इंदौर। ज्यादा चलने और दौड़ने से घुटने अच्छे रहते हैं। लोगों में यह भ्रांति हैं कि ज्यादा चलने से घुटनों में समस्या आती हैं। यह एक उम्र के साथ चलने वाली बीमारी हैं। मैने मेरी लाइफ में किसी मैराथन रनर के घुटनों का रिप्लेसमेंट नहीं किया। हम जितना जोड़ों को इस्तेमाल करेंगे यह मजबूत होंगे। हमारे खान पान में अब विटामिन्स, और मिनरल्स कम होते जा रहे हैं जिससे हड्डियों में कमजोरी देखी जा रही हैं। यह बात ऑर्थोपेडिक ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. अरविंद रावल ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही। वह ऑर्थोपेडिक में नी रिप्लेसमेंट और हिप रिप्लेसमेंट के साथ दूरबीन द्वारा कई बीमारियों में डील करते हैं। आज उनसे चर्चा कर हम घुटनें और कूल्हे से संबंधित समस्या के बारे में जानेंगे।
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सवाल. किस समस्या के कारण नी रिप्लेसमेंट की जरूरत होती है, क्या वर्तमान में इसमें बढ़ोतरी हुई हैं?
जवाब. दुनियां में अगर घुटनें और कुल्हें में आने वाली समस्या का एक कॉमन कारण ऑस्टियोआर्थराइटिस हैं। जिसे उम्र के साथ जोड़ों का घिसना कहा जाता हैं। इसमें धीरे धीरे जोड़ों की सर्फेस घिस जाती है। आज की बदलती लाइफ स्टाइल से हमारा चलना फिरना कम हो गया हैं, हम मशीनों पर निर्भर हो गए हैं। पहले जोड़ों से संबंधित समस्या 80 साल में होती थी, अब 50 की उम्र में देखने को मिलती है। जोड़ों का उपयोग कम होने से इनमें इस तरह की समस्याएं सामने आती हैं। वहीं बढ़ते मोटापे से जोड़ों पर काफी प्रभाव पड़ता है, और दर्द का कारण बनता हैं। अगर बात नी रिप्लेसमेंट की करी जाए तो पहले के मुकाबले टेक्नोलॉजी में काफी बदलाव हुआ हैं। अब रोबोटिक सर्जरी से भी नी रिप्लेसमेंट करना आसान हो गया है। इस सर्जरी से अलाइनमेंट बेहतर होने के साथ साथ दर्द कम होता है।
सवाल. क्या नी रिप्लेसमेंट की तरह इंडिया में हिप रिप्लेसमेंट में कॉमन है, और इसके होने के क्या कारण हैं
जवाब. मैने यूके में 15 साल ज्वाइंट और हिप रिप्लेसमेंट किए हैं। मैने अपने करियर में अब तक दोनों मिलाकर लगभग 7 हज़ार रिप्लेसमेंट किए हैं। जिसमें नी रिप्लेसमेंट का आंकड़ा ज्यादा है। अगर बात यूके के अनुभव की करी जाए तो वहां दिन में अगर 2 नी रिप्लेसमेंट होते थे, तो 2 हिप रिप्लेसमेंट भी होते थे। लेकिन इंडिया में ऐसा नहीं है। यहां 20 रिप्लेसमेंट पर मुस्किल से 2 हिप रिप्लेसमेंट होते हैं। हमारी साउथ एशियन पॉपुलेशन में दूसरे देशों के मुकाबले हिप कम डेमेज होते हैं। यहां जिन कारणों से हिप रिपलेसमेंट किया जाता है, उनमें मुख्य कारण एवैस्कुलर नेर्कोसिस हैं। इसमें हिप के अंदर जो बोल होती हैं उसमें खून का सर्कुलेशन कम हो जाता हैं, जिस वजह से यह समस्या सामने आती हैं।
सवाल. किसी दवाई के हाई डोज लेने से इसमें इजाफा हुआ है
जवाब. कॉविड के बाद यह समस्या बहुत ज्यादा उभर के सामने आई हैं। कॉविड के दौरान लोगों ने स्टेरॉयड के हाई डोज ज्यादा इस्तेमाल किया, जिससे इस गोले में 10 गुना ज्यादा समस्या देखने को मिल रही हैं। वहीं ज्यादा ड्रग्स, अल्कोहल और अन्य कारणों से इस तरह की समस्या देखी जा रही हैं। हिप रिप्लेसमेंट में इस समस्या के लक्षण दिखाई देने पर जल्दी इलाज़ करवाने से इसे बदलने की जरूरत नहीं होती हैं। इसमें जांच के बाद कोर डी कंप्रेशन सर्जरी की मदद से उस जगह पर ड्रिल कर खून का दौरा बढ़ा देते हैं।
सवाल. जोड़ों के दर्द के सिवा गठिया से संबंधित समस्या के क्या कारण हैं
जवाब. इंफ्लेमेंट्री ऑस्टियोआर्थराइटिस जिसे आम बोलचाल में गठिया कहा जाता हैं। यह किसी भी उम्र में देखने को मिलती हैं। यह एक ऑटो इम्यून डिजीज है। इसमें शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता जोड़ों के अगेंस्ट एंटीबॉडी बनाने लग जाती हैं। यह फैमिली हिस्ट्री, जेनेटिक और अन्य कारणों से होती हैं। यह बच्चों में भी आमतौर पर देखी जाती हैं। इसे समय पर इलाज़ और अच्छी डाइट की मदद से ठीक किया जा सकता है। इसको लेकर लोगों में जागरुकता होनी चाहिए, यदि सुबह उठने के बाद जोड़ों में जकड़न या सूजन लगती हैं तो इसका इलाज़ करवाना चाहिए।
सवाल.आपने मेडिकल फील्ड में कहां से अपनी पढ़ाई पूरी की
जवाब. मैने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई एमजीएम मेडिकल कॉलेज से पूरी की। एमएस ऑर्थोपेडिक एमजीएम और एमवायएच हॉस्पिटल से कंप्लीट किया। मेरी रुचि ऑर्थोपेडिक में नी रिप्लेसमेंट में थी, उस समय यहां इतनी टेक्नोलॉजी नहीं थी। इसलिए मैने यूके जाना तय किया। प्लेब की एग्जाम देने के बाद यूके के यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपोल से एफआरसीएस जनरल सर्जरी किया वहीं 8 तक कई ऑर्थोपेडिक सर्जरी के प्रोग्राम में हिस्सा लिया। जिसमें एमसीएच, एफआरसीएस जनरल सर्जरी, एफआरसीएस ऑर्थोपेडिक सर्जरी और सर्जिकल डिग्रियां हासिल की। इसी के साथ ज्वाइंट रिप्लेसमेंट की फेलोशिप डार्विन हॉस्पिटल से और रॉयल हॉस्पिटल से ऑर्थोस्कोपी के फेलोशिप प्रोग्राम में हिस्सा लिया। और इसके बाद यूके के कई हॉस्पिटल में कंसल्टेंट के रूप में कार्य किया। 15 साल यूके में रहने के बाद हम अपने देश लोट आए। इसके बाद कुछ डॉक्टर ने मिलकर शहर में रॉयल शांति हॉस्पिटल की शुरुआत की लेकिन कुछ कारणों से उसे कंटिन्यू नहीं कर सके। बाद में मेदांता ने उसे टेकओवर कर लिया था। इसके बाद मैने भी मेदांता में काम किया। उसके बाद अब जुपिटर हॉस्पिटल में कार्यरत हूं।