत देर कर दी । क्या हकीकत और क्या फसाना लगता है सबकुछ मरीजों के इलाज और दवाइयों-ऑक्सीजन के इंतज़ाम पर आकर सिमट जाता है लाख कोशिशों के बाद भी किसी को जिंदगी की सुई नहीं मिली तो किसी को ऑक्सीजन के अभाव में ज़िंदगी नहीं मिली ।

कलम भी थर-थर कांप जाए सच लिखते-लिखते लेकिन सरकार और सिस्टम दोनों की अंगड़ाई अब टूट रही है जब जिंदगियों को बचाने के लिए मिसाल की ज़रूरत है कहने वाले तो ये भी कह रहे हैं कि अब बोना हो गया इंसान है क्योंकि जनता की जान तो अब भगवान के हाथ है । बहरहाल, क्या मंत्री, क्या अफसर और क्या जिम्मेदार हर कोई बस रास्ता ढूंढ रहा है और कोरोना की मार के बाद जागा सिस्टम अब सितम की इंतेहा होते ही मुस्तेद हुआ है देखना होगा कि महामारी की ये मार और कितना सहन कर पाता है देश और सरकार इंजेक्शन से अस्पतालों तक कैसे सिस्टम खड़ा कर पाती है l