फटा हुआ बम तलाश रही पुलिस पार्टियां !

Shivani Rathore
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*कीर्ति राणा, इंदौर*

घबराइये मत….दिल्ली के स्कूलों को आए दिन मिल रही बम से उड़ाने की की धमकी जैसा बम नहीं है यह। ये बम वो है जिसे किसी भी अप्रत्याशित घटनाक्रम से बचाने के लिए 29 अप्रैल से पुलिस कमिश्नर ने सुरक्षा प्रदान कर रखी है और कांग्रेस से भाजपा में गए इस फुस्सी बम को खोजने के लिए कांग्रेस के खोजी दस्तों के साथ ही खजराना थाना की पुलिस पार्टियां उसे यहां-वहां खोजने की औपचारिकता में लगी हुई है।

कल तक वह पुलिस की नजरों के सामने था, सीएम के साथ जानापाव के कार्यक्रम में मौजूद था।लेकिन तब पुलिस असहाय थी क्यों कि उसे कोर्ट से जारी बम का गिरफ्तारी वारंट नहीं मिला था, अब मिल गया है।8 जुलाई को उसे कोर्ट में पेश करना है, उससे पहले वह खुद ही पुलिस को नजर आ जाएगा। 2007 के पुराने जमीन विवाद में कोर्ट ने बम के खिलाफ 10 मई को गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। जिसे 6 दिन बाद पुलिस मिलना बता रही है।

यह पहला अवसर है जब बिना सहयोग मांगे पुलिस की सहायता के लिए कांग्रेस ने भी पांच दर्जन से अधिक नेताओं का अपना खोजी दस्ता गठित किया है।जिस तरह पुलिस का डॉग स्क्वाड बम आदि खोजने में पुलिस की मदद करता है वैसे ही कांग्रेस नेता भी चप्पे-चप्पे पर नजर रखे हुए हैं और बम का सुराग लगते ही पुलिस को इत्तला करेंगे।दूसरी तरफ बम ने भी जिला कोर्ट से जारी गिरफ्तारी वारंट को हाईकोर्ट की इंदौर बैंच में चुनौती दे दी है, उनकी इस याचिका पर आज सुनवाई है।

गौरतलब है कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय बम नामांकन पत्र दाखिल करने के दूसरे दिन ही मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला की ‘कस्टडी’ में नाम वापसी के लिए कलेक्टोरेट पहुंच गए थे। इस घटनाक्रम से बम और दोनों भाजपा नेता भी राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुए हैं।

एक पखवाड़े पहले हुए बम के इस धमाके से ‘झुलसे’ कांग्रेस नेताओं को पहले तो समझ ही नहीं आया कि अब क्या करें।बम को सबक सिखाने के लिए कांग्रेस नेता उसे तलाश रहे थे और अपनी जान को खतरा बताते हुए बम ने पुलिस को सुरक्षा का आवेदन दे दिया था, इसी आधार पर उसे वोटिंग तक के लिए सुरक्षा मुहैया करा दी थी। 29 अप्रैल को नाम वापसी और बाद भाजपा में आने के बाद अक्षय बम को सुरक्षा दी गई।इसके लिए क्षेत्रीय थाने के बजाय सीधे जिला पुलिस लाइन से 6 पुलिसकर्मी तैनात कराए गए हैं। 4 पुलिसकर्मी बम के घर रात-दिन ड्यूटी दे रहे हैं।दो गनमैन हमेशा बम के साथ रहते हैं, ताकि उन पर कोई हमला करता है या प्रदर्शन होता है तो बचाया जा सके।

चुनावी हलचल के दौरान ही 17 साल पुराने केस में कांग्रेस प्रत्याशी रहे बम के खिलाफ धारा 307 (हत्या का प्रयास) का प्रकरण दर्ज किया गया था। इसके बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी और नाम वापस ले लिया। इधर, जिस केस में धारा 307 बढ़ाई गई, उसमें पेशी 10 मई को हुई। इसके बावजूद बम हाजिर नहीं हुए और सामाजिक कार्यक्रम (वर्षी तप) बताकर हाजिरी माफी का आवेदन दिया।कोर्ट ने उनका यह आवेदन नामंजूर करके गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया था।कोर्ट नहीं जाने पर बम ने सफाई दी थी कि मैं भागने वाला आदमी नहीं। जो कानूनी प्रक्रिया होगी, उसको फॉलो करूंगा। यही नहीं, वे गिरफ्तारी वारंट के बावजूद 13 मई को वोट भी डालने गए थे।

24 अप्रैल को 17 साल पुराने केस में बम के खिलाफ धारा 307 का इजाफा किया गया था। 28 अप्रैल को इसके खिलाफ बम ने कोर्ट में आवेदन लगाया था।3 मई को कोर्ट ने अक्षय बम और उसके पिता कांति बम को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। इसे लेकर बम हाई कोर्ट गए हैं, इस पर आज 17 मई को सुनवाई होगी।

🔹मिलीभगत से सब संभव…!
पुलिस और राजनेताओं की सांठगांठ का यह पहला मामला नहीं है।13 मई को इंदौर में सम्पन्न हुए मतदान के दौरान विधानसभा क्षेत्र क्रमांक दो के कनकेश्वरी विद्यालय मतदान केंद्र पर भाजपा-कांग्रेस नेताओं में सुबह हुए विवाद के बाद शाम को पुन: हुए हिंसक विवाद में निगम सभापति मुन्ना यादव के परिजनों ने हिस्ट्री शीटर बदमाशों के साथ मिलकर कांग्रेस नेता बब्बू यादव, नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे, पार्षद राजू भदोरिया आदि पर हमला किया था। पुलिस इन नामजद आरोपियों को ढूंढने का नाटक करती रही और ये सब पूरे ठसके के साथ खुद ही थानें में पेश हो गए थे।

🔹अन्नपूर्णा थाने में प्रकरण दर्ज नहीं
मतदान वाले दिन ही शाम को एक बूथ पर मोबाइल से रिकार्डिंग करने वाले भाजपा वार्ड संयोजक को पुलिस ने रोका था। इस बात को तूल देकर विधायक के पीए और पुत्र ने इतना दबाव बनाया कि थाने के तीन पुलिसकर्मियों को लाईन अटैच करना पड़ा था। दो दिन की जांच के बाद जब यह तथ्य सामने आया कि गलती तो भाजपा नेताओं की थी। पुलिस अधिकारियों ने इन नेताओं के खिलाफ आज तक प्रकरण दर्ज नहीं किया है। उन तीनों पुलिसकर्मियों को भंवरकुआ थाना पर पदस्थ कर के मामले का पटाक्षेप कर दिया है।