विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम से खास बातचीत –
दिनेश निगम ‘त्यागी’
विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम राजनीति में सबसे निचले पायदान के व्यक्ति के हक की लड़ाई के लिए जाने जाते रहे हैं। अध्यक्ष बनने के बाद उनकी प्राथमिकता में कुछ बदलाव आया है। संवैधानिक पद पर बैठने के बाद अब वे खुद को दलगत राजनीति से ऊपर मानते हैं। चुनौती बड़ी है। उनका कहना है कि अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद सदन चलाने के लिए उन्हें ‘राज दण्ड’ सौंपा गया है। लेकिन यह सदन व्यवस्थित चले और हर दल के सदस्य के अधिकार का संरक्षण हो, इसके लिए मैं अपनी ओर से ‘धर्म दण्ड’ का पालन करूंगा। ‘राज दण्ड’ और ‘धर्म दण्ड’ में समन्वय बनाकर सदन का संचालन किया जाएगा ताकि किसी को कोई शिकायत न हो। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने एक विशेष साक्षात्कार में यह बात कही। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश-
दूसरे राज्य में आंसदी का इतना सम्मान नहीं….
विधानसभा अध्यक्ष ने स्वीकार किया कि सदन के अंदर कई बार मर्यादा टूटती हैं। असंसदीय शब्दों का प्रयोग होता है। बेवजह विवाद के हालात निर्मित होते हैं। ‘राज दण्ड’ और ‘धर्म दण्ड’ के जरिए तो इसे राकेंगे ही। इससे भी ज्यादा खास यह है कि मप्र में आसंदी का जितना सम्मान है, देश के किसी अन्य राज्य में नहीं। उन्होंने कहा कि कितनी भी बहस, विवाद चल रहा हो लेकिन यदि अध्यक्ष खड़ा होकर बोल दे कि मैं खड़ा हूं तो सभी पक्षों के सदस्य खुद बैठ जाते हैं। आसंदी के प्रति यह सम्मान ही विधानसभा की सबसे बड़ी ताकत है। इससे यह भी पता चलता है कि मप्र के सदस्य अपेक्षाकृत ज्यादा अनुशासित हैं।
बोलने का अवसर देने से हल होगी समस्या….
– एक सवाल के जवाब में गौतम ने कहा कि सदन के अंदर हर सदस्य चाहता है कि उसे बोलने का अवसर मिले। यह अवसर उन्हें मिल जाए तो अधिकतम विवाद अपने आप खत्म हो जाएंगे। इसलिए मैंने तय किया है कि बोलने के लिए जिनके नाम होंगे, उन्हें तो अवसर मिलेगा ही, जिनके नाम नहीं होंगे, उन्हें भी बोलने का अवसर दिया जाएगा। लोनिवि विभाग की अनुदान मांगों पर चर्चा में हमने ऐसा किया। रिकार्ड सदस्यों ने चर्चा में हिस्सा लिया। मैने ज्यादा से ज्यादा लोगों को बोलने की अनुमति दी और मंत्री से कहा कि अपने जवाब में हर सदस्य का नाम जरूर लें। सदस्यों की इस भावना का आगे भी ख्याल रखा जाएगा।
सभी 229 सदस्यों की राय लेना तो संभव नहीं….
– दस दिन पहले बजट सत्र खत्म करने और कांग्रेस के विरोध पर गिरीश गौतम ने कहा कि कोरोना कितनी बड़ी महामारी है, यह बताने की जरूरत नहीं। विधानसभा को भी यह संदेश देने की जरूरत थी कि वह इस महासंकट में सरकार और जनता के साथ है। इस संबंध में नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ और डा. गोविंद सिंह से बातचीत के लिए मैं प्रश्नकाल छोड़कर गया। उनकी सहमति से निर्णय हुआ। कांग्रेस के कुछ सदस्यों का विरोध है तो विधानसभा के सभी 229 सदस्यों की राय लेना तो संभव नहीं है। कांग्रेस के अंदर विरोध है तो यह उस पार्टी के अंदर का मसला है। हां, एक-दो दिन सदन और चलाया जा सकता था लेकिन हालात ऐसे बने कि ऐसा हो नहीं सका।
भाषण की वीडियो क्लीपिंग देने का नवाचार….
– गौतम ने कहा कि सदन की परंपराओं का पालन करने के साथ मैं नवाचारों का भी हिमायती हूं। इसी के तहत एक दिन पहली बार चुने गए विधायकों के ही प्रश्न लिए गए। महिला दिवस के दिन सिर्फ महिलाओं को आसंदी पर बैठाया गया। एक और नवाचार के तहत विधायकों को उनके भाषण की वीडियो क्लीपिंग सौ रुपए शुल्क अदाकर प्रदान करने की व्यवस्था की गई है ताकि वे अपने क्षेत्र में जाकर बता सकें कि उन्होंने सदन के अंदर क्या मामला उठाया। इस बार 70 विधायकों ने इस सुविधा का लाभ लिया। भविष्य में हमारी कोशिश होगी कि एक दिन सिर्फ महिलाओं के ही प्रश्न लिए जाएं। महिला दिवस पर यह नहीं हो पाया। मेरी कोशिश होगी की सदस्यों की सुविधा के लिए इस तरह के नवाचार जारी रहें।
दो भागों में दिया जाएगा विधायकों को प्रशिक्षण….
– विधानसभा अध्यक्ष गौतम ने कहा कि अभी विधायकों की प्रशिक्षण में रुचि इसलिए कम रहती है कि उन्हें विषय विशेषज्ञ नियमों, परंपराओं की जानकारी देते हैं। विधायकों को यह कम पसंद आता है। इसलिए हम प्रशिक्षण को दो भागों में बांटने की व्यवस्था कर रहे है। एक भाग में विषय से संबंधित प्रशिक्षण विशेषज्ञ देंगे और दूसरे चरण में संसदीय अनुभव का प्रशिक्षण गोपाल भार्गव और डा. गोविंद सिंह जैसे सीनियर विधायक देंगे। विधायकों को लगेगा कि ये 8-9 बार से चुनााव जीत रहे हैं तो इनमें कोई बात तो होगी। ऐसे में वे प्रशिक्षण को गंभीरता से ले सकते हैं। प्रशिक्षण भी उन्हें ही दिया जाएगा, जिनकी रुचि होगी। इसलिए प्रशिक्षण में शामिल होने वाले सदस्यों की सूची उनसे सहमति लेकर तैयार की जाएगी।
अधिकार-कर्त्तव्य में समन्वय बनाना होगा….
– विधानसभा के अंदर मीडिया के आने-जाने पर कई तरह की पाबंदिया लगाने के सवाल पर गिरीश गौतम ने कहा कि मीडिया का काम सवाल पूछ कर जवाब जनता तक पहुंचाना है। इस अधिकार से उसे कोई वंचित नहीं कर सकता। इसीलिए कोई बात मेरी ध्यान में लाई गई तो मैने तत्काल निर्णय बदलाया। लेकिन मीडिया को भी अधिकारों के साथ अपने कर्त्तव्य का बोध होना चाहिए। कोई व्यवस्था बनाई जा रही है तो कर्त्तव्य समझ कर उसका पालन करना चाहिए। मीडिया अपने अधिकार एवं कर्त्तव्य में समन्वय बना ले तो कोई समस्या ही नहीं रहेगी।