दुनिया में कुछ भी अलग नहीं है, जो है सब हम ही हैं, सब ब्रह्म ही है- स्वामी सर्वप्रियानन्द
सत्य-असत्य का ज्ञान ही एकात्म का मार्ग प्रदर्शक है – स्वामी सर्वप्रियानन्द
भोपाल में बही स्वामी सर्वप्रियानन्द जी के एकात्म प्रबोधन की रसधार
संगीतमय शंकर स्तोत्रों से अद्वैतमय हुआ कुशाभाऊ ठाकरे सभागार
इंदौर 27 फरवरी 2024। मध्यप्रदेश के आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा आयोजित दो दिवसीय एकात्म पर्व का मंगलवार को समापन हुआ। वेदांत के अद्वैत दर्शन को समर्पित इस आयोजन में न्यूयॉर्क वेदांत सोसाइटी के रेसीडेंट मिनिस्टर स्वामी सर्वप्रियानन्द ने दो दिन में ‘एकात्म’ के वैशिष्ट्य और विराट स्वरूप की व्याख्या की। शंकर न्यास के इस कार्यक्रम में दूसरे दिन मंगलवार को कर्नाटक शास्त्रीय संगीत के प्रतिभाशाली बाल-कलाकार राहुल आर वेल्लाल ने भगवन आद्यशंकराचार्य द्वारा रचित विभिन्न स्तोत्रों की संगीतमय प्रस्तुति दी। साथ ही अद्वैत के प्रचार-प्रसार में संलग्न शंकर न्यास से जुड़े शंकर दूतों ने भी प्रारंभ में आदि शंकर द्वारा रचित दशश्लोकी स्तोत्र का संगीतमय पाठ किया। अद्वैत की सर्वव्यापकता और स्वामी सर्वप्रियानन्द की लोकप्रियता के चलते मंगलवार को आई तेज आंधी-बारिश भी एकात्म प्रवाह को रोक नहीं पाई। तेज बारिश के बाद भी दूसरे दिन भी कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में अद्वैत प्रेमियों का सैलाब देखने मिला। एकात्म पर्व में मिंटो हॉल की क्षमता से डेढ़ गुनी संख्या उपस्थित रही। प्रबोधन के पूर्व शंकर न्यास के न्यासी व पूर्व ACS श्री मनोज श्रीवास्तव ने मंचस्थ स्वामी सर्वप्रियानन्द जी का पुष्पगुच्छ भेंट कर अभिनंदन किया।
दृश्य और दृष्टा का एकरूप ज्ञान ही एकात्म है। भेद ही एकात्म के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है
स्वामी सर्वप्रियानन्द ने एकात्म के द्वितीय सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि – एकात्म को समझने के लिए पहले सत्य को समझना आवश्यक है। जो एकत्व की ओर ले जाता है वह सत्य है, और जो भेद की ओर ले जाता है वह असत्य है। जो शक्तिवर्धन करे वह सत्य है जो क्षीर्ण करे वह असत्य है। और जो इस सत्य असत्य को जान लेता है वह एकात्म की दृष्टि प्राप्त करता है। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि जो सब में स्वयं को देखता है, सबके सुख की कामना करता है वह सर्वोत्तम योगी है। इसी सर्वोत्तम योगी पथ पर अग्रसर होने के लिए उपनिषद, गीता आदि ग्रंथ प्रेरित करते हैं। हम सब एक हैं, एक ही सत्ता द्वारा संचालित हैं, जुड़े हुए हैं। यदि हम किसी को दुख पहुंचाते हैं तो हम वास्तविकता में किसी और को दुख नहीं पहुंचाते बल्कि स्वयं को ही दुख पहुंचाते हैं। क्योंकि दुनिया में कुछ भी अलग नहीं है, जो है सब हम ही हैं। सब ब्रह्म ही है। इसलिए वेदांत कहता है कि सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करो। क्योंकि सब एक ही चेतना है। कुछ भी जड़ नहीं है। स्वामी जी ने हावर्ड यूनिवर्सिटी में अमर्त्य सेन के एथिक्स पर व्याख्यान का उल्लेख करते हुए कहा कि जब किसी ने उनसे पूछा कि ‘मूल्य क्यों जरूरी हैं? तो उन्होंने उत्तर दिया “एकात्म के कारण”। उनका यह उत्तर वेदांत का ही उत्तर है।
