दिल्ली उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ शराब नीति में बदलाव करके भ्रष्टाचार करने का मामला है। जब सीबीआई ने 19 अगस्त को डिप्टी सीएम सिसोदिया के घर कथित तौर पर रेड मारी थी। इसकी मंजूरी जांच एजेंसी को राष्ट्रपति से ली गई थी। इस मामलें में सीबीआई ने 15 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। लेकिन अभी तक की जांच में कुछ नहीं मिला है, केवल डिप्टी सीएम का फोन, लेपटोप और कुछ कागजात जांच के लिए ले लिए गए है।
दिल्ली सरकार की एक्साइज पॉलिसी 2021-22 में संशोधन करके राजधानी के डिप्टी सीएम सिसोदिया ने भ्रष्टाचार का केस दर्ज करने से पहले राष्ट्रपति की मंजूरी लेना अहम होता है। इस मामले से जुड़े कई अधिकारियों के खिलाफ भी केस दर्ज किया गया हैं। उनके खिलाफ जांच एजेंसी ने नियमित लुक आउट सर्कुलर जारी तक दिया है ताकि वह देश छोड़कर नहीं जा सके।
आखिर राष्ट्रपति की क्यू लेनी पड़ती है मंजूरी
केंद्र शासित प्रदेशों में एक विधायक की जांच के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी अहम होती है। एक्साइज अधिकारियों के लिए गवर्नर की अनुमति की आवश्कता होती है। ऐसे में मनीष सिसोदिया के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17A में राष्ट्रपति की अनुमति जरूरी होती हैं।
इस धारा के अन्तर्गत किया केस दर्ज
धारा 17A में अगर केंद्र शासित राज्यों में केस दर्ज होता है तो उसके लिए भारत सरकार की मंजूरी अहम होती हैं। डिप्टी सीएम सिसोदिया के खिलाफ एफआईआर में प्रीवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट की धारा 7 के साथ आईपीसी की घारा 120B, 477A की धाराओं में केस दर्ज किया गया है।