उन्होंने आगे कहा कि – अद्वैत का मार्ग द्वैत से ही होकर जाता है। द्वैत से बचा नहीं जा सकता है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण यह दो दिवसीय एकात्म पर्व है जहाँ एक को समझने के लिए दो (अर्थात द्वैत) दिन और दो भाषणों का सहारा लिया गया। यहां भी देखने में द्वैत लग सकता है किंतु यह द्वैत नहीं एकात्म को समझने का एक उदेश्य है। उन्होंने आचार्य शंकर के युक्तिसंगत व्याख्याओं का उल्लेख करते हुए कहा कि – आचार्य ने एकात्म को समझने के लिए पहले द्वैत को सविकार और निर्विकार, दृश्य और दृष्टा, जड़ और चेतन की युक्ति से समझाया। जो प्रमाणित करती हैं कि शरीर और चेतना, दृश्य और दृष्टा, जड़ और चेतन अलग हैं। फिर उन्होंने बताया कि यह जो सब अलग दिख रहा है वह वास्तव में अलग नहीं है। वह तो केवल प्रकाश के परावर्तन के कारण अलग नजर आता है। हम जो भी दृश्य देखते हैं वह अलग नहीं है, वह दृष्टा की चेतना के प्रकाश से ही प्रकाशित है। अर्थात वह चेतना ही है। और चेतना ही सबके अंदर है इसलिए सब चेतन्य एकात्म है।
स्वामी सर्वप्रियानन्द ने कहा कि ज्ञान कई तरह का होता है। प्रत्यक्ष, परोक्ष, अपरोक्ष और साक्षात अपरोक्ष आदि। जो ज्ञानेंद्रियों से दृश्य है वह प्रत्यक्ष है। जो ग्रंथ, वेदों आदि में वर्णित है वह परोक्ष है। जो चेतना से अनुभव होता है वह अप्रत्यक्ष और जब यह जान जाओ कि चेतना भी अपरोक्ष है तो वह साक्षात अपरोक्ष ज्ञान है। उन्होंने आगे कहा कि हम केवल हाड़मांस के पुतले नहीं हैं, न ही बायोलॉजिकल और साइक्लोजिकल अवयवों की पोटली और गठरी हैं। हम तो वह चेतना हैं जो दृश्य और दृष्टा से परे है। इस चेतना को भाषा में व्यक्त करना कठिन है। लेकिन वेदांत जो भाषा में न समझा सके उसे समझने की युक्ति देता है। वेदांत में चेतना को समझने की कई युक्ति हैं। उनमें से एक है कि – यदि सत्य क्या है यह नहीं जान सकते तो असत्य को जानकर उसका निषेध करो। यह नेति-नेति की युक्ति है। एक कहानी के माध्यम से समझने की युक्ति है। और एक और युक्ति है जो है विरोधाभास की युक्ति। प्रसिद्ध संत रामानंद सरस्वती जी ने कहा है कि यदि एकसाथ दो विरूद्ध बातें समझ आ जाएं तो वही वेदांत है। दृश्य और दृष्टा में भेद ही अज्ञान है। दृश्य और दृष्टा को एकरूप ज्ञान ही एकात्म है। भेद ही एकात्म के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है।
शंकर दूतों ने देशश्लोकी स्तोत्र का गायन किया
एकात्म पर्व के दूसरे दिवस पर अद्वैत के युवा प्रचारक बनने वाले 51 ‘शंकर दूतों’ ने भगवन शंकराचार्य द्वारा ओंकारेश्वर की धर्म भूमि में रचित दशश्लोकी का संगीतमय पाठ किया। आचार्य शंकर द्वारा इस स्तोत्र की विशेषता यह है कि यह स्वयं आचार्य शंकर ने स्वयं के परिचय स्वरूप अपने गुरु के समक्ष इस स्तोत्र का पाठ किया था। जब आचार्य भगवन शंकराचार्य जी के गुरु गोविंद भगवत्पाद जी ने उनसे परिचय पूछा तब आद्यशंकराचार्य ने दशश्लोकी के माध्यम से स्वयं का परिचय दिया। शंकर दूतों के दशश्लोकी गायन के समय सभागार में अद्भुत आलौकिकता का प्रवाह हुआ। जिसके आनंदित रस में अद्वैत प्रेमी रमे हुए नजर आए।
राहुल आर वेल्लाल ने गया भज गोविंदम् स्तोत्र, एकात्म-चित्त हुआ सभागार
एकात्म पर्व के समापन अवसर पर स्वामी सर्वप्रियानन्द जी के एकात्म पर समारोप प्रबोधन के बाद शांतप्रद सभागार में जैसे ही कर्नाटक के सुप्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतकार राहुल आर वेल्लाल की बाल आवाज में शंकर द्वारा रचित भज गोविंदम् स्तोत्र की धार बही, त्यों ही अद्वैत प्रेमियों के चित्त सात्विक आनंद से भर गए। श्री राहुल स्तोत्र गायन के समय पूरा सभागार पर्व की उमंग में डूबा रहा। इस बीच लोगों ने कई बार कलतल के माध्यम से राहुल का उत्साह वर्धन किया। मिंटो हॉल में अद्वैत का यह संगीतमय प्रवाह लगभग एक घंटे चला जिसे लोग एकटक एकात्म-चित्त होकर सुनते रहे।
दो दिवसीय एकात्म पर्व की यह रही विशेषता
आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा आयोजित इस एकात्म पर्व की विशेषता रही कि पहली बार न्यास के आयोजन में न्यूयॉर्क वेदांत सोसाइटी के रेसीडेंट मिनिस्टर स्वामी सर्वप्रियानन्द ने लगातार दो दिन तक एकात्म पर प्रबोधन दिया। साथ ही शास्त्रीय संगीत में विश्वभर में प्रसिद्ध बाल कलाकार ‘सूर्यगायत्री एवं राहुल आर वेल्लाल ने आचार्य शंकर विरचित स्तोत्रों का आलौकिक संगीतमय गायन किया। यह भी पहला अवसर था जब शंकर न्यास के किसी आयोजन में 51 युवा शंकर दूतों ने आचार्य स्तोत्रम् (तोटकाष्टकम्) का पाठ किया।
आगामी 12 महीनों में 11 अद्वैत शिविर आयोजित करेगा न्यास
मध्यप्रदेश के शंकर न्यास द्वारा 2020 के बाद से ही निश्चित अवधि में अद्वैत जागरण हेतु शिविरों का आयोजन किया जाता है। इन शिविरों में न्यास द्वारा चयनित युवा 7 दिन आश्रमचर्या का पालन करते हुए वेदांत के प्रख्यात सन्यासियों के सानिध्य में आत्मबोध और तत्वबोध का अध्ययन करते हैं। जिसे पूर्ण करने वाले युवाओं को न्यास द्वारा शंकर दूत की उपाधि दी जाती है। अद्वैत जागरण हेतु प्रथम शिविर ब्रह्मलीन स्वामी संवित सोमगिरी जी के सानिध्य में माउंट आबू में सम्पन्न हुआ था, जिसमें प्रदेश के चयनित 25 युवाओं ने सहभागिता की थी। इसके बाद से निरंतरता के साथ शिविर जाने वाले युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। बढ़ती संख्या को देखते हुए साल 2024 में 11 शिविरों के माध्यम से युवाओं को एकात्म दर्शन कराया जाएगा। इन शिविरों के माध्यम से अबतक 350 से अधिक शंकर दूतों का दीक्षांत हो चुका है